नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में मंगलवार सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने इस दौरान कोलकाता सरकार, पुलिस बल और मामले को राजनीतिक रंग दिए जाने पर नाराजगी जाहिर की।
कोर्ट ने पूछा कि पुलिस ने हत्या के बाद काफी देर से केस दर्ज क्यों किया था। डॉक्टर की मौत हत्या की वजह से हुई थी लेकिन पुलिस ने रात 11:45 बजे केस दर्ज किया। कोर्ट ने पूछा कि अस्पताल प्रशासन क्या कर रहा था? उसने एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई।
शीर्ष अदालत ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल पर भी खूब नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के साथ जानवरों जैसा बर्ताव हुआ, लेकिन प्रिंसिपल इतने निष्क्रिय क्यों थे? उन्होंने हत्या को सुसाइड बताने की कोशिश क्यों की?
शीर्ष अदालत ने राज्य सराकर को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने पूछा कि प्रिंसिपल की नियुक्ति दूसरी जगह क्यों की गई। सरकार उनपर क्या कार्रवाई करेगी। पीड़िता की गरिमा के साथ खिलवाड़ हुआ और अभिभावकों को शव सौंपे जाने के साढ़े तीन घंटे बाद एफआईआर दर्ज की गई।
काम पर लौटें, पूरे देश को आपकी चिंताः सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत ने हड़ताली डॉक्टरों काम पर वापस लौटन की अपील की। साथ ही उनकी सुरक्षा के लिए 10 सदस्यीय टास्क फोर्स के गठन का आदेश दिया। कोर्ट ने डॉक्टरों से कहा कि पूरे देश को आपकी सुरक्षा की चिंता है। आप काम पर लौट आएं। मरीज नंबर लगाकर लंब इंतजार के बाद अप्वाइंटमेंट हासिल करते हैं। उन्हें इलाज मिलना जरूरी है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ समेत तीन जजों की बेंच केस पर सुनावाई कर रही थी। सर्वोच्च न्यायालय ने स्थिति पर नजर रखने के लिए मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को तय की है और कहा है कि 27 अगस्त को विस्तृत सुनवाई की जाएगी।
डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए टास्क फोर्स का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टर की सुरक्षा को लेकर 10 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया। इसमें अलग-अलग तरह के डॉक्टर होंगे जो पूरे देश में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए नियम बनाएंगे। मुख्य न्यायाधीश का कहना है कि इससे युवा और उम्रदराज डॉक्टर भी काम करते समय सुरक्षित रह सकेंगे।
डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए बनाए गए टास्क फोर्स में – सर्जन एडमिरल आरके सारिया, डॉक्टर डी नागेश्वर रेड्डी, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल गैस्ट्रोलॉजी के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर एम श्रीवास, AIIMS दिल्ली के डायरेक्टर, डॉक्टर प्रतिमा मूर्ति, NIMHANS बेंगलुरु, डॉक्टर गोवर्धन दत्त पुरी, AIIMS जोधपुर, डॉक्टर सोमिक्रा रावत, गंगाराम अस्पताल, प्रोफेसर अनिता सक्सेना, पल्लवी सापले, जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, डॉक्टर पद्मा श्रीवास्तव, पारस हॉस्पिटल, गुड़गांव की चेयरपर्सन (न्यूरोलॉजी) शामिल हैं।
तीन हफ्ते में देनी होगी रिपोर्ट, अंतिम रिपोर्ट दो महीने के भीतर
टास्क फोर्स को अपने निष्कर्ष और सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए सख्त समयसीमा दी गई है। अंतरिम रिपोर्ट तीन सप्ताह की अवधि के भीतर प्रस्तुत की जानी है, जबकि अंतिम रिपोर्ट दो महीने के भीतर प्रस्तुत की जानी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि महिला डॉक्टरों की सुरक्षा राष्ट्रीय महत्व का मामला है और समानता का सिद्धांत इस मुद्दे को हल करने के लिए ठोस प्रयासों से कम कुछ नहीं मांगता है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार से कहा है कि वो प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जबरदस्ती कार्रवाई न करे। कोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर सरकार की ताकत नहीं दिखाई जानी चाहिए।
