बेंगलुरुः कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने मुस्लिमों को सार्वजनिक ठेकों में 4 प्रतिशत आरक्षण देने वाले ‘कर्नाटक पारदर्शिता सार्वजनिक खरीद (संशोधन) विधेयक’ को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति के लिए भेज दिया है। राज्यपाल का कहना है कि यह संशोधन संविधान के उस प्रावधान का उल्लंघन कर सकता है, जो धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता।

राजभवन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "प्रस्तावित संशोधन, जो पिछड़ा वर्ग श्रेणी-II(बी) के तहत केवल मुस्लिम समुदाय को शामिल करता है, उसे धर्म आधारित आरक्षण के रूप में देखा जा सकता है।"

राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि "संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 धर्म के आधार पर आरक्षण को निषिद्ध करते हैं और किसी भी प्रकार की सकारात्मक कार्रवाई केवल सामाजिक-आर्थिक आधार पर होनी चाहिए।"

यह विधेयक मार्च महीने में कर्नाटक विधानसभा में पारित किया गया था। इसका उद्देश्य मुस्लिमों को सरकारी ठेकों में 4 प्रतिशत आरक्षण देना है।

भाजपा और जनता दल (सेकुलर) ने विधेयक को बताया असंवैधानिक

हालांकि, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्युलर) ने इस विधेयक को "असंवैधानिक" करार दिया था और राज्यपाल से इसे खारिज करने की मांग की थी। इन दलों का कहना है कि यह विधेयक "समाज में ध्रुवीकरण" पैदा करेगा।

गौरतलब है कि भारत में धार्मिक आधार पर आरक्षण का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा कुछ मुस्लिम समुदायों (जैसे मोमिन और जुलाहा) को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों में शामिल किया गया है।

इस विधेयक की जड़ें सिद्धारमैया के पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल से जुड़ी हैं, जब अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए नागरिक कार्यों में 24 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव दिया गया था। बाद में, 2025 में इसे पिछड़े वर्गों तक विस्तारित किया गया। कांग्रेस का कहना है कि मुस्लिम समुदाय को ओबीसी की एक उपश्रेणी के रूप में शामिल किया गया है। वहीं, भाजपा का तर्क है कि यह विधेयक धार्मिक आधार पर आरक्षण देता है, जो कि संविधान के विपरीत है। 

राज्यपाल ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए इस विधेयक को राष्ट्रपति को भेजने का निर्णय लिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की शक्तियों की सीमा स्पष्ट की है। अदालत ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा वर्षों तक विधेयकों को रोके रखने की आलोचना करते हुए यह भी कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर एक महीने के भीतर निर्णय लें, और यदि विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजना है तो तीन महीने की समय सीमा के भीतर भेजा जाए।