नई दिल्लीः राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा नीति को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार आमने-सामने हैं। इस बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच कभी कोई दुश्मनी नहीं रही, बल्कि वे एक-दूसरे को प्रभावित और समृद्ध करती रही हैं।
दिल्ली के विज्ञान भवन में 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में बोलते हुए पीएम मोदी ने भाषाई विविधता और शिक्षा नीति पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि जब भी भाषा के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश होती है, भारत की साझा भाषाई विरासत उसके खिलाफ मजबूत तर्क पेश करती है।
भारतीय भाषाओं की साझा विरासत को बताया मजबूत आधार
पीएम मोदी ने कहा, "हमारी भाषाओं के बीच कभी कोई टकराव नहीं रहा। वे हमेशा एक-दूसरे को प्रभावित और समृद्ध करती रही हैं। जब भी भाषा के आधार पर विभाजन की कोशिश की जाती है, हमारी साझा भाषाई विरासत इसका मजबूत जवाब देती है। हमें इन भ्रांतियों से दूर रहना चाहिए और सभी भाषाओं को अपनाकर उन्हें समृद्ध करना चाहिए। इसी कारण आज हम देश की सभी भाषाओं को मुख्यधारा की भाषा के रूप में देख रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि सरकार सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दे रही है, जिसमें मराठी भी शामिल है।
भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा। इन्होंने हमेशा एक दूसरे को अपनाया है, एक दूसरे को समृद्ध किया है। pic.twitter.com/78BBWoNLyr
— Narendra Modi (@narendramodi) February 21, 2025
पीएम मोदी ने कहा, "हम मराठी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को प्रोत्साहित कर रहे हैं। महाराष्ट्र के युवा अब आसानी से उच्च शिक्षा, इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई मराठी में कर सकते हैं। हमने उस मानसिकता को बदल दिया है, जो अंग्रेज़ी में दक्षता की कमी के कारण प्रतिभा को नज़रअंदाज करती थी।"
उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और यह समाज को दिशा भी दिखाता है। इसलिए, साहित्यिक सम्मेलनों और साहित्य से जुड़े संस्थानों की भूमिका देश के विकास में बेहद महत्वपूर्ण है।
तीन-भाषा नीति पर केंद्र और तमिलनाडु के बीच विवाद क्या है?
गौरतलब है कि पीएम मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब तमिलनाडु की डीएमके सरकार और केंद्र सरकार के बीच तीन-भाषा नीति को लेकर विवाद चल रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तीन-भाषा नीति का उल्लेख किया गया है, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्य करने की बात कही गई है। तमिलनाडु सरकार इस नीति का विरोध कर रही है और राज्य में केवल दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) को ही लागू करने पर अडिग है। डीएमके सरकार ने केंद्र के इस रुख पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि वह किसी भी हालत में तीन-भाषा नीति नहीं अपनाएगी।
तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने साफ किया कि राज्य तमिल और अंग्रेजी की दो-भाषा नीति पर कायम रहेगा और केंद्र सरकार से सिर्फ वही वित्तीय सहायता चाहता है, जो उसे करों के रूप में दिए गए योगदान के आधार पर मिलनी चाहिए।
उदयनिधि ने कहा कि तमिलनाडु जैसे राज्य में लोगों ने भाषा के लिए अपनी जान दी है। इसमें राजनीति करने की क्या बात है? मुझे समझ में नहीं आता। तमिलनाडु वह राज्य है, जिसमें भाषा के अधिकार के लिए कई लोगों ने अपनी जान दी है। आप समझ सकते हैं कि कौन राजनीति कर रहा है।
धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सरकार से भाषा विवाद से ऊपर उठने की अपील की
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को डीएमके सरकार से 'भाषा विवाद से ऊपर उठने' और नई शिक्षा नीति के लाभों को अपनाने की अपील की। धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार पर शिक्षा नीति को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया और कहा कि एनईपी किसी भी भाषा को थोपने की वकालत नहीं करती।
அரசியல் காரணங்களுக்காக குறுகிய பார்வையுடனும், அச்சுறுத்தலை பயன்படுத்தியும் தேசிய கல்விக் கொள்கை 2020-ஐ ஒரு மாநிலம் ஆய்வு செய்வது மிகவும் பொருத்தமற்றது.
— Dharmendra Pradhan (@dpradhanbjp) February 21, 2025
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धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, "तमिलनाडु जैसे राज्यों की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना हमारी प्राथमिकता है। भारत सरकार सभी प्रमुख 13 भाषाओं में प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कर रही है, जिनमें तमिल भी शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी ने तमिल भाषा और संस्कृति के वैश्विक प्रसार के लिए सिंगापुर में भारत के पहले 'तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र' की घोषणा की है, जो हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।"
प्रधान ने आगे कहा, "1968 से लगातार सरकारें शिक्षा क्षेत्र में एक भाषा नीति लागू करती रही हैं। लेकिन यदि हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू नहीं करते, तो इसका नुकसान छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को होगा, क्योंकि वे वैश्विक अवसरों से वंचित रह जाएंगे। शिक्षा को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। यहां तक कि कई गैर-भाजपा शासित राज्य भी NEP को अपना रहे हैं और केंद्र सरकार से पूरा सहयोग ले रहे हैं।"
बता दें कि तमिलनाडु में हिंदी विवाद पुराना है और यह मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है। डीएमके ने 1965 में बड़े पैमाने पर 'एंटी-हिंदी आंदोलन' का नेतृत्व किया था, जिसमें कई प्रदर्शनकारियों ने आत्मदाह कर लिया था।
केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच यह टकराव अभी और बढ़ सकता है क्योंकि डीएमके तीन-भाषा नीति को केंद्र द्वारा 'हिंदी थोपने' की कोशिश मानती है, जबकि केंद्र इसे एक लचीली नीति कहता है जो राज्यों को उनके अनुसार लागू करने की छूट देती है।