नई दिल्ली: साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों के एक मामले में दिल्ली की एक कोर्ट ने कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया है। दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने दंगों के दौरान दिल्ली के पुल बंगश गुरुद्वारे में तीन सिखों को जलाकर मार दिए जाने और गुरुद्वारा साहिब में आग लगाने के मामले में ये आदेश दिए हैं।
इससे पहले सीबीआई ने मई में टाइटलर के खिलाफ दायर अपने आरोप पत्र में उन पर 1 नवंबर, 1984 को पुल बंगश गुरुद्वारे के पास इकट्ठा हुई भीड़ को उकसाने और हिंसा के लिए भड़काने का आरोप लगाया था।
कोर्ट ने जगदीश टाइटलर के खिलाफ आईपीसी की 302 (हत्या), 147 (दंगे), 109 (अपराध के लिए उकसाने) और 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) सहित अन्य धाराओं के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया है। आइए जानते हैं 1984 में क्या हुआ था और फिर सिख दंगों के बाद जांच कैसे आगे बढ़ी?
ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और दंगे
खालिस्तानी समर्थक और आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अपना पनाहगाह बना लिया था। जून 1984 में उस पर एक्शन के लिए भारतीय सेना आखिरकार स्वर्ण मंदिर में दाखिल हो गई। करीब एक हफ्ते चले ऑपरेशन के बाद भिंडरावाले को मार डाला गया। इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार कहा गया। हालांकि स्वर्ण मंदिर में सेना के दाखिल होने, गोलीबारी और खूनखराबे ने कई सिखों को नाराज कर दिया।
कई सिखों के लिए यह उनके धर्म और समुदाय का अपमान था। बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए हरी झंडी दी थी। इसलिए उन्हें भी इसके लिए जिम्मेदार माना गया। सिख समुदाय में उनके प्रति नाराजगी उभरी। इसी के बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के दो सिख अंगरक्षकों ने प्रधानमंत्री को उस समय गोली मार दी जब वह अपने सफदरजंग रोड स्थित घर के लॉन से जा रही थीं। जाहिर तौर पर ऐसा ऑपरेशन ब्लू स्टार का ‘बदला’ लेने के लिए किया गया।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में सिखों विरोधी दंगी शुरू हुए। राजधानी दिल्ली करीब तीन दिनों तक जलती रही, नरसंहार हुआ। बताया जाता है कि लगभग 3,000 निर्दोष सिखों की हत्या कर दी गई। इस दौरान कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर हिंसा को भड़काने और भीड़ को उकसान और इसका नेतृत्व करने के आरोप लगे। कई निर्दोष सिखों की पहचान कर उन्हें निशाना बनाया गया। सबसे दुखद बात ये रही कि इसमें राज्य मशीनरी का भी इस्तेमाल किया गया। इसी हिंसा के संदर्भ में जगदीश टाइटलर भी आरोपी हैं। उस समय 40 साल के रहे टाइटलर कांग्रेस सांसद भी थे।
दंगों की जांच, पुल बंगश गुरुद्वारे में हिंसा और टाइटलर पर आरोप
सिख विरोधी दंगों को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगे। इसके बावजूद इन दंगों की आधिकारिक जांच में कई सालों तक कोई खास प्रगति नहीं हुई। इसके बाद साल 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1984 के सिख विरोधी दंगों पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जीटी नानावटी के नेतृत्व में एक आयोग बनाया। आयोग ने 2005 में अपनी रिपोर्ट दी। इस समय तक कांग्रेस की सरकार एक बार फिर केंद्र में आ चुकी थी और टाइटरल केंद्रीय मंत्री थे।
नानावती आयोग की रिपोर्ट में 1 नवंबर 1984 को पुल बंगश गुरुद्वारे में जो कुछ हुआ उसके बारे में बताया गया है। इसमें कहा गया है, ‘दोपहर लगभग 1.30 बजे करीब 3000 से 4000 लोगों की एक बड़ी भीड़ ने गुरुद्वारा सिंह सभा, पुल बगाश पर हमला किया…भीड़ ने पेट्रोल बम फेंके और गुरुद्वारे पर मिट्टी का तेल छिड़कते हुए आग लगा दी।’
रिपोर्ट कहती है कि भीड़ ने तीन सिख लोगों को जिंदा जला दिया और पुलिस ने हत्याओं को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। इसमें प्रत्यक्षदर्शी गवाहों का हवाला देते हुए कहा गया है कि ‘भीड़ का नेतृत्व कांग्रेस (आई) सांसद जगदीश टाइटलर कर रहे थे।’
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘जगदीश टाइटलर, राम लाल, काका बाली, राम चंदर नागोरिया और तरविंदर सिंह बेदी जो सभी कांग्रेस (आई) नेता या कार्यकर्ता थे, वे किसी न किसी तरह से उत्तरी दिल्ली में सिखों या उनकी संपत्तियों पर हुए हमलों में शामिल थे।’
इसमें कहा गया है कि ‘यह निष्कर्ष रिकॉर्ड करना सुरक्षित था कि जगदीश टाइटलर के खिलाफ मामले में इस आशय के विश्वसनीय सबूत हैं कि संभवतः सिखों पर हमले आयोजित करने में उनका हाथ था।’
आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए सिफारिश की कि सरकार अब आगे की कार्रवाई करे। नानावती आयोग की रिपोर्ट जब आई थी, उस समय टाइटलर 2005 में केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य थे। रिपोर्ट के आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। टाइटलर वैसे लगातार यही दलील देते रहे हैं कि हिंसा के दिन वे पुल बंगश इलाके में मौजूद नहीं थे, और वह इंदिरा गांधी के आवास पर थे जहां उनका शव रखा गया था।
टाइटलर के खिलाफ सीबीआई जांच
नानावती आयोग की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर 22 नवंबर 2005 को टाइटलर के खिलाफ सीबीआई द्वारा मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद 12 फरवरी 2015 को गृह मंत्रालय ने 1984 की हिंसा के अन्य मामलों के अलावा टाइटलर की भूमिका की फिर से जांज करने के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया। आगे की जांच के बाद सीबीआई ने पिछले साल मई में एक आरोपपत्र दाखिल किया। इस बार जांच में सीबीआई ने टाइटलर की आवाज का एक सैंपल भी लिया जो सबूतों के मिलान के लिए था। इन्हीं जांचों के आधार पर सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में दावा किया कि टाइटलर ने जमा हुई भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया था।