नई दिल्लीः अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2024-25 के अनुसार दुनिया के दो-तिहाई देशों में वेतन असमानता में कमी आई है। भारत ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी आय वर्गों के बीच बड़ा अंतर बरकरार है।

'वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2024-25: क्या वैश्विक स्तर पर वेतन असमानता घट रही है?' में पाया गया कि 2000 के बाद से उच्च और निम्न आय वर्गों के बीच वेतन असमानता औसतन 0.5% से 1.7% वार्षिक की दर से कम हुई है। कम आय वाले देशों में यह दर 3.2% से 9.6% तक रही, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह कमी 0.3% से 0.7% वार्षिक रही। भारत जैसे विकासशील देशों में वेतन असमानता में सुधार हुआ है।

भारत में वेतन असमानता में सुधार

रिपोर्ट में भारत के वेतन असमानता को लेकर कहा गया है कि 2008 से 2018 के बीच भारत में निम्न वेतनभोगी मजदूरों और निम्न वेतनभोगी गैर-मजदूरों का हिस्सा औसतन 6.3% और 12.7% की दर से घटा है। निम्न वेतन वाले वेतनभोगी और निम्न वेतन वाले गैर-वेतन श्रमिकों का संयुक्त हिस्सा 10 वर्षों में औसतन 11.1% घटा है। इसके साथ ही, औसत प्रति घंटा वेतन के 50% से कम कमाने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी अब 9.5% है।

पड़ोसी देशों की तुलना में भारत की क्या  स्थितिः पाकिस्तान में औसत आय असमानता 9.4% है, नेपाल में यह 10.5%, और बांग्लादेश में 11.2% तक है। दूसरी ओर, श्रीलंका की स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है, जहां निम्न वेतनभोगियों का प्रतिशत 25.9% तक पहुंच जाता है। रिपोर्ट भारत में वेतन असमानता में सुधार के कुछ सकारात्मक संकेतों को तो दिखाती है, लेकिन यह भी स्पष्ट करती है कि इसे कम करने के लिए और अधिक नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है।

उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वेतन अंतर

रिपोर्ट में विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच वेतन वृद्धि के अंतर पर प्रकाश डाला गया है। विकसित देशों में वेतन वृद्धि की दर हाल के वर्षों में धीमी रही है। 2022 में, इन देशों में वेतन वृद्धि -2.8% की गिरावट पर रही, जबकि 2023 में यह दर -0.5% तक सीमित हो गई। इसके विपरीत, उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने सकारात्मक वेतन वृद्धि दर्ज की। 2022 में यहां वेतन में 1.8% की वृद्धि हुई, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 6.0% तक पहुंच गया। यह वृद्धि इन देशों के गरीब और मध्यम वर्ग के लिए राहत का संकेत है।

क्षेत्रीय असमानताएंः  रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि वेतन असमानता में कमी का लाभ सभी क्षेत्रों में समान रूप से नहीं पहुंचा है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वेतन वृद्धि ने गरीब वर्ग को राहत दी है, जिससे इन देशों में असमानता में कुछ कमी आई है। दूसरी ओर, विकसित देशों में उच्च मुद्रास्फीति और धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण असमानता और गहराई है।

कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमला बोला

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट जारी होने के तुरंत बाद कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत आय कमाने वाले निचले 10 प्रतिशत से 6.8 गुना अधिक कमाते हैं। यह हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और म्यांमार के लगभग हर देश की तुलना में काफी अधिक असमान है। पोस्ट में कांग्रेस नेता ने आगे लिखा, सभी निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भारत में नियमित वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी सबसे कम है। अधिकांश श्रमिक स्व-रोजगार में लगे हुए हैं जो आम तौर पर अनौपचारिक और कम वेतन वाला होता है। इसमें अस्थिरता की काफी अधिक होती है।

असमानता घटाने की सिफारिशें

श्रम संगठन ने वेतन असमानता को कम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं, जो निम्नलिखित हैं:

सामाजिक संवाद के माध्यम से वेतन निर्धारित करना: वेतन को सामूहिक सौदेबाजी या सहमति प्राप्त न्यूनतम वेतन प्रणालियों के माध्यम से निर्धारित और समायोजित किया जाना चाहिए, जिसमें सरकार, श्रमिक और नियोक्ता शामिल हों।

सूचित दृष्टिकोण अपनाना: वेतन निर्धारण में श्रमिकों और उनके परिवारों की जरूरतों और आर्थिक तत्वों दोनों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

समानता और समान अवसर का प्रचार करना: वेतन नीतियों को लैंगिक समानता, समानता और भेदभाव विरोधी समर्थन करना चाहिए।

मजबूत आंकड़ों का उपयोग करना: निर्णयों को विश्वसनीय आंकड़ों और सांख्यिकी पर आधारित होना चाहिए।

कम वेतन के मूल कारणों का समाधान करना: राष्ट्रीय नीतियां प्रत्येक देश के विशिष्ट संदर्भ को दर्शानी चाहिए और कम वेतन के कारणों जैसे अनौपचारिकता, कम उत्पादकता और देखभाल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में कामों की कम सराहना को संबोधित करना चाहिए।