तिरुवनंतपुरम: आईटी-आधारित औद्योगिक टाउनशिप बनाने वाली परियोजना विवादों में आ गई है, जिसे केरल सरकार और दुबई की टेकॉम इन्वेस्टमेंट (TECOM Investment) के संयुक्त उद्यम के रूप में शुरू किया गया था।
इस परियोजना में टेकॉम की 84 प्रतिशत और राज्य सरकार की 16 फीसदी हिस्सेदारी है। इसका उद्देश्य 10 वर्षों में 90 हजार नौकरियां प्रदान करना और लगभग 87.85 लाख वर्ग फीट का विकास करना था।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, राज्य सरकार अब टेकॉम को बाहर करने की योजना बनाई है। यह परियोजना साल 2005 में यूडीएफ सरकार के दौरान शुरू हुई, लेकिन वर्ष 2011 में सीपीआई (एम) सरकार ने इसे अंतिम रूप दिया।
कोच्चि स्मार्टसिटी का क्या है पूरा विवाद?
खबर के मुताबिक, टेकॉम को परियोजना के 12 फीसदी क्षेत्र पर फ्रीहोल्ड का अधिकार दिया गया था, लेकिन उसे बेचने की अनुमति नहीं थी। बाकी 88 फीसदी भूमि 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दी गई थी।
सीएजी रिपोर्ट ने इस समझौते में पारदर्शिता की कमी और टेकॉम के प्रमोटरों की पहचान स्थापित न कर पाने पर सवाल उठाए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि समझौते में तय 90 हजार नौकरियों के लक्ष्य को बाद में कमजोर कर दिया गया। परियोजना शुरू करने से पहले किसी व्यवहारिक अध्ययन का भी अभाव था।
राज्य सरकार ने अब टेकॉम को 1,700 करोड़ रुपए की परियोजना से बाहर करने के लिए एक समिति बनाई है, जो टेकॉम के निवेश का मूल्यांकन करेगी और उसके शेयरों के बराबर राशि का भुगतान करेगी। सरकार का कहना है कि यह भूमि अब राज्य की संपत्ति रहेगी और इसका उपयोग सरकारी आईटी विकास के लिए किया जाएगा।
यूडीएफ ने केरल सरकार के फैसला पर ऐतराज जताया है
विपक्षी यूडीएफ ने इस कदम को भूमि घोटाला बताते हुए सरकार पर निशाना साधा है। उनका आरोप है कि टेकॉम समझौते में मानदंडों का पालन नहीं हुआ और सरकार अब निवेशकों को फायदा पहुंचा रही है।
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा है कि अब कोई निजी निवेशक साझेदारी नहीं होगी। सरकार इस भूमि का उपयोग आईटी कंपनियों को आवंटित करने के लिए करेगी। उनका मानना है कि यह फैसला देरी और विवाद से बचने के लिए लिया गया है।