नई दिल्ली: भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वह जल्द ‘उच्च समुद्र संधि’ (High Seas Treaty) पर हस्ताक्षर करेगी। यह एक वैश्विक संधि है जिसे बायोडायवर्सिटी बियोंड नेशनल ज्यूरिस्डिक्शन (BBNJ) नाम से जाना जाएगा। इस समझौते के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में कई सालों तक चली बैठक के बाद पिछले साल सहमति बनी थी।
आसान भाषा में समझें तो महासागरों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य (इकोलॉजिकल हेल्थ) को बेहत बनाए रखने के लिए यह एक नया अंतर्राष्ट्रीय कानून है। इस संधि का उद्देश्य समुद्र में प्रदूषण को कम करना, जैव विविधता और अन्य समुद्री संसाधनों का संरक्षण और टिकाऊ उपयोग है।
High Seas Treaty इसे क्यों कहा गया है?
हाई सी या उच्च समुद्र दरअसल समुद्र में उन इलाकों को कहा जाता है जो किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं। इसके मायने ये हुए कि सभी देशों को यहां मछली पकड़ने, जहाज चलाने और रिसर्च आदि करने का अधिकार होता है। अब हालांकि, एक साझा कानून लागू होगा।
यही वजह है कि इस संधि को राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता पर समझौता (BBNJ) के रूप में भी जाना जाएगा। इस संधि पर भारत के हस्ताक्षर की मंजूरी कैबिनेट ने दो जुलाई को दी थी।
#India will sign a global ‘High Seas Treaty’ – called Biodiversity Beyond National Jurisdiction (BBNJ) Agreement for protecting marine biodiversity.
#Unioncabinet #marineconservation pic.twitter.com/cbxA4nCQMh
— #LetMeBreathe ™ 😷 (@LetMeBreathe_In) July 10, 2024
इस समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच मार्च 2023 में सहमति हुई थी। सितंबर 2023 से दो साल तक का समय विभिन्न देशों को इस संधि पर हस्ताक्षर के लिए दिया गया है। जून 2024 तक 91 देशों इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
धरती के आधे हिस्से पर कॉमन गवर्रनेंस
High Seas Treaty के बाद पृथ्वी की सतह के लगभग आधे हिस्से और महासागरों का 95 प्रतिशत हिस्सा ऐसा होगा, जहां दुनिया के सभी अहम देशों की सहमति से तैयार नियम लागू होंगे। इससे पर्यावरणीय के नुकसान, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और खुले समुद्रों में जैव विविधता के नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी।
इसके लागू हो जाने के बाद वैश्विक स्तर पर उच्च समुद्र वाले क्षेत्रों में संरक्षण के लिए साझा प्रयास किए जा सकेंगे। इससे जलवायु परिवर्तन को कम करने, जैव विविधता की रक्षा करने और साल 2030 तक धरती के कम से कम 30 प्रतिशत हिस्से की रक्षा करने के उद्देश्य को प्राप्त करने में बड़ी मदद मिलेगी। यह संधि समुद्र संरक्षण के क्षेत्र में जो लंबे समय से बड़ा गैप चला आ रहा था, उसे भी पाटने की कोशिश करेगी। अभी वर्तमान में उच्च समुद्र का केवल 1% हिस्सा ही संरक्षित है।