चेन्नई में भारत का पहला मधुमेह बायोबैंक स्थापित, डायबिटीज के रिसर्च और उपचार को मिलेगा बढ़ावा

पिछले कुछ सालों में महिलाओं में डायबिटीज काफी तेजी से बढ़ी है। 1990 में यह दर 11.9% थी, जो 2022 में बढ़कर 23.7% हो गई।

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India's first diabetes biobank established in Chennai research and treatment will be boosted ICMR mdrf

प्रतीकात्मक फोटो (फोटो- IANS)

चेन्नई: भारत ने चेन्नई में पहला डायबिटीज बायोबैंक स्थापित किया है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) ने मिलकर इस परियोजना की शुरुआत की है।

एमडीआरएफ और डॉ मोहन डायबिटीज स्पेशलिटी सेंटर के अध्यक्ष डॉ वी मोहन ने कहा कि इसका उद्देश्य देश में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली मधुमेह जैसी पुरानी बीमारी के रिसर्च और उपचार को बढ़ावा देना है।

भारत, जिसे "दुनिया की डायबिटीज की राजधानी" कहा जाता है, गंभीर मधुमेह संकट से जूझ रहा है। देश में 10 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जबकि 13.6 करोड़ प्रीडायबिटिक हैं। इसके बावजूद, केवल 43.2 फीसदी भारतीय ही मधुमेह के बारे में जागरूक हैं।

देश में डायबिटीज के बढ़ते मामलों की बड़ी वजह खराब जीवनशैली है। एक अध्ययन में पाया गया कि 10 प्रतिशत से भी कम भारतीय शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं, जिससे लोगों में बैठने की आदत में इजाफा हो रहा है और इस कारण यह समस्या को और बढ़ा रही है।

विश्व स्तर पर मधुमेह के मामलों में भारत सबसे आगे है, इसके बाद चीन, अमेरिका, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और ब्राजील आते हैं।

डायबिटीज बायोबैंक स्थापित करने का क्या है उद्देश्य

यह बायोबैंक टाइप 1, टाइप 2 और गर्भकालीन मधुमेह से पीड़ित लोगों के खून के नमूने इकट्ठा, प्रोसेस, स्टोर और वितरित करेगा। आईसीएमआर-इंडआईएबी और कम उम्र में मधुमेह से पीड़ित लोगों की रजिस्ट्री जैसे अध्ययन से मिले ये नमूने भविष्य के शोध में काम आएंगे।

साल 2008 से 2020 के बीच हुए आईसीएमआर-इंडआईएबी अध्ययन में भारत के 1.2 लाख से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जो देश में मधुमेह पर सबसे बड़ा अध्ययन है। ऐसे में इन नमूनों को इस तरह के शोधों में इस्तेमाल किया जाएगा।

बायोबैंक का मुख्य उद्देश्य जल्दी निदान के लिए नए बायोमार्कर खोजने और व्यक्तिगत उपचार योजनाओं को विकसित करना है। यह मधुमेह की प्रगति, जटिलताओं और इसके प्रबंधन तथा रोकथाम में सुधार के लिए दीर्घकालिक अध्ययन को भी समर्थन देगा।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, इस पहल के जरिए डायबिटीज के रिसर्च में उल्लेखनीय वृद्धि होने और बीमारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में योगदान मिलने की उम्मीद है।

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डायबिटीज से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित

पिछले कुछ सालों में डायबिटीज तेजी से बढ़ा है, खासकर महिलाओं में, जहां साल 1990 में यह दर 11.9 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 23.7 प्रतिशत हो गई है। वहीं, पुरुषों में भी यह दर 11.3 फीसदी से बढ़कर 21.4 प्रतिशत हो गई है।

टाइप 1 मधुमेह का निदान औसतन 12.9 वर्ष की आयु में होता है, जबकि टाइप 2 का निदान 21.7 वर्ष की उम्र में होता है। द लांसेट में प्रकाशित साल 2022 के अध्ययन के अनुसार, भारत में 62 फीसदी मधुमेह रोगियों यानी 13.3 करोड़ लोगों को कोई इलाज नहीं मिल रहा है।

डॉ. सचिन कुमार जैन जैसे विशेषज्ञ मधुमेह के प्रबंधन में शीघ्र निदान और लगातार देखभाल के महत्व पर जोर देते हैं।

जैन का कहना है कि स्वास्थ्य साक्षरता में सुधार और मधुमेह के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और समुदायों के सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि समय पर देखभाल प्रदान की जा सके।

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