नई दिल्लीः नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को शुक्रवार दो दशक पुराने आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराया गया। साकेत कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि का दोषी पाया।
मेधा पाटकर के खिलाफ यह मुकदमा दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने साल 2001 में दर्ज कराया था। तब वे खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष थे। दो दशक पुरानी इस लड़ाई में अदालत ने 23 साल बाद (24 मई 2024) पाटकर को दोषी करार दिया।
साल 2000 में शुरू हुआ था मानहानि का मामला
मानहानि का मामला साल 2000 में शुरू हुआ था। उस समय पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ कुछ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। पाटकर ने विज्ञापन को उनके और एनबीए के लिए अपमानजनक बताया था। वीके सक्सेना उस वक्त अहमदाबाद स्थित एनजीओ, नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख भी थे।
पाटकर के मुकदमे के जवाब में वीके सक्सेना ने भी उनके खिलाफ दो मानहानि के मामले दायर किए। एक उनके बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी को लेकर और एक प्रेस नोट (‘देशभक्त का असली चेहरा’ शीर्षक वाले) को लेकर।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेस नोट में पाटकर ने कहा था- हवाला लेनदेन से आहत वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए, एनबीए की प्रशंसा की और 40 हजार रुपये का चेक दिया। इसके लिए सक्सेना को रशीद भी दी गई। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका क्योंकि वह बाउंस हो गया। जांच में पता चला कि बैंक में वह खाता मौजूद ही नहीं है। इस पर मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना को ‘कायर हैं, देशभक्त नहीं’ कहा था।
2001 में अहमदाबाद की अदालत ने मामले का संज्ञान लिया
2001 में शिकायत दर्ज करने के बाद, अहमदाबाद की एक एमएम अदालत ने आईपीसी की धारा 500 के तहत अपराध का संज्ञान लिया और पाटकर के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 204 के तहत प्रक्रिया जारी की। 3 फरवरी, 2003 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली में सीएमएम कोर्ट को शिकायत प्राप्त हुई। 2011 में, पाटकर ने खुद को निर्दोष बताया और मुकदमे का दावा किया।
इस मामले में वकील गजिंदर कुमार, किरण जय, चंद्र शेखर, दृष्टि और सौम्या आर्य एलजी की ओर से पेश हुए, जबकि वकील श्रीदेवी पन्निकर ने अदालत में पाटकर का पक्ष रखा।
मेधा पाटकर को दोषी ठहराते हुए अदालत ने क्या कहा?
मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा कि आरोपी ने इस दावे को प्रकाशित किया इससे याचिकाकर्ता को नुकसान पहुंचाने के उसके इरादे का पता चलता है। उन्होंने कहा कि “शिकायतकर्ता को कायर, देशभक्त नहीं, और हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाने वाले आरोपी के बयान न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी तैयार किए गए थे। शिकायतकर्ता को “कायर” और “देशभक्त नहीं” करार देने का पाटकर का निर्णय उनके व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्र के प्रति वफादारी पर सीधा हमला था।
आदेश पारित करते हुए मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि इसके अलावा, यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा था, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला था। अदालत ने कहा कि पाटकर इन दावों का खंडन करने के लिए या यह दिखाने के लिए कोई सबूत देने में विफल रहीं कि इन आरोपों से होने वाले नुकसान का उनका इरादा या पूर्वानुमान नहीं था। परिणामस्वरूप शिकायतकर्ता के परिचितों के बीच उठी पूछताछ और संदेह, साथ ही गवाहों द्वारा उजागर की गई धारणा में बदलाव, उसकी प्रतिष्ठा को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचाता है।
पाटकर को दोषी ठहराते हुए अदालत ने कहा, “सार्वजनिक जीवन में ऐसे आरोप काफी गंभीर होते हैं। किसी के साहस और राष्ट्रीय निष्ठा पर सवाल उठाने से उनकी सार्वजनिक छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति होती हो सकती है।” अदालत ने कहा कि “ये शब्द न केवल भड़काऊ थे बल्कि इनका उद्देश्य सार्वजनिक आक्रोश भड़काना और लोगों की नजरों में शिकायतकर्ता के नाम को खराब करना था। इसलिए, आईपीसी की धारा 500 के तहत उन्हें इसके लिए दोषी ठहराया जाता है।” बता दें अब इस मामले में सजा पर बहस 30 मई को होगी।