जादवपुर यूनिवर्सिटी से बंगाल में उठे 'सियासी बवंडर' की पूरी कहानी क्या है? क्यों मचा है हंगामा...

छात्रसंघ चुनावों की बहाली की मांग को लेकर छात्रों और राजनीतिक दलों के बीच तनाव बढ़ रहा है। वामपंथी छात्र संगठन SFI ने मंत्री बसु के इस्तीफे की मांग की है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि विरोध प्रदर्शन पूर्व नियोजित था।

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Photograph: (IANS)

कोलकाताः पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों जादवपुर यूनिवर्सिटी (जेयू) में हुई घटनाओं के केंद्र में है। 1 मार्च को राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु के साथ छात्रों की झड़प और उसके बाद के घटनाक्रम ने पूरे राज्य में छात्रसंघ चुनावों की बहाली को लेकर बहस तेज कर दी है। इस विवाद ने एक बार फिर राज्य के कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसरों में सालों से रुकी हुई छात्रसंघ चुनाव प्रक्रिया को सुर्खियों में ला दिया है।

शुक्रवार को ब्रत्या बसु जादवपुर यूनिवर्सिटी में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से जुड़ी पश्चिम बंगाल कॉलेज और यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में शामिल होने पहुंचे थे। तभी वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और अन्य संगठनों के छात्रों ने शिक्षा मंत्री की कार को घेर लिया। छात्रों की मांग थी कि राज्य सरकार तुरंत छात्रसंघ चुनावों की तारीखों का ऐलान करे। मंत्री के साथ छात्रों ने कथित रूप से धक्का-मुक्की की। उनकी कार के शीशे तोड़ दिये, जिससे मंत्री को चोटें आईं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में छुट्टी दे दी गई।

एसएफआई ने आरोप लगाया कि मंत्री के काफिले की गाड़ी ने एक छात्र को घायल कर दिया। मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (सीपीएम) ने इसे उत्तर प्रदेश के 2021 लखीमपुर खीरी घटना से जोड़ते हुए कहा कि यह सत्ता के दुरुपयोग का मामला है।

एसएफआई के राज्य समिति सदस्य शुवाजीत सरकार ने कहा कि टीएमसी से जुड़े बाहरी तत्वों ने यूनिवर्सिटी परिसर में हिंसा और तोड़फोड़ को उकसाया। उन्होंने कहा कि छात्रों ने शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु से सिर्फ शिक्षा संबंधी मुद्दों पर बातचीत की कोशिश की थी, लेकिन मंत्री ने अभद्र व्यवहार किया और गुस्से में परिसर छोड़ने की कोशिश की। शुवाजीत सरकार ने यह भी दावा किया कि बसु के काफिले के कारण दो छात्र घायल हुए हैं। उन्होंने मंत्री के इस्तीफे और उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की मांग की।

वहीं, इस घटना पर पश्चिम बंगाल सरकार के कैबिनेट मंत्री बाबुल सुप्रियो ने आरोप लगाया कि कुछ नक्सल समर्थक और वामपंथी समूह विश्वविद्यालय की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रियो ने छात्रों से अपील की कि वे अपने संस्थान को बदनाम करने वाले बाहरी तत्वों से दूर रहें और परिसर में शांति बनाए रखें। उन्होंने कहा कि सरकार विश्वविद्यालय में सुरक्षा बहाल करने और ऐसे मामलों से सख्ती से निपटने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगी। 

कब से रुके हैं छात्रसंघ चुनाव?

राज्य के ज्यादातर कॉलेज और विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव पिछले एक दशक से रुके हुए हैं। आखिरी बार 2013 में राज्यव्यापी चुनाव हुए थे, जब हरीमोहन घोष कॉलेज में नामांकन के दौरान गोलीबारी में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई थी। इसके बाद टीएमसी सरकार ने चुनावों पर छह महीने की अस्थायी रोक लगाई थी, जो अब तक जारी है।

हालांकि, 2019-20 में सरकार ने जादवपुर यूनिवर्सिटी, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी, डायमंड हार्बर वीमेन यूनिवर्सिटी और रवींद्र भारती यूनिवर्सिटी में चुनाव कराए। इनमें से जादवपुर यूनिवर्सिटी और प्रेसिडेंसी में एसएफआई ने जीत दर्ज की, जबकि टीएमसी समर्थित तृणमूल छात्र परिषद (TMCP) रवींद्र भारती में निर्विरोध जीत गई। मगर कोविड महामारी के कारण यह प्रक्रिया फिर ठप हो गई।

क्या छात्रसंघ चुनाव बहाल कराना चाहती है सरकार?

तृणमूल सरकार ने कई बार चुनाव बहाल करने की इच्छा जताई है। जुलाई 2022 में ब्रत्या बसु ने कहा था कि सरकार "स्वतंत्र और निष्पक्ष" चुनाव कराना चाहती है, लेकिन इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। पिछले साल आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों में भी छात्रसंघ चुनाव बहाली की मांग उठी थी। उस वक्त मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मार्च 2025 तक चुनाव कराने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक कोई तैयारी नहीं दिखी है।

यह मामला तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम दोनों के लिए बड़ा राजनीतिक असर डाल सकता है। एक ओर, अगर सरकार चुनाव कराने में देरी करती है, तो विपक्षी दलों को आंदोलन तेज करने का मौका मिलेगा। दूसरी ओर, अगर चुनाव होते हैं और टीएमसी बड़े कॉलेजों में हार जाती है, तो यह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।

2005 में जेयू में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की पिटाई ने सीपीएम सरकार के खिलाफ माहौल बनाया था। उसी घटना के बाद जेयू आर्ट्स फैकल्टी में एसएफआई को हार का सामना करना पड़ा था। यह हार बाद में सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों के जरिए वामपंथी शासन के पतन की भूमिका बनी।

अब सीपीएम एक बार फिर छात्र राजनीति को अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए बड़ा हथियार बना रही है। जेयू, प्रेसिडेंसी और कलकत्ता यूनिवर्सिटी जैसे परिसरों में छात्र आंदोलनों ने हमेशा वामपंथी राजनीति को मजबूत किया है।

छात्रसंघ चुनाव सिर्फ कैंपस पॉलिटिक्स का मुद्दा नहीं

सरकार पर छात्रों और विपक्षी दलों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अगर ममता बनर्जी सरकार चुनाव बहाल करने का फैसला करती है, तो TMCP को अपनी साख बचाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, चुनाव में किसी भी तरह की धांधली छात्रों के गुस्से को और भड़का सकती है।

छात्रसंघ चुनाव सिर्फ कैंपस पॉलिटिक्स का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह बंगाल की व्यापक राजनीति में सत्ता परिवर्तन के संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। अगर सीपीएम इसे जारी रखने में सफल होती है, तो यह बंगाल की राजनीति में वामपंथी दलों की वापसी की शुरुआत भी हो सकती है।

पांच एफआईआर दर्ज

घटना को लेकर अब तक पांच एफआईआर दर्ज की गई हैं और जादवपुर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र साहेल अली को गिरफ्तार किया गया है। तीन एफआईआर तृणमूल समर्थित पश्चिम बंगाल कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रोफेसर एसोसिएशन (डब्ल्यूबीसीयूपीए) ने दर्ज कराई हैं, जिसमें छात्रों पर मंत्री को परेशान करने और संपत्ति नष्ट करने का आरोप है। वहीं, छात्रों ने पलटवार करते हुए मंत्री के वाहन से जानबूझकर प्रदर्शनकारियों को टक्कर मारने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई है, जिसमें दो छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए।

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