लखनऊः दो दशक पहले एक पत्रकार की हत्या करने के लिए लखनऊ की एक अदालत ने कुख्यात राजा कोलंदर और उसके साले वक्षराज कोल को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दोनों को भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत दोषी पाया, जिनमें अपहरण, डकैती के साथ हत्या और साक्ष्य मिटाने जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं।
अदालत ने दोनों पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जिसमें से 40 प्रतिशत राशि पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के रूप में दी जाएगी। यह भुगतान लखनऊ के जिलाधिकारी के माध्यम से किया जाएगा। सरकारी वकील एमके सिंह ने अदालत को बताया कि यदि दोषी जुर्माना नहीं भरते हैं, तो उन्हें अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
सरकारी वकील सिंह ने बताया कि अदालत ने राजा कोलंदर और उसके सहयोगी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 364 (हत्या के उद्देश्य से अपहरण), 396 (हत्या के साथ डकैती), 201 (साक्ष्य नष्ट करना), 412 (डकैती से प्राप्त संपत्ति को बेईमानी से रखना) और 404 (मृत व्यक्ति की संपत्ति का गबन) के तहत दोषी ठहराया है। इन सभी धाराओं को धारा 34 के साथ पढ़ा गया, जो यह दर्शाता है कि यह अपराध सुनियोजित और सामूहिक मंशा से किए गए थे।
चार्जशीट 21 मार्च 2001 को दाखिल की गई थी, जिसमें राजा कोलंदर, वक्षराज कोल, अदालत सिंह कोल, फूलन देवी, दिलीप गुप्ता और डड्डन सिंह को आरोपी बनाया गया था। हालांकि कानूनी जटिलताओं के कारण मुकदमे की सुनवाई मई 2013 में शुरू हो सकी। सह-अभियुक्त अदालत सिंह और फूलन देवी के मामले 2001 में अलग कर दिए गए, जबकि दिलीप गुप्ता की अनुपस्थिति के कारण उसका मामला भी अलग कर दिया गया। डड्डन सिंह की 2017 में मृत्यु हो जाने के कारण उसके विरुद्ध कार्यवाही समाप्त हो गई। सरकारी पक्ष ने 12 गवाहों को प्रस्तुत किया, जिनमें मुख्य गवाह शिकायतकर्ता शिव हर्ष सिंह के भाई शिव शंकर सिंह थे।
मामला क्या था?
24 जनवरी 2000 को मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव अपनी कार से रीवा (मध्यप्रदेश) के लिए रवाना हुए थे। उन्होंने लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के पास से छह यात्रियों को वाहन में बिठाया था, जिनमें एक महिला भी शामिल थी। हरचंदपुर (रायबरेली) में वे चाय के लिए रुके थे, जहां शिव शंकर सिंह ने उनसे बातचीत की और यात्रियों में से एक को बीमार देखा। इसके बाद न तो वाहन मिला और न ही यात्री। तीन दिन बाद जब न लौटने की खबर मिली, तो नाका थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई गई। कुछ ही दिनों में इलाहाबाद के शंकरगढ़ जंगल में दोनों के क्षत-विक्षत शव बरामद हुए और पोस्टमार्टम से हत्या की पुष्टि हुई।
पुलिस ने मनोज का कोट राजा कोलंदर के घर से बरामद किया, जिसमें रायबरेली के दर्जी का लेबल लगा था। शिव शंकर सिंह ने अदालत में गवाही दी कि उन्होंने राजा कोलंदर, उसकी पत्नी फूलन देवी और अन्य आरोपियों को वाहन में देखा था और बाद में अदालत में उनकी पहचान की। एक अन्य गवाह अमरनाथ सिंह ने भी घटना के दिन आरोपियों को देखने की बात कही।
पुलिस ने सिंह के मोबाइल फोन से मिले सुरागों के आधार पर कलंदर को गिरफ्तार किया। पूछताछ में उसने हत्या की बात स्वीकार की और बताया कि सिंह को उसकी आपराधिक गतिविधियों- जिनमें हत्या और लूट शामिल थीं- की जानकारी हो गई थी। सिंह ने इन खुलासों को सार्वजनिक करने की धमकी दी थी, जिससे घबराकर उसने यह कदम उठाया।
कलंदर ने शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक फार्महाउस में पत्रकार सिंह की हत्या की थी। वहीं अपने रिश्तेदार वक्षराज कोल के साथ मिलकर सिंह का सिर काटा और शव को मध्य प्रदेश के रीवा जिले के एक तालाब के पास जमीन में दफना दिया।
पुलिस को जांच के दौरान उसके फार्महाउस से एक नरकंकाल मिला जिसके बाद यह खुलासा हुआ कि कलंदर पत्रकार और उसके ड्राइवर की हत्या से पहले भी 12 से अधिक लोगों की हत्या कर चुका था। पुलिस का दावा है कि वह तांत्रिक गतिविधियों के तहत शवों के अंगों को खाने और फिर उन्हें जमीन में दफनाने जैसे कृत्य करता था। वह सिर से भेजा निकालकर उसका सूप बनाकर पीता था और नरमुंड जमीन में दफना देता था।
राजा कोलंदर: अपराध की दुनिया का कुख्यात नाम
राजा कोलंदर, जिसका असली नाम राम निरंजन कोल है, पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक आयुध कारखाने में काम करने वाला कर्मचारी था और कोल जनजाति का सदस्य है। वह देश के सबसे सनसनीखेज अपराधों में शामिल रहा है।
वह 2012 में पत्रकार की निर्मम हत्या के मामले में अपने साले के साथ दोषी ठहराया गया था। उस मामले ने तब पूरे देश को हिला दिया था जब पुलिस ने कोलंदर के फार्महाउस से 14 मानव खोपड़ियाँ बरामद की थीं। हत्या के बाद शव के अंगों को काटकर दफनाया गया था।
हालांकि नरभक्षण (कैनिबलिज़्म) के आरोप व्यापक रूप से लगे, लेकिन अदालत में ये साबित नहीं हो सके। मनोचिकित्सकों ने उसे मनोविकृति (psychopathy) से ग्रस्त बताया था, लेकिन न्यायालय ने उसे मुकदमे के लिए मानसिक रूप से सक्षम माना। राजा कोलंदर खुद को राजा मानता था और उसने अपनी पत्नी का नाम फूलन देवी, और बेटों के नाम अदालत तथा जमानत रखे थे।