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गुवाहाटी: असम सरकार ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कोच-राजबोंगशी समुदाय के खिलाफ विदेशी न्यायाधिकरणों (Foreigners' Tribunals) में लंबित सभी 28,000 मामलों को वापस लेने की घोषणा की है। इस कदम से न केवल इस समुदाय के लोगों को "विदेशी" होने के अपमान से मुक्ति मिलेगी, बल्कि उनके नाम से ‘D वोटर’ यानी संदिग्ध मतदाता का टैग भी हटाया जाएगा।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कैबिनेट बैठक के बाद इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा, “कोच-राजबोंगशी समुदाय लंबे समय से अपमान और अनिश्चितता का सामना कर रहा था। हम उन्हें राज्य का मूल निवासी मानते हैं। वे असम की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। यह निर्णय ऐतिहासिक है।”
क्या हैं विदेशी ट्रिब्यूनल?
विदेशी ट्रिब्यूनल असम में स्थापित अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जो 1946 के फॉरेनर्स एक्ट और 1964 के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ऑर्डर के तहत यह तय करते हैं कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या विदेशी। असम में वर्तमान में 100 से अधिक ट्रिब्यूनल काम कर रहे हैं, जिनमें कुल 96,000 से अधिक मामले लंबित हैं। किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित किए जाने के बाद उसे डिटेंशन सेंटर भेजा जाता है।
हालांकि, व्यक्ति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है। वहीं, अगर ट्रिब्यूनल किसी को नागरिक घोषित करता है, तो उसका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जा सकता है।
कोच-राजबोंगशी समुदाय की स्थिति
कोच-राजबोंगशी समुदाय असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। असम में इनकी आबादी लगभग 4.6 लाख (2011 जनगणना के अनुसार) है और ये मुख्य रूप से धुबरी, गोलपाड़ा और बोंगाईगांव जिलों में रहते हैं। इस समुदाय की लंबे समय से मांग रही है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाए और अलग कामतापुर राज्य की स्थापना की जाए।
सरकार के इस निर्णय को व्यापक सामाजिक और राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। इससे न केवल हजारों परिवारों को राहत मिलेगी, बल्कि यह कदम राज्य में सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा देगा। मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि अब कोच-राजबोंगशी समुदाय को “विदेशी” कहलाने का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा।