नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सिंधु जल समझौता सस्पेंड कर दिया। इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी, जिसमें राष्ट्रीय हितों को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ा दिया गया था।
जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट कर कहा कि देश को यह जानना चाहिए कि जब पूर्व पंडित नेहरू ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, तो उन्होंने एकतरफा तौर पर सिंधु बेसिन का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को सौंप दिया था, जिससे भारत के पास केवल 20 प्रतिशत हिस्सा रह गया था। यह एक ऐसा फैसला था, जिसने भारत की जल सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को हमेशा के लिए खतरे में डाल दिया था।
उन्होंने आगे कहा कि सबसे भयावह पहलू यह था कि उन्होंने यह काम भारतीय संसद से परामर्श किए बिना किया था। इस संधि पर सितंबर 1960 में हस्ताक्षर किए गए थे। हालांकि, इसे संसद में केवल दो महीने बाद नवंबर में और वह भी केवल दो घंटे की औपचारिक चर्चा के लिए रखा गया था।
The Indus Water Treaty, 1960, was one of the biggest blunders of former PM Jawaharlal Nehru that kept national interest at the altar of personal ambitions.
— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) August 18, 2025
The nation must know that when former Pandit Nehru signed the Indus Waters Treaty with Pakistan, he unilaterally handed…
उन्होंने कहा कि इतिहास को इसे वही कहना होगा जो यह था, नेहरू का हिमालयन ब्लंडर। एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने संसद की अवहेलना की, भारत की जीवनरेखा को दांव पर लगा दिया और पीढ़ियों तक भारत के हाथ बांध दिए। आज भी, अगर प्रधानमंत्री मोदी का साहसिक नेतृत्व और 'राष्ट्र प्रथम' के प्रति उनकी प्रतिबद्धता न होती, तो भारत एक व्यक्ति के गलत आदर्शवाद की कीमत चुकाता रहता। सिंधु जल संधि को स्थगित करके प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा की गई एक और गंभीर ऐतिहासिक भूल को सुधारा है।
'सहयोगियों के विरोध के बावजूद नेहरू ने सिंधु जल संधि का बचाव किया'
नड्डा ने आगे कहा कि पंडित नेहरू ने अपनी पार्टी के सहयोगियों के कड़े विरोध के बावजूद सिंधु जल संधि को भारत के लिए लाभकारी बताते हुए उसका बचाव किया। अगर इतना ही काफी नहीं था, तो उन्होंने यह पूछकर देश की पीड़ा को कम आंका, "किसका बंटवारा? एक बाल्टी पानी का?" उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने भारत के महत्वपूर्ण संसाधनों को सौंपने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों के मामले में संसदीय अनुमोदन की परवाह किए बिना ही यह निर्णय ले लिया था। चोट पर नमक छिड़कते हुए, उन्होंने राष्ट्रीय हित की बात करने वाले साथी सांसदों की राय को 'बहुत संकीर्ण' बताकर उनका उपहास किया।
उन्होंने कहा कि एक युवा सांसद, अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू की सिंधु जल संधि की कड़ी आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि प्रधानमंत्री का यह तर्क कि पाकिस्तान की अनुचित मांगों के आगे झुकने से मित्रता और सद्भावना स्थापित होगी, त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने तर्क दिया कि सच्ची मित्रता अन्याय पर आधारित नहीं हो सकती। अगर पाकिस्तान की अनुचित मांगों का विरोध करने से रिश्ते तनावपूर्ण होते हैं, तो ऐसा ही हो। अटल ने राष्ट्रीय हित को हर चीज से ऊपर रखने में स्पष्टता दिखाई थी।
जेपी नड्डा ने आगे कहा कि कांग्रेस के एसी गुहा ने भारत के विदेशी मुद्रा संकट के दौरान पाकिस्तान को 83 करोड़ रुपए स्टर्लिंग में भुगतान करने की आलोचना की। उन्होंने इसे 'मूर्खता की पराकाष्ठा' बताया। गुहा ने चेतावनी दी कि जिस तरह से संसद की अवहेलना की गई है, 'यह एक अधिनायकवादी सरकार का रवैया हो सकता है।' उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि "जब पाकिस्तान भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने के मूड में नहीं है, तो भारत को पाकिस्तान को खुश करने के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों देनी चाहिए?"
उन्होंने आगे कहा कि यह इतनी बड़ी भूल थी कि पंडित नेहरू की अपनी पार्टी के सांसदों ने भी इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने बहुत कुछ किया, बदले में कुछ भी नहीं पाया। कांग्रेस के अशोक मेहता ने इस संधि की कड़ी आलोचना की और इसे देश के लिए 'दूसरे विभाजन' जैसा बताया। उनके शब्दों ने न सिर्फ उनकी अपनी पार्टी के भीतर, बल्कि पूरे विपक्ष और पूरे देश में नेहरू के पूर्ण समर्पण पर महसूस किए गए दुःख और सदमे को व्यक्त किया।
(यह खबर समाचार एजेंसी आईएएनएसफीड द्वारा प्रकाशित है। शीर्षक बोले भारत डेस्क द्वारा दिया गया है)