कैश कांड: जांच रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जस्टिस वर्मा, महाभियोग प्रस्ताव लाने की लोकसभा में भी तैयारी

सूत्रों के अनुसार 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के पहले सप्ताह में जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की मांग वाला महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया जा सकता है।

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नई दिल्ली: कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा ने आंतरिक जाँच पैनल के निष्कर्षों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की गई है। इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर जले हुए नोट मिलने के बाद से ही वे विवादों के केंद्र में हैं।

जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में उल्लेख किया है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया और उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया। अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने यह भी उल्लेख किया कि तत्कालीन सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई से वंचित कर दिया था।

क्या है जस्टिस वर्मा से जुड़ा विवाद?

इस साल मार्च में राष्ट्रीय राजधानी स्थित वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना हुई थी। उस समय वे दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। उस दौरान उनके आवास में एक कमरे में बड़ी मात्रा में नकदी पाई गई थीं। बाद में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ट्रांसफर दे दिया गया और जस्टिस संजीव खन्ना के आदेश पर आंतरिक जांच शुरू की हई। इस जांच के बाद उन पर महाभियोग चलाने की सिफारिश की गई।

हालाँकि वर्मा ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित जाँच समिति ने निष्कर्ष निकाला कि वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोररूम पर 'गुप्त नियंत्रण' था जहाँ से नकदी मिली थी। उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया। जस्टिस वर्मा के इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद, जस्टिस खन्ना ने यह मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेज दिया।

न्यायमूर्ति वर्मा मामला: पैनल रिपोर्ट में क्या है?

लीक हुई गोपनीय न्यायिक जाँच रिपोर्ट में वर्मा के आवास पर लगी आग और कथित तौर पर नोटों के जलने की जाँच में घरेलू कर्मचारियों की गवाही और स्वतंत्र गवाहों के बयानों के बीच भारी विरोधाभास सामने आया है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिकृत इस आंतरिक जाँच में घटनाक्रम के सामने आने के बाद कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल में गंभीर खामियों की भी पहचान की गई। पारदर्शिता, निगरानी और न्यायिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाए गए।

न्यायमूर्ति शील नागू, न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय समिति द्वारा 4 मई, 2025 को संजीव खन्ना को सौंपी गई 64 पन्नों की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के नई दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास, 30 तुगलक क्रीसेंट के स्टोररूम में बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी पाई गई थी।

फोरेंसिक और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के आधार पर समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि 15 मार्च की सुबह, मामला सार्वजनिक होने से ठीक पहले पैसों को कथित तौर पर गुप्त रूप से हटा दिया गया था। 

लोकसभा में पेश होगा महाभियोग प्रस्ताव?

सूत्रों के अनुसार 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के पहले सप्ताह में जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की मांग वाला महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में लाया जा सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, 'सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाना संसद का अधिकार क्षेत्र है। यह सर्वोच्च न्यायालय में चल रही गतिविधियों से स्वतंत्र है।'

रिजिजू हटाने का प्रस्ताव लाने से पहले इस मामले पर आम सहमति बनाने के लिए सभी दलों के नेताओं से भी बात कर रहे हैं। रिजिजू ने कहा, 'भ्रष्टाचार के मुद्दों पर उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर महाभियोग राजनीतिक नहीं हो सकता। सरकार को सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि इस पर दलों के बीच मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं है।'

ऐसा माना जा रहा है कि रिजिजू पहले ही विपक्षी नेताओं को बता चुके हैं कि इस मामले पर एकमत रुख अपनाना होगा। गौरतलब है कि निष्कासन प्रस्ताव के नोटिस पर विभिन्न दलों के सांसदों के हस्ताक्षर होंगे। महाभियोग प्रस्ताव पर विचार के लिए निचले सदन में कम से कम 100 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।

सांसदों द्वारा प्रस्ताव रखने के बाद, सदन का पीठासीन अधिकारी उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। किसी भी सदन द्वारा महाभियोग प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद अध्यक्ष/सभापति को तीन-सदस्यीय जाँच समिति गठित करनी होती है। इसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कर सकते हैं। इसके अलावा इसमें किसी भी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अध्यक्ष/सभापति की राय में एक 'कानून के प्रतिष्ठित जानकार' शामिल होते हैं। यदि समिति दोषी पाती है, तो समिति की रिपोर्ट उस सदन द्वारा स्वीकृत की जाती है जिसमें इसे प्रस्तुत किया गया था, और न्यायाधीश को हटाने पर बहस होती है। सूत्रों के मुताबिक सरकार मानसून सत्र में ही निष्कासन प्रक्रिया पूरी करने के तरीके तलाश रही है।

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