तिरुवनन्तपुरमः केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को फिल्म निर्माता साजिमोन परायिल की याचिका खारिज कर दी। जिसमें उन्होंने जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने की मांग की थी।
गौरतलब है कि राज्य सूचना आयोग (एसआईसी) ने केरल सरकार को हेमा समिति की रिपोर्ट जारी करने का आदेश दिया है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें मलयालम फिल्म उद्योग में प्रणालीगत उत्पीड़न के बारे में महत्वपूर्ण निष्कर्ष हैं। हालांकि 24 जुलाई को हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में रिपोर्ट जारी करने पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ता निर्माता साजिमोन परायिल ने राज्य सूचना आयोग के 6 जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। सूचना आयोग ने हस्तक्षेप किया था जब संस्कृति विभाग ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत रिपोर्ट का खुलासा करने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति वीजी अरुण की एक बेंच ने रोक हटा दी और आदेश दिया कि रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर प्रकाशित की जाए। लेकिन अदालत ने राज्य सरकार द्वारा रिपोर्ट जारी करने के कुछ घंटे पहले ही अंतरिम रोक लगा दी थी।
रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को लेकर विवाद क्यों?
बता दें कि रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का मुद्दा केरल में विवादित रहा है। रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से उद्योग में कई लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचने की आशंका थी। कुछ लोगों का मानना था कि इससे उद्योग में अस्थिरता पैदा होगी।
सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक करने या न करने के बीच उलझन में थी। एक तरफ, सरकार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना चाहती थी, लेकिन दूसरी तरफ, उद्योग को नुकसान पहुंचाने से भी बचना चाहती थी। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत कई लोगों ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। लेकिन सरकार ने इसे गोपनीय रखने का फैसला किया। पिछले 5 साल से यह रिपोर्ट केरल सरकार के पास है।
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संस्कृति विभाग सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत भी रिपोर्ट की एक प्रति सौंपने के लिए तैयार नहीं था। पत्रकारों और सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा कई आरटीआई दायर किए गए इसके बावजूद रिपोर्ट आज तक अप्रकाशित रही है।
राज्य सूचना आयुक्त ए अब्दुल हकीम ने निर्देश दिया कि रिपोर्ट को बिना किसी सूचना को रोके जारी किया जाए, सिवाय व्यक्तियों की गोपनीयता से संबंधित सूचना को छोड़कर, जैसा कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत निषिद्ध है।
अब्दुल हकीम ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सांस्कृतिक मामलों के विभाग के अधिकारियों द्वारा हेमा समिति की रिपोर्ट को दबाना इस बात का उदाहरण है कि कैसे कुछ नौकरशाह सरकार द्वारा अच्छे हित में रखे गए विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। अधिकारियों के लिए ऐसी महत्वपूर्ण रिपोर्ट की सामग्री को छिपाना अच्छा नहीं है।
जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
जुलाई 2017 में, सरकार ने सेवानिवृत्त हाईकोर्ट की जज हेमा की अध्यक्षता में एक तीन लोगों की समिति गठित की। इस समिति ने फिल्म उद्योग में महिलाओं की सुरक्षा, वेतन और कामकाजी स्थितियों सहित उनकी समस्याओं को गौर किया।
उद्योग में महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों की जांच के लिए एक समिति की मांग तब हुई जब फरवरी 2017 में कोच्चि में एक प्रमुख महिला अभिनेत्री का अपहरण और यौन उत्पीड़न किया गया था। इस घटना के पीछे एक्टर दिलीप के हाथ होने की बात कही गई। इस घटना ने उद्योग में महिला पेशेवरों की असुरक्षा को उजागर किया।
फिल्म उद्योग में कई महिला पेशेवरों से बयान दर्ज करने के बाद, समिति ने दिसंबर 2019 में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को 300 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। इसमें उद्योग में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं पर गौर करने के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाने की सिफारिश की गई थी।
सरकार ने जनवरी 2022 में रिपोर्ट का अध्ययन करने और इसकी सिफारिशों को लागू करने की योजना बनाने के लिए एक पैनल बनाया।
मई 2022 में, सरकार ने हेमा समिति की सिफारिशों का एक मसौदा जारी किया, जिसमें सेक्टर में नौकरी के अनुबंध अनिवार्य करने का सुझाव दिया गया था। अन्य सिफारिशों में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान वेतन, शूटिंग स्थानों पर ड्रग्स और शराब के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और स्थानों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियां शामिल थीं।