पुणेः भारत विकास परिषद के विकलांग केंद्र के समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत का दिया बयान चर्चा में है। मोहन भागवत ने कहा कि इंसान को अहंकार को दूर रखना चाहिए नहीं तो वह गड्ढे में जा गिरेगा। उन्होंने कहा कि निःस्वार्थ सेवा तभी संभव है जब व्यक्ति स्थायी आनंद और संतोष की अनुभूति करता है, जो दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति को भी बढ़ाता है।
‘सेवा ही समाज में विश्वास को स्थायी बनाती है’
मोहन भागवत महाराष्ट्र के पुणे में सोमवार को भारत विकास परिषद के विकलांग केंद्र के रजत जयंती समापन समारोह में शामिल हुए थे। भागवत ने कार्यक्रम में कहा कि आज समाज में यह धारणा बढ़ रही है कि सब कुछ गलत हो रहा है।हालांकि हर नकारात्मक पहलू के पीछे समाज में 40 गुना अधिक सकारात्मक और सराहनीय सेवा कार्य हो रहे हैं। संघ प्रमुख ने कहा कि इन प्रयासों के बारे में जागरूकता फैलाना आवश्यक है, क्योंकि सेवा ही समाज में विश्वास को स्थायी बनाती है।”
उन्होंने महान संत रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा का उल्लेख करते हुए अहंकार के महत्व को समझाया। आरएसएस प्रमुख ने कहा, “रामकृष्ण परमहंस के अनुसार, हर व्यक्ति में दो ‘मैं’ होते हैं—कच्चा और पका। व्यक्ति को पके हुए ‘मैं’ को अपनाना चाहिए और कच्चे ‘मैं’ (अहंकार) से दूर रहना चाहिए। यदि कोई कच्चे ‘मैं’ के साथ जीवन जीता है, तो वह गड्ढे में गिर सकता है।”
‘भारत का विकास केवल सेवा तक सीमित नहीं है’
भागवत ने समाज के सभी वर्गों को सशक्त करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत का विकास केवल सेवा तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा कि सेवा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि नागरिक देश के विकास में योगदान देने में सक्षम बनें। उन्होंने कहा, “यही सक्षम नागरिक राष्ट्र की प्रगति को आगे बढ़ाते हैं।”
भागवत ने आरएसएस की गतिविधियों का श्रेय स्वयंसेवकों को देते हुए कहा कि सेवाभावी कार्यकर्ता ही असली प्रशंसा के पात्र हैं। उन्होंने भारत विकास परिषद के विकलांग केंद्र की सराहना करते हुए कहा कि यह केंद्र विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों की मदद करता है, जिसमें मॉड्यूलर पैर, कैलिपर्स और कृत्रिम अंग प्रदान किए जाते हैं।
मोहन भागवत का 3 बच्चे पैदा करने वाला बयान भी रहा चर्चा में
गौरतलब है कि इससे पहले उन्होंने देश की जनसंख्या नीति पर चर्चा करते हुए कहा था कि समाज को संतुलित रखने के लिए कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए। उन्होंने धुनिक जनसंख्या विज्ञान का हवाला देते हुए कहा था कि जब किसी समाज की जनसंख्या (प्रजनन दर) 2.1 से नीचे चली जाती है तो वह समाज धरती से लुप्त हो जाता है। इस तरह से कई भाषाएं और समाज नष्ट हो गए। जनसंख्या 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए। हमारे देश की जनसंख्या नीति 1998 या 2002 में तय की गई थी। इसमें यह भी कहा गया है कि किसी समाज की जनसंख्या 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए। देश की जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 होनी चाहिए। यह संख्या समाज को जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण है।”