नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' से बौखलाए पाकिस्तान के सुर रातों-रात कैसे बदले, इसकी कहानी सामने आने लगी है। सूत्रों के हवाले से ये जानकारियां सामने आ रही हैं कि कैसे पाकिस्तान बैकफुट पर जाने को तैयार हुआ और फिर युद्धविराम तक बात पहुंची। साथ ही अमेरिका की मध्यस्थता की कहानी क्या है, इसे लेकर भी कुछ जानकारियां सामने आई हैं।
दरअसल, युद्धविराम को लेकर दोनों देशों से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे थे। ट्रंप ने 10 मई को भारतीय समय के अनुसार शाम 5.25 बजे सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दोनों देशों के युद्धविराम पर पहुंचने की जानकारी दी थी। हालांकि, ये बात सामने आई है कि अमेरिकी भूमिका केवल भारत और पाकिस्तान के बीच शुरुआती मैसेज को एक-दूसरे तक पहुंचाने तक सीमित रही।
24 घंटे में युद्धविराम पर कैसे बनी बात?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली और वाशिंगटन में शीर्ष नेताओं और अधिकारियों के बीच बातचीत से पता चलता है कि 9 मई की रात और 10 मई की दोपहर के बीच 24 घंटों में वास्तव में क्या कुछ हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार 9 मई की रात को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की। इस बातचीत में वेंस ने पीएम मोदी को पूरे मामले को लेकर अमेरिकी आकलन से अवगत कराया और कहा कि इस तनाव में व्यापक रूप से वृद्धि हो सकती है। इस बातचीत से अवगत शीर्ष सूत्रों के अनुसार वेंस ने पीएम मोदी पर तनाव को कम करने के लिए ऐसे रास्तों या कूटनीतिक तरीकों के लिए दबाव डाला जो पाकिस्तान को भी स्वीकार्य होगा।
सूत्रों के अनुसार पीएम मोदी ने जेडी वेंस की बात सुनी। उन्होंने वेंस से कहा कि अगर पाकिस्तान कुछ भी करता है, तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि भारत की ओर से जवाब बहुत ही कड़ा होगा। दूसरे शब्दों में, सूत्रों ने कहा, जवाब यह था कि नई दिल्ली को पाकिस्तान को कोई मौका देने की जरूरत नहीं है। मोदी के रुख के के बारे में बताते हुए सूत्र ने कहा, 'उसके लिए बेहतर होगा कि वे देखें कि वे क्या कर रहे हैं।'
वेंस-मोदी की इसी बातचीत के कुछ ही घंटों के भीतर पाकिस्तानियों ने मोर्चा खोल दिया। उनके ड्रोन और मिसाइलों ने आदमपुर में एयर बेस और नगरोटा में आर्मी बेस समेत 26 जगहों को निशाना बनाया। भारत की प्रतिक्रिया बिल्कुल वैसी ही थी जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने वेंस से कहा था। भारत ने तगड़ा प्रहार किया।
भारत के प्रहार ने पाकिस्तान को बैकफुट पर धकेला
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 'सबसे भारी हमले' में पाकिस्तान के ठिकानों को जबर्दस्त नुकसान पहुंचा। इसके बाद 10 मई की सुबह अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने विदेश मंत्री एस जयशंकर को फोन किया। इससे पहले उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख सैयद असीम मुनीर से बात कर ली थी।
बताया जाता है कि रुबियो ने इस बातचीत में विदेश मंत्री से कहा कि भारत की यह शर्त कि 'तुम गोली मत चलाओ, हम गोली नहीं चलाएंगे' से पाकिस्तान सहमत है। रुबियो ने कथित तौर पर जयशंकर से कहा, 'उन्होंने (मुनीर) हमसे कहा है कि वे इसे स्वीकार करेंगे।'
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जब पूछा गया कि क्या अमेरिका ने पाकिस्तान को 'गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने' के लिए राजी किया, तो इस घटनाक्रम से अवगत एक अन्य सूत्र ने कहा, 'पाकिस्तान के डीजीएमओ ने फोन क्यों किया? इसलिए नहीं कि किसी ने अच्छी अंग्रेजी में बात की थी। यह (हमारी तरफ से) तेज आवाज थी जो आसमान से कुछ गिरने पर आई थी।'
सूत्र ने कहा, 'सच यह है कि उन्होंने अपना सुर बदला। लेकिन हम इसे पाकिस्तानियों से सुनना चाहते थे। संदेश उन्हीं से आना चाहिए, उनके डीजीएमओ से। यही एकमात्र माध्यम है।'
सूत्रों ने बताया कि जयशंकर ने 7 मई को भी बातचीत में रुबियो को यह संदेश दिया था। सूत्र ने कहा, 'डीजीएमओ से डीजीएमओ की बातचीत होती रही है।'
पाकिस्तानी डीजीएमओ का फोन और ट्रंप का पोस्ट
सूत्र ने कहा, 'दोपहर 1 बजे (10 मई) पाकिस्तान के डीजीएमओ ने फोन पर बात करने के लिए कहा। हमारे डीजीएमओ मीटिंग में थे। वास्तविक बातचीत दोपहर 3.30 बजे ही हो सकी। मेरा मानना है कि शायद अमेरिकियों ने पाकिस्तानियों से इस बारे में जानकारी ली होगी... दोपहर 3.30 बजे के बाद उन्होंने बातचीत की। फिर हमारे डीजीएमओ उच्च अधिकारियों से इस संबंध में बातचीत के लिए गए। उनके डीजीएमओ भी ऊपर गए होंगे। इस दौरान कुछ समय लगा होगा और इसी बीच उनके (अमेरिका) द्वारा इसका ऐलान किया गया होगा।'
इस सबके बीच, अमेरिका ने कभी भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया था कि राष्ट्रपति ट्रंप सोशल मीडिया पर यह दावा करेंगे कि अमेरिका ने युद्धविराम करवाया है।
भारत और पाकिस्तान के बीच आगे की बातचीत को किसी न्यूट्रल जगह पर आगे बढ़ाने और कश्मीर पर मध्यस्थता करने की ट्रंप की पेशकश के बारे में रूबियो के बयान के बारे में पूछे जाने पर सूत्र ने कहा कि पाकिस्तान से निपटने के मामले में भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।