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नई दिल्लीः पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद अब भारत ने हिमालयी क्षेत्र की दो प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं – सलाल और बगलीहार बाँधों – की जलाशय क्षमता बढ़ाने का कार्य शुरू कर दिया है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सरकारी जलविद्युत कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 1 मई से 'रेजर्वॉयर फ्लशिंग' की प्रक्रिया शुरू की, जिसका उद्देश्य जलाशयों से गाद निकालना और टर्बाइनों की क्षमता को फिर से सशक्त करना है।
रॉयटर्स के मुताबिक सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद भारत पहली बार इस संधि के तहत आने वाले बांध पर कोई काम शुरू किया है। इसकी जानकारी भारत ने पाकिस्तान को नहीं दी है। चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध के सभी फाटक बंद कर दिए गए हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट में नेशनल हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन के एक अधिकारी के हवाले से बताया कि रिजर्वायर से गाद निकालने की प्रक्रिया के लिए फाटकों को गिराया गया जिसकी वजह से 90 प्रतिशत तक पानी का प्रवाह पाकिस्तान की ओर कम हो गया है। अधिकारी ने यह भी बताया कि किशनगंगा बांध के लिए भी ऐसी योजना पर काम चल रहा है।
सलाल और बगलिहार डैम से शुरू हुआ 'रेजर्वायर फ्लशिंग'
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की जलविद्युत कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों ने 1 मई से रेजर्वायर फ्लशिंग की प्रक्रिया शुरू की, जो तीन दिन चली। यह प्रक्रिया बांध में जमा तलछट को हटाने के लिए की जाती है, जिससे बिजली उत्पादन की क्षमता में वृद्धि और टरबाइनों को होने वाला नुकसान रोका जा सके। चिनाब नदी के किनारे रहने वाले जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों ने भी इसकी पुष्टि की कि 1 से 3 मई के बीच सलाल और बगलिहार से पानी छोड़ा गया था। इस दौरान नदी के जलस्तर में स्पष्ट बढ़ोतरी देखी गई।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहला मौका है जब इन दोनों परियोजनाओं पर ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई है। इससे पहले 1987 में सलाल और 2008-09 में बगलिहार परियोजना के निर्माण के बाद यह काम कभी नहीं हुआ था, क्योंकि सिंधु जल संधि के तहत इसकी अनुमति नहीं थी। सूत्रों ने बताया कि इस प्रक्रिया की जानकारी पाकिस्तान को नहीं दी गई, जबकि सिंधु जल संधि के तहत यह आवश्यक होता है, विशेषकर तब जब इससे जल की बर्बादी या नीचे बहने वाले देशों में बाढ़ का खतरा हो सकता है।
गौरतलब है कि बगलिहार बांध में लगभग 475 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित करने की क्षमता है, जबकि इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 900 मेगावाट है। इस परियोजना को औपचारिक रूप से 'बगलिहार हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट' नाम दिया गया है।
इस परियोजना का विचार पहली बार 1992 में सामने आया था, लेकिन विभिन्न प्रशासनिक और तकनीकी अड़चनों के चलते इसका निर्माण कार्य 1999 में जाकर शुरू हो पाया। इसके बाद यह परियोजना कई चरणों में विकसित होती रही और अंततः 2008 में पूरी तरह से बनकर तैयार हुई। पाकिस्तान की चिंता रहती है कि इन परियोजनाओं से पाकिस्तान की तरफ़ आने वाले पानी का प्रवाह कम हो जाएगा। बगलीहार बांध पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने विश्व बैंक से मध्यस्थता की मांग की थी।
पाकिस्तान पर क्या असर होगा?
हालांकि इस समय पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ा है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि यदि क्षेत्र की अन्य परियोजनाओं में भी इसी तरह की ‘फ्लशिंग’ शुरू होती है, तो सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन पर पाकिस्तान को गंभीर नुकसान हो सकता है। क्षेत्र में आधे दर्जन से अधिक ऐसी परियोजनाएँ हैं।
सूत्रों के अनुसार, सलाल परियोजना की 690 मेगावाट क्षमता और बगलीहार की 900 मेगावाट क्षमता गाद के कारण काफी कम हो चुकी थी। पाकिस्तान द्वारा ‘फ्लशिंग’ की अनुमति न दिए जाने से उत्पादन पर सीधा असर पड़ा।
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से नौ वर्षों की बातचीत के बाद हस्ताक्षरित हुई थी। इसे दुनिया की सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय संधियों में से एक माना जाता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने इसे एक उज्ज्वल आशा की किरण कहा था।
इस संधि के तहत पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को सौंपी गईं और पूर्वी नदियाँ (रावी, व्यास, सतलुज) भारत को आवंटित की गईं। भारत को सिंधु प्रणाली के केवल 20% जल के उपयोग की अनुमति है, जबकि 80% पाकिस्तान के लिए सुनिश्चित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार लंबे समय से सिंधु जल संधि की शर्तों को फिर से तय करने की कोशिश कर रही है। भारत और पाकिस्तान इस संधि से जुड़े कई विवादों को हेग स्थित स्थायी पंचाट (Permanent Court of Arbitration) में सुलझाने की कोशिश कर चुके हैं, जिनमें किशनगंगा और रैटल परियोजनाओं की भंडारण क्षमता प्रमुख मुद्दा है।
रिपोर्ट के अनुसार, भले ही अभी पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर सीधा असर न दिखे, लेकिन अगर इसी तरह की अन्य परियोजनाओं पर भी काम शुरू हुआ, तो आगे चलकर पाकिस्तान की कृषि और जलविद्युत उत्पादन को गंभीर चुनौती मिल सकती है। पाकिस्तान पहले ही धमकी दे चुका है कि पानी के प्रवाह को रोकना भी युद्ध जैसा ही है।
बीते दिनों रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि अगर पाकिस्तान की तरफ आने वाले जल प्रवाह को रोकने या उसकी दिशा बदलने की कोशिश भारत करता है तो इसे जंग माना जाएगा। ख्वाजा ने कहा कि जंग सिर्फ तोप के गोले या बंदूक चलाने तक ही सीमित नहीं होती है, इसके कई रूप हैं, जिनमें से एक यह भी है। इससे देश के लोग भूख या प्यास से मर सकते हैं।