Caption: Bengaluru:Members of SDPI and Muslim community staged a protest against the state government and demanded for restore of 2B Muslim reservation at Freedom Park, in Bengaluru on Monday 27th March 2023.(PHOTO:IANS)
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इस लोकसभा चुनाव 2024 में मुस्लिम आरक्षण भी एक मुद्दा बना हुआ है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू यादव ने मुस्लिम आरक्षण की वकालत कर इस मुद्दे को और हवा दे दिया। इसके जवाब में भाजपा ने साफ कहा है बहुमत आने पर संविधान विरोधी मुस्लिम आरक्षण को समाप्त कर पिछड़ा वर्ग को दिया जाएगा।
अब सवाल उठता है कि क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है? संविधान में क्या इसका प्रावधान है? भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 15 (4) अनुच्छेद 16 (4) राज्यों को सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों (एससी, एसटी और ओबीसी) के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देते हैं। कुछ राज्यों में कुछ मुस्लिम समुदायों को पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आरक्षण दिया जाता है।
केरल, तमिलनाडु और बिहार में मुसलमानों को आरक्षण
कई मुस्लिम समुदायों को केंद्र और राज्य सरकार की ओबीसी सूची में आरक्षण मिलता है। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 2005 में लगभग 41% मुस्लिम आबादी ओबीसी वर्ग में आती थी। कुछ राज्यों में, जैसे केरल में पूरी मुस्लिम समुदाय को शिक्षा संस्थानों में 8% और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलता है।
वहीं, तमिलनाडु में लगभग 95% मुस्लिम समुदायों को 3.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। मुस्लिम समुदाय को यह आरक्षण 30% ओबीसी कोटे के भीतर एक उप-श्रेणी बनाकर प्रदान की गई। इसमें ऊंची जाति के मुसलमान शामिल नहीं थे। इस अधिनियम में कुछ ईसाई जातियों को आरक्षण दिया गया था, लेकिन बाद में ईसाइयों की ही मांग पर इस प्रावधान को हटा दिया गया।
बिहार जैसे राज्य ओबीसी को पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग में बाँटते हैं और ज्यादातर मुस्लिम समुदाय अति पिछड़े वर्ग में आते हैं। जिन्हें 18 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। गौरतब बात है कि पिछले साल हुए बिहार के जातिगत सर्वे में 73 फीसदी मुसलमानों को 'पिछड़ा वर्ग' माना गया था।
कर्नाटक में मुसलमानों को आरक्षण
कर्नाटक में, पिछड़ी जातियों (OBCs) के लिए आरक्षित 32% में से, 4% सभी मुसलमानों के लिए आरक्षित थे। लेकिन, बसवराज बोम्मई की राज्य सरकार ने इसे खत्म कर दिया और ये 4% वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों ( प्रभावशाली हिंदू जातियां) में बाँट दिए। स्क्रॉल की पिछली रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम मई में चुनाव से पहले "पार्टी के हिंदुत्व समर्थक मतदाताओं को खुश करने" के लिए उठाया गया था। जिसका जेडीएस ने विरोध किया था। वही जेडीस जो राज्य में भाजपा की सहयोगी दल है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बोम्मई सरकार के फैसले पर रोक लगा दी।
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को कितना मिलता है आरक्षण?
आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को आरक्षण देने की पहली मांग 1994 में की गई थी। इसको लेकर एक रिपोर्ट आंध्र प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग को भेजा गया था। 2004 में अल्पसंख्यक कल्याण आयुक्त की एक रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने पूरे मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा मानते हुए 5% आरक्षण प्रदान किया। लेकिन हाईकोर्ट ने यह आरक्षण यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना दिया गया था। अदालत ने माना था कि इसमें पिछड़ेपन का निर्धारण करने के लिए कोई मानदंड नहीं रखा गया था। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
तेलंगाना में फंसा पेंच
वर्तमान में, तेलंगाना में मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया जाता है, जो तेलंगाना की आबादी का 12.7 प्रतिशत है। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब राज्य का गठन किया गया था, टीआरएस (अब बीआरएस) ने वादा किया था कि वह नौकरियों और शिक्षा में मुसलमानों के लिए आरक्षण को 12% तक बढ़ा देगी।
अप्रैल 2017 में तेलंगाना विधानसभा ने मुसलमानों के लिए आरक्षण को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने के लिए एक विधेयक पारित किया। इसके बाद विधेयक को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया। हालांकि, केंद्र ने यह कहते हुए अपनी मंजूरी देने से इनकार कर दिया कि वह धर्म आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं दे सकता है।