नई दिल्ली: अमेरिकी सैन्य विमान से भारत लाए गए 104 निर्वासित लोगों के 'डंकी रूट' से अमेरिका पहुंचने और फिर वहां पकड़े जाने के बाद लाए जाने तक की हैरान करने वाली कहानियां सामने आ रही हैं। कई लोगों ने बताया कि उन्हें अमेरिका का वीजा दिलाने वाले ट्रैवल एजेंट से धोखा मिला और मोटी रकम वसूली गई। साथ ही अमेरिका से जिस तरह से इन लोगों को भारत लाया गया, उसे लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि 104 अवैध अप्रवासियों को लेकर भारत पहुंचे विमान में 33-33 लोग हरियाणा और गुजरात से थे। इसके अलावा 30 पंजाब से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से और दो चंडीगढ़ से थे। सूत्रों के अनुसार निर्वासित लोगों में 19 महिलाएं और 13 नाबालिग शामिल हैं। इनमें एक चार साल का लड़का और पांच और सात साल की दो लड़कियां भी हैं। बताया जा रहा है कि अवैध अप्रवासी भारतीयों का यह पहला जत्था अमेरिका से आया है। आने वाले दिनों में कई और लोगों को भारत भेजा जा सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद गैरकानूनी तरीके से देश में प्रवेश करने वालों के खिलाफ सख्ती से कदम उठाने की बात कही है। यही वजह है अमेरिका ने कई अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें पकड़ने और वापस उनके देश भेजना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में भारत के भी 104 लोगों को पकड़कर अमेरिकी सैन्य विमान से बुधवार को अमृतसर लाया गया।
एजेंट का धोखा, डंकी रूट और लाखों रुपयों की ठगी
अमृतसर लाए गए 104 लोगों में से एक पंजाब के होशियारपुर जिले के ताहली गांव के मूल निवासी हरविंदर सिंह ने पत्रकारों को बताया कि उन्हें एजेंट ने अमेरिका में वर्क वीजा देने का वादा किया था। इसके लिए उन्होंने 42 लाख रुपये का भुगतान भी किया। हालांकि, आखिरी समय में सिंह को बताया गया कि वीजा नहीं आ सका है। इसके बाद उन्हें दिल्ली से कतर और फिर ब्राजील तक जाने वाली उड़ान में बैठाया गया।
हरविंदर सिंह के अनुसार, 'ब्राजील में, मुझे बताया गया था कि मुझे पेरू से उड़ान में बिठाया जाएगा, लेकिन ऐसी कोई उड़ान नहीं थी। फिर टैक्सियां हमें आगे कोलंबिया और आगे पनामा की शुरुआत तक ले गईं। वहां से, मुझे बताया गया कि एक जहाज हमें ले जाएगा, लेकिन वहां कोई जहाज भी नहीं था। यहीं से हमारी डंकी रूट की यात्रा शुरू हुई, जो दो दिनों तक चली।'
पहाड़ी रास्तों से गुजरने के बाद सिंह और उनके साथ आए प्रवासियों को एक छोटी नाव में मैक्सिको सीमा की ओर समुद्र के रास्ते भेजा गया। चार घंटे की समुद्री यात्रा में, उन्हें ले जा रही नाव पलट गई, जिससे उनके साथ आए एक व्यक्ति की मौत हो गई। पनामा के जंगल में एक और शख्स की मौत हो गई। इस पूरे समय में वे थोड़ा बहुत चावल खाकर जीवित रहे।
दारापुर गांव के सुखपाल सिंह को भी इसी तरह की कठिनाई का सामना करना पड़ा। उन्हें समुद्री मार्ग से 15 घंटे की यात्रा करनी पड़ी और घाटियों-पहाड़ियों से घिरे रास्ते पर 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। उन्होंने कहा, 'अगर कोई घायल हो जाता, तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। हमने रास्ते में कई शव देखे।'
अमेरिकी सैन्य विमान से भारत तक का यात्रा
अमेरिकी विमान से लाए गए 104 निर्वासित लोगों में से एक जसपाल सिंह ने बताया कि पूरी यात्रा के दौरान उनके हाथ और पैर बंधे हुए थे। अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही उनकी हथकड़ियां खोली गई। गुरदासपुर जिले के हरदोरवाल गांव के रहने वाले 36 वर्षीय सिंह ने कहा कि उन्हें 24 जनवरी को अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने पकड़ लिया था।
वहीं, कनुभाई पटेल, जिनकी बेटी निर्वासित लोगों में से है, उन्होंने दावा किया कि वह एक महीने पहले अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां मनाने यूरोप गई थी। गुजरात के मेहसाणा जिले के चंद्रनगर-दाभला गांव के निवासी पटेल ने कहा, 'मुझे नहीं पता कि यूरोप पहुंचने के बाद उसने क्या योजना बनाई थी। आखिरी बार हमारी उससे 14 जनवरी को बात हुई थी। हमें नहीं पता कि वह अमेरिका कैसे पहुंची।'
पंजाब के कई अवैध अप्रवासियों के परिवार के सदस्यों ने बताया कि उन्होंने अच्छे भविष्य की उम्मीद में अमेरिका जाने को लेकर भारी कर्ज लिया था, लेकिन अब उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वे धोखा देने वाले एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग कर रहे हैं।
हरविंदर सिंह की पत्नी कुलजिंदर कौर ने बताया, 'हमारे पास जो कुछ भी था उसे बेच दिया था और बेहतर भविष्य की उम्मीद में एजेंट को भुगतान करने के लिए ऊंचे ब्याज पर पैसा उधार लिया था। लेकिन उसने (एजेंट) हमें धोखा दिया। अब, न केवल मेरे पति को निर्वासित कर दिया गया है, बल्कि हम पर भारी कर्ज भी है।'
बता दें कि जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला और नवांशहर जैसे जिले पंजाब में 'एनआरआई बेल्ट' के तौर पर जाने जाते हैं। यहां से हर साल बड़ी संख्या में विदेशों में लोग जाते हैं।