बेंगलुरुः कर्नाटक में अमीर मंदिरों पर कर (टैक्स) लगाने संबंधी एक विवादित विधेयक को राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति के लिए भेज दिया है। यह कदम उस समय आया है जब कुछ सप्ताह पहले राज्यपाल ने 'कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ न्यास (संशोधन) विधेयक, 2024' को स्पष्टीकरण की मांग के साथ राज्य सरकार को लौटा दिया था।

विधेयक को इस साल विधानसभा और विधान परिषद दोनों में पारित किया जा चुका है, लेकिन मार्च से यह लंबित पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश में राज्यपालों को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने के लिए बाध्य किए जाने के बाद अब मामला राष्ट्रपति के पास पहुंच गया है। राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेना होगा।

क्या है विधेयक का प्रस्ताव?

यह विधेयक उन मंदिरों पर 5% और 10% टैक्स लगाने का प्रस्ताव करता है, जिनकी सालाना आय क्रमशः 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये और 1 करोड़ रुपये से अधिक है। राज्य सरकार का कहना है कि इस कर से होने वाली आय को एक समेकित कोष में रखा जाएगा, जिसका उपयोग छोटे और ग्रामीण मंदिरों के रखरखाव, आर्थिक रूप से कमजोर पुजारियों की सहायता, उनके बच्चों की शिक्षा और कल्याण, तथा ‘सी श्रेणी’ के उन मंदिरों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने में किया जाएगा जिनकी वार्षिक आय 5 लाख रुपये से कम है।

राजनीतिक विरोध और विवाद

इस विधेयक को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस सरकार पर हिंदू विरोधी नीतियाँ अपनाने का आरोप लगाया है। भाजपा के कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष विजयेंद्र येदयुरप्पा ने कहा, "कांग्रेस सरकार अपने खाली खजाने भरने के लिए मंदिरों को निशाना बना रही है।"

भाजपा ने यह भी सवाल उठाया कि यह कर केवल हिंदू मंदिरों से ही क्यों वसूला जा रहा है, अन्य धार्मिक संस्थानों पर यह नियम क्यों नहीं लागू किया गया? विपक्ष को आशंका है कि इस टैक्स के चलते धार्मिक असंतोष, भ्रष्टाचार और कोष के दुरुपयोग की संभावनाएँ बढ़ेंगी।

गौरतलब है कि मार्च में जब यह विधेयक पारित हुआ था, तब भाजपा ने कांग्रेस पर कई आरोप लगाए थे। इसके जवाब में कर्नाटक के परिवहन मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामलिंगा रेड्डी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि "सरकार मंदिरों से कोई पैसा अपने लिए नहीं ले रही है। इस राशि का उपयोग पुजारियों और उनके बच्चों की बेहतर शिक्षा और कल्याण के लिए किया जाएगा।"

उन्होंने पलटवार करते हुए यह भी याद दिलाया कि भाजपा की सरकार के समय भी इसी तरह की व्यवस्था लागू थी। तब 5 लाख से 25 लाख रुपये वार्षिक आय वाले मंदिरों से 5% और 25 लाख रुपये से अधिक आय वाले मंदिरों से 10% अंशदान लिया जाता था। रेड्डी ने आरोप लगाया कि भाजपा का मकसद सिर्फ लोगों को भ्रमित करना और धार्मिक ध्रुवीकरण करना है।