अदालत ने अस्पताल और पुलिस की भी खिंचाई की। कोर्ट ने पूछा कि अस्पताल का प्रमुख क्या कर रहा था? एफआईआर दर्ज नहीं की गई, शव देर से परिजनों को सौंपा गया। पुलिस क्या कर रही थी? एक गंभीर अपराध हुआ है और वो भी एक अस्पताल में।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों, खासकर महिला डॉक्टरों की सुरक्षा देश के लिए बहुत जरूरी है। देश को अगले बलात्कार का इंतजार नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम एक ऐसे डॉक्टर के मामले से निपट रहे हैं जिसके साथ न सिर्फ बलात्कार हुआ बल्कि जिसके साथ जानवर की तरह बर्ताव किया गया। इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाएं और बंगाल सरकार को इनकार करने की स्थिति में नहीं रहना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने सरकार को इस बात पर भी फटकार लगाई कि आरजी कर अस्पताल के प्रमुख पद से इस्तीफा देने के बाद डॉक्टर संदीप घोष को एक और प्रतिष्ठित कॉलेज, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज का प्रमुख बना दिया गया। जब किसी प्रमुख के कामकाज पर सवाल उठ रहे हों तो उसे तुरंत दूसरे कॉलेज का प्रमुख कैसे बना दिया जाता है?
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने देखा कि डॉक्टरों के लिए रेस्ट रूम तक नहीं है। हम कैसै उम्मीद करें कि डॉक्टर ऐसे हालात में काम करेंगे। महिला सुरक्षा से वंचित हो रही हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर गहरी चिंता जताई कि पीड़ित का नाम, फोटो और शव की वीडियो क्लिप पूरी मीडिया में फैल गई। यह बेहद चिंताजनक है।
सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल में हुई तोड़फोड़ पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि अस्पताल में 700 की भीड़ कैसे घुस गई। पुलिस क्या कर रही थी? सबसे पहले तो पुलिस को अपराध स्थल की सुरक्षा करनी चाहिए थी।
इसपर पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स एसोसिएशन की ओर से अपराजिता सिंह ने कहा कि 14 अगस्त को जब भीड़ ने अस्पताल पर हमला किया तो पुलिस भाग गई थी और भीड़ ने छात्रावास में जाकर महिला डॉक्टरों को धमकी दी कि अगर उन्होंने घटना के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें कठोर परिणाम भुगतने होंगे।
अपराजिता सिंह ने बताया कि हिंसा के बाद 600 से ज़्यादा डॉक्टर, पुरुष और महिला, अस्पताल छोड़कर भाग गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और CISF को अस्पताल को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि अगर हम पुलिस से महिला अधिकारियों की सुरक्षा करने को कहें तो भी “क्या यह पुलिस बल इन महिला डॉक्टरों की सुरक्षा कर पाएगा?” सीजेआई ने कहा कि जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, सीआईएसएफ को अस्पताल और डॉक्टरों तथा स्वास्थ्य कर्मियों के छात्रावासों को सुरक्षा प्रदान करने दें।
सीजेआई की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि माता-पिता द्वारा महिला डॉक्टरों को घर वापस बुलाना एक गंभीर मुद्दा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से गुरुवार (22 अगस्त) तक जांच की रिपोर्ट मांगी है। साथ ही बंगाल सरकार से भी तोड़फोड़ की जांच की रिपोर्ट मांगी गई है।
मामले को 22 अगस्त के लिए सूचीबद्ध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह उम्मीद करता है कि पश्चिम बंगाल सरकार आरजी कर अस्पताल की घटना पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ राज्य की शक्ति का प्रयोग करते समय अत्यधिक संयम बरतेगी।