जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव मंजूर, आरोपों की जांच के तीन सदस्यीय पैनल गठित

मामला 14 मार्च का है, जब जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे। उनके आवास पर आग लगने के बाद अग्निशमन कर्मियों को वहाँ से भारी मात्रा में जला हुआ और आधा जला हुआ कैश मिला था।

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नई दिल्ली: लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंगलवार को हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। वहीं आरोपों की जाँच के लिए एक तीन सदस्यीय पैनल का ऐलान किया है। ये आरोप इस साल मार्च में उनके आवास पर लगी आग के बाद बड़ी मात्रा में जला हुआ और आधा जला हुआ कैश मिलने से जुड़े हैं। रिपोर्टों के अनुसार प्रस्ताव पर कुल 146 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें रविशंकर प्रसाद समेत विपक्ष के कई नेता शामिल हैं।

मामला 14 मार्च का है, जब जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे। उनके आवास पर आग लगने के बाद अग्निशमन कर्मियों को वहाँ से भारी मात्रा में जला हुआ और आधा जला हुआ कैश मिला था। इस घटना के बाद उन पर गंभीर आरोप लगे थे।

पैनल में कौन-कौन शामिल हैं?

लोकसभा स्पीकर द्वारा गठित इस तीन सदस्यीय पैनल में - सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंदर मोहन और वरिष्ठ अधिवक्ता बी.वी. आचार्य शामिल हैं। रिपोर्टों के अनुसार, पैनल की रिपोर्ट आने तक महाभियोग का प्रस्ताव लंबित रहेगा।

इससे पहले, मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने इस मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एक आंतरिक जाँच समिति का गठन किया था। इस समिति ने उन्हें दुराचार का दोषी पाया था। 21 मार्च को CJI ने उनसे लिखित जवाब माँगा था, जिसके जवाब में जस्टिस वर्मा ने आरोपों को खारिज कर दिया था।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आंतरिक जाँच पैनल की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने की माँग की थी। जस्टिस वर्मा की याचिका, जिसका शीर्षक 'XXX बनाम भारत संघ' था, में उनकी पहचान उजागर नहीं की गई थी।

जज के खिलाफ SC ने उठाए थे तीखे सवाल

30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के आचरण पर कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि उनका आचरण विश्वास पैदा नहीं करता। कोर्ट ने CJI के अधिकार का भी बचाव किया और कहा कि वे केवल "डाकघर" नहीं हो सकते, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनके कुछ कर्तव्य भी होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने उनसे तीखे सवाल पूछते हुए पूछा था कि जब आंतरिक जाँच समिति गठित की गई थी, तब उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया और अब जब वह दोषी पाए गए हैं, तो वह अदालत में क्यों आए हैं। कोर्ट ने कहा कि उन्हें इस पैनल की रिपोर्ट के खिलाफ पहले ही अदालत में आना चाहिए था।

 

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