नई दिल्लीःसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को बड़ा झटका देते हुए ‘जमीन के बदले नौकरी’ घोटाले में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट को कार्यवाही टालने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।

लालू यादव ने अपनी ताजा याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि जब तक दिल्ली हाईकोर्ट में सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने की उनकी याचिका पर 12 अगस्त को सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक ट्रायल कोर्ट में आरोप तय करने की कार्यवाही टाल दी जाए।

हालांकि, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने साफ कहा कि हाईकोर्ट में लंबित याचिका "निरर्थक" नहीं हो जाएगी, भले ही ट्रायल कोर्ट आरोप तय करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा दे। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के अधीन होगी।

इससे पहले, 18 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल पर रोक लगाने से इनकार किया था और कहा था कि यह मामूली मामला है जिसे हाईकोर्ट ही देखे।

क्या है मामला?

सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक, वर्ष 2004 से 2009 के बीच जब लालू यादव रेल मंत्री थे, उस दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी दिलाने के बदले अपने परिवार के नाम जमीनें लिखवाकर आर्थिक लाभ उठाया। इन नियुक्तियों के लिए न तो कोई विज्ञापन निकाला गया और न ही कोई सार्वजनिक सूचना जारी हुई।

पटना के निवासी युवकों को रेलवे के मुंबई, जबलपुर, कोलकाता, जयपुर और हाजीपुर जैसे जोन में ग्रुप 'डी' पदों पर नियुक्त किया गया। इन लोगों या उनके परिवार वालों ने लालू यादव के परिवार और उनके द्वारा संचालित एक निजी कंपनी के पक्ष में जमीनें बेचीं या गिफ्ट डीड के जरिए ट्रांसफर कीं।

याचिका में क्या कहा लालू यादव ने?

लालू यादव ने अपनी याचिका में कहा कि किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के खिलाफ ऐसे अपराध की जांच, जो उनके कार्यकाल या फैसलों से जुड़ा हो, बिना सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के नहीं हो सकती।

उनके मुताबिक, बिना मंजूरी के एफआईआर दर्ज करना ही अवैध था और इसके बाद की सारी कार्यवाही – जांच, चार्जशीट और ट्रायल कोर्ट द्वारा संज्ञान लेना – शुरुआत से ही शून्य मानी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने हालांकि उनकी दलीलें ट्रायल कोर्ट में रखने की छूट देते हुए ट्रायल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद लालू यादव सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।