केरल: पिनाराई विजयन के बयान से उपजे विवाद के केंद्र में क्यों हैं सुधारक नारायण गुरु?

यह विवाद तब शुरू हुआ जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने शिवगिरी में नारायण गुरु के समाधि स्थल पर सनातन धर्म पर टिप्पणी की।

एडिट
Narayana Guru, Pinarayi vijayan, BJP, CPM, Kerala Politics, Sanatan Dharma, Caste in Hindu Dharma, Varnashrama in Hindu, Sanatan Dharm, Indian Civilization, Congress, Religion of Narayan Guru, Dharm in India, casteism, Casteism in Indian, Casteism in Indian Society, केरल,केरल की राजनीति, सीपीएम, नारायण गुरु, वर्ण व्यवस्था, बीजेपी

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का  बयान भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

तिरुवनंतपुरम: सनातन धर्म पर डीएमके के उत्तराधिकारी उदयनिधि स्टालिन के बयान से उत्पन्न विवाद के एक साल बाद, अब दक्षिण भारत में इस विषय पर एक और बहस ने जन्म लिया है। इस बार यह विवाद केरल में छिड़ा है, जहां मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के सनातन धर्म पर दिए गए बयान ने नई कंट्रोवर्सी को जन्म दिया है। इस विवाद का केंद्र बिंदु हैं 19वीं सदी के प्रसिद्ध संत, दार्शनिक और सामाजिक सुधारक नारायण गुरु।

नारायण गुरु पर पिनाराई विजयन के बयान पर विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने शिवगिरी में नारायण गुरु के समाधि स्थल पर सनातन धर्म पर टिप्पणी की। भाजपा ने इसे नारायण गुरु को सनातन धर्म से अलग करने का प्रयास करार दिया। विजयन ने कहा, "नारायण गुरु कभी भी सनातन धर्म के प्रचारक या पालनकर्ता नहीं थे, बल्कि उन्होंने नए युग के लिए सनातन धर्म को फिर से स्थापित करने का प्रयास किया।"

विजयन का कहना था कि नारायण गुरु की दर्शन प्रणाली किसी भी धर्म या जाति से ऊपर थी और उनका उद्देश्य समाज की भलाई था। विजयन ने कहा कि 'एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर' की अवधारणा का प्रचार-प्रसार करने वाले नारायण गुरु सनातन धर्म के समर्थक कैसे हो सकते हैं? समाज सुधारक गुरु को एक धार्मिक नेता और धार्मिक संन्यासी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है।'

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का  यह बयान भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है, विशेषकर तब जब पार्टी केरल में नारायण गुरु के अनुयायियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है।

पिनाराई के बयान पर भाजपा और कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया

विजयन के बयान को केवल बीजेपी ही नहीं, बल्कि केरल में कांग्रेस पार्टी ने भी आलोचना की। भाजपा के वरिष्ठ नेता वी मुरलीधरन ने कहा, "मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन सनातन धर्म को 'राजतंत्र' की तरह बता रहे हैं, वह सनातन धर्म को 'वर्णाश्रम धर्म' कह रहे हैं। यह बयान उदयनिधि स्टालिन के बयान की तरह ही है, जिसमें सनातन धर्म को समाप्त करने की बात की गई थी।"

मुरलीधरन ने सवाल किया कि क्या विजयन के पास किसी और धर्म के खिलाफ बोलने की हिम्मत है। उन्होंने आरोप लगाया कि विजयन के शासन में हिंदुओं को सबसे अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सबरीमाला में युवा महिलाओं के प्रवेश और त्रिशूरपुरम मामले में भी उन्होंने हिंदू आस्था को चुनौती देने की कोशिश की थी।"

वहीं, कांग्रेस नेता वीडी सतीशन ने भी विजयन के बयान को गलत ठहराया और इसे सनातन धर्म को केवल संघ परिवार से जोड़ने की कोशिश बताया। उन्होंने कहा कि वर्णाश्रम के विपरित सनातन धर्म, सार्वभौमिक कल्याण की बात करता है। उन्होंने सनातन को भारत की सामूहिक संस्कृति बताया है।

 कौन थे नारायण गुरु?

नारायण गुरु का सम्मान केरल में केवल उनके अनुयायियों तक सीमित नहीं है, बल्कि समूचे राज्य में उनका आदर और श्रद्धा गहरा है। वे समाज में जातिवाद के खिलाफ थे और समानता, करुणा तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करते थे। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बनी हुई हैं। उनका आदर्श केरल के सबसे बड़े हिंदू वोट बैंक, एझावा समुदाय के बीच गहरे रूप से समाहित है। यह समुदाय, जो अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) में आता है, नारायण गुरु की विचारधारा से प्रेरित है और उनके सिद्धांतों को फैलाने के लिए राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा है।

एझावा समुदाय का प्रमुख प्रतिनिधि श्री नारायण धर्म परिपालना योगम (SNDP) है, जो एक सामाजिक संगठन है। हालांकि इस संगठन ने कभी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का कदम नहीं उठाया, लेकिन इसके सदस्य विभिन्न राजनीतिक दलों को समर्थन देने में हमेशा अग्रणी रहे हैं। पारंपरिक रूप से इस समुदाय ने वामपंथी दलों का साथ दिया है, लेकिन अब यह समीकरण बदलते हुए दिखाई दे रहे हैं।

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने एझावा समुदाय के बीच अपनी उपस्थिति बढ़ाने की रणनीति अपनाई है, जो 2024 लोकसभा चुनावों के दृष्टिकोण से भाजपा के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। वहीं, कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) ने भी नारायण गुरु के योगदान को अपने राजनीतिक विमर्श में शामिल किया है और उन्हें केरल के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। यह प्रतिस्पर्धा राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समुदाय का समर्थन कई राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा चुनावी हथियार बन चुका है।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article