नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2025’ रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक, भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 अरब तक पहुंच जाएगी। “द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस” शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की प्रजनन दर अब प्रतिस्थापन स्तर (रिप्लेसमेंट लेवल) से नीचे गिर चुकी है।

इसमें कहा गया है कि असली चिंता आबादी बढ़ने या घटने की नहीं है, बल्कि यह है कि करोड़ों लोग अपनी संतानोत्पत्ति से जुड़ी इच्छाएं पूरी नहीं कर पा रहे। यानी न समय पर बच्चा कर पा रहे, न उतने जितने वे चाहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वास्तविक संकट है, न कि जनसंख्या का बढ़ना या घटना। इसका समाधान लोगों को उनकी यौन और प्रजनन संबंधी स्वतंत्रता सुनिश्चित कराना है।

भारत की प्रजनन दर घटकर 1.9 पर

रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) अब 1.9 बच्चे प्रति महिला रह गई है, जो जनसंख्या प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से नीचे है। इसका अर्थ है कि अब प्रत्येक पीढ़ी अपनी जनसंख्या को बिना प्रवास के बनाए रखने में सक्षम नहीं होगी।

साल1960 में, जब भारत की जनसंख्या लगभग 43.6 करोड़ थी, तब औसतन एक महिला के छह बच्चे होते थे। उस समय महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और निर्णय लेने की स्वतंत्रता बहुत सीमित थी। आज, औसतन एक भारतीय महिला दो बच्चे ही जन्म देती है। यह बदलाव शिक्षा, गर्भनिरोधक साधनों तक पहुंच और जागरूकता के कारण संभव हुआ है।

कामकाजी जनसंख्या और युवा भारत

हालांकि प्रजनन दर में गिरावट आई है, फिर भी भारत की युवा जनसंख्या महत्वपूर्ण बनी हुई है। 0 से 14 वर्ष की आयु के लोग कुल जनसंख्या का 24 प्रतिशत हैं, 10 से 19 वर्ष तक के लोग 17 प्रतिशत और 10 से 24 वर्ष के बीच के युवा 26 प्रतिशत हैं।

 देश की कुल जनसंख्या का 68 प्रतिशत हिस्सा 15 से 64 वर्ष के बीच की कामकाजी आयु का है, जिससे भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश (demographic dividend) का अवसर मिल सकता है, बशर्ते रोजगार और नीति समर्थन पर्याप्त हों।

वहीं, 65 वर्ष से ऊपर की वृद्ध जनसंख्या वर्तमान में 7 प्रतिशत है, जो आने वाले दशकों में जीवन प्रत्याशा बढ़ने के साथ बढ़ेगी। 2025 तक जीवन प्रत्याशा पुरुषों के लिए 71 वर्ष और महिलाओं के लिए 74 वर्ष रहने का अनुमान है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार के अनुसार, भारत ने प्रजनन दर को 1970 में प्रति महिला लगभग 5 बच्चों से घटाकर आज लगभग 2 कर दिया है। यह शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच के कारण संभव हो सका है।

उन्होंने आगे कहा कि मातृ मृत्यु दर में भारी कमी आई है, जिससे लाखों महिलाएं आज जीवित हैं और अपने बच्चों के साथ जीवन बिता रही हैं। फिर भी राज्यों, जातियों और आय वर्गों के बीच गहरी असमानताएं बनी हुई हैं।

वोजनार के अनुसार, “वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभ तभी संभव है जब सभी को अपनी प्रजनन से जुड़ी निर्णयों में स्वतंत्रता और संसाधन मिलें। भारत के पास यह अनूठा अवसर है कि वह दुनिया को दिखा सके कि कैसे प्रजनन अधिकार और आर्थिक प्रगति एक साथ आगे बढ़ सकते हैं।”

सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि दुनिया के लाखों पुरुष और महिलाएं आज भी अपनी संतानोत्पत्ति की इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, चाहे कारण आर्थिक हों, सामाजिक दबाव, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी या जानकारी का अभाव। इसलिए ज़रूरत है जनसंख्या संकट की जगह प्रजनन स्वतंत्रता के मुद्दे पर ध्यान देने की।