बेंगलुरुः कर्नाटक की पिछली भाजपा सरकार पर ठेके में 40 प्रतिशत कमीशन के आरोपों की जांच कर रहे न्यायमूर्ति नागमोहन दास आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में कई गंभीर अनियमितताओं की ओर इशारा किया गया है। हालांकि, आयोग ने कहा है कि कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ (केएससीए) द्वारा लगाए गए आरोप “शत-प्रतिशत सत्य नहीं” हो सकते हैं, लेकिन सरकारी निविदाओं की प्रक्रिया में सार्वजनिक शिकायतों की जांच से भ्रष्टाचार के प्रथम दृष्टया प्रमाण मिले हैं।

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा एक्सेस की गई आयोग की अंतरिम रिपोर्ट के सारांश के अनुसार, 2022-23 में पांच विभागों द्वारा 1.54 लाख करोड़ रुपये के टेंडर जारी किए गए, जो पिछले वित्तीय वर्ष 49,474 करोड़ रुपये के मुकाबले 300 प्रतिशत अधिक हैं। यह अवधि राज्य में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले की है, जब भाजपा सरकार सत्ता में थी।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ द्वारा लगाए गए '40 प्रतिशत कमीशन' के आरोप शत-प्रतिशत सत्य नहीं प्रतीत होते। संभव है कि संघ अपने दावों को पर्याप्त रूप से सिद्ध नहीं कर पाया हो। साथ ही, संघ के सदस्य प्रतिशोध की आशंका के कारण असहज और चिंतित भी रहे हों। हालांकि, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि जब सार्वजनिक शिकायतों की जांच की गई तो निविदा प्रक्रिया के पहले और बाद में देरी, नियमों की अवहेलना और भाई-भतीजावाद जैसे तत्व प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार की ओर संकेत करते हैं।

किन विभागों की जांच हुई और क्या अनियमितताएं मिलीं?

जांच लोक निर्माण, जल संसाधन, शहरी विकास, ग्रामीण विकास व पंचायत राज और लघु सिंचाई विभागों में हुई। जुलाई 2019 से मार्च 2023 के बीच इन विभागों द्वारा कराए गए 4.7 लाख कार्यों में से 1,719 कार्यों को विशेष रूप से जांच के लिए चुना गया।

जांच में यह पाया गया कि 8 प्रतिशत कार्य प्रशासनिक स्वीकृति के बिना किए गए, 14 प्रतिशत में टेंडर प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ, जबकि 10 प्रतिशत में गुणवत्ता मानकों की अनदेखी पाई गई। 13 प्रतिशत कार्यों में बिल कटौती में अनियमितता थी, वहीं 17 प्रतिशत कार्यों में सिक्योरिटी डिपॉजिट समय पर नहीं लौटाई गई। इसके अलावा, 23 प्रतिशत कार्यों में गलत हेड के तहत भुगतान किया गया। मनरेगा के तहत किए गए कार्यों में भी 12-14 प्रतिशत कार्य बिना कार्ययोजना, प्रशासनिक और तकनीकी स्वीकृति के कराए गए।

ई-प्रोक्योरमेंट का उल्लंघन

50 लाख रुपये से अधिक के कार्यों में भी ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर केवल 1 प्रतिशत से 6 प्रतिशत निविदाएं ही अपलोड की गईं, जो स्पष्ट नियम उल्लंघन है और पारदर्शिता की भारी कमी को दर्शाता है। 

40 प्रतिशत कमीशन का मुद्दा 2023 चुनावों से पहले कांग्रेस का प्रमुख प्रचार बिंदु था। अब सिद्धारमैया सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) गठित कर दी है जो आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करेगी।

आयोग ने क्या सिफारिशें की है?

आयोग ने सिफारिश की है कि प्राइवेट एजेंसियों द्वारा तैयार डीपीआर की कई स्तरों पर सरकारी समीक्षा होनी चाहिए। यदि डीपीआर लागत में 15% से अधिक भिन्नता पाई जाती है तो संबंधित एजेंसी को ब्लैकलिस्ट किया जाए। इसके अलावा, सभी कार्यों के बिल 60 दिनों में अनिवार्य रूप से पास किए जाएं क्योंकि आयोग ने पाया कि पूरे किए गए कार्यों के लगभग 40 प्रतिशत बिलों का भुगतान होने में दो साल तक का समय लगा।

बता दें कि सिद्धारमैया सरकार ने अगस्त 2023 में न्यायमूर्ति नागमोहन दास की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। इसका उद्देश्य '40 प्रतिशत किकबैक' के आरोपों और लोक निर्माण, जल संसाधन, शहरी विकास, ग्रामीण विकास व पंचायत राज तथा लघु सिंचाई विभागों में कार्यान्वयन के दौरान हुई अनियमितताओं की जांच करना था।

न्यायमूर्ति दास ने अपनी जांच के तहत 26 जुलाई 2019 से 31 मार्च 2023 के बीच इन पांच विभागों द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का मूल्यांकन किया। यह रिपोर्ट 5 मार्च 2024 को सरकार को सौंपी गई। रिपोर्ट में सामने आए तथ्यों को गंभीरता से लेते हुए कर्नाटक सरकार ने पिछले सप्ताह एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है, जो उजागर हुई अनियमितताओं की विस्तृत जांच करेगा।