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नई दिल्ली: भारत ने आधुनिक जंगों में ड्रोन हमलों के बढ़ते खतरे से निपटने के लिहाज से खुद को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ी सफलता हासिल की है। भारत ने 'भार्गवास्त्र' नाम से एक नई कम लागत वाली काउंटर-ड्रोन प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
ओडिशा के गोपालपुर में सीवार्ड फायरिंग रेंज में मंगलवार को सिस्टम के माइक्रो रॉकेट का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया, जिसमें सभी टार्गेट पूरे हुए। हार्ड किल मोड में डिजाइन किया गया भार्गवस्त्र 2.5 किमी तक की दूरी पर छोटे और आने वाले ड्रोन का पता लगाने और उन्हें खत्म करने की उन्नत क्षमता रखता है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (एसडीएएल) द्वारा इस विकसित रॉकेट के लिए तीन परीक्षण किए गए, जो आर्मी एयर डिफेंस (एएडी) के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हुए।
पहले एक-एक रॉकेट दागकर दो परीक्षण किए गए। एक परीक्षण दो सेकंड के भीतर साल्वो मोड में दो रॉकेट दागकर किया गया। सभी चार रॉकेटों ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया और जरूरी लॉन्च पैरामीटर हासिल किए, जो बड़े पैमाने पर ड्रोन हमलों को कम करने में इसकी अग्रणी तकनीक की ओर इशारा करता है।
भार्गवास्त्र रक्षा की पहली परत के रूप में बिना निर्देशित माइक्रो-रॉकेट का उपयोग करता है, जो 20 मीटर के दायरे वाले घातक वाले ड्रोन के झुंड को बेअसर करने में सक्षम है। इसके बाद सटीक और प्रभावशाली निष्प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए दूसरी परत के रूप में निर्देशित माइक्रो-मिसाइल (पहले से ही परीक्षण किया गया) का इस्तेमाल ये करता है।
भारत के भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से भी यह फिट बैठता है। उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों (समुद्र तल से 5,000 मीटर से अधिक) सहित विविध इलाकों में निर्बाध तैनाती के लिए इसे डिजाइन किया गया है। कुल मिलाकर यह डिफेंस सिस्टम भारत के सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करता है।
भार्गवास्त्र की और क्या है खासियत
यह भारत की मौजूदा नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर प्रणाली से भी पूरी तरह लैस है। इसमें उन्नत सी4आई (कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन्स, कंप्यूटर एंड इंटेलिजेंस) तकनीकें शामिल हैं। रडार 6 से 10 किमी तक की दूरी पर सूक्ष्म हवाई खतरों का पता लगाने में सक्षम हैं।
एसडीएएल ने इसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक बताया है, जिसमें रॉकेट और माइक्रो-मिसाइल दोनों का विकास देश में ही किया गया है।
कंपनी का कहना है कि दुनियाभर में जहां कई देश ऐसी तकनीकें विकसित कर रहे हैं, वहीं 'भार्गवास्त्र' जैसी लागत-कुशल और मल्टी-लेयर्ड प्रणाली अभी तक कहीं भी तैनात नहीं की गई है।
यह परीक्षण न केवल "मेक इन इंडिया" पहल के तहत एक और मील का पत्थर है, बल्कि देश की हवाई सुरक्षा को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।