मध्य प्रदेश में अब राज्य सरकार नहीं भरेगी मंत्रियों के आयकर, 52 साल पुराना नियम खत्म

मध्य प्रदेश सरकार ने 2023-24 में अपने मंत्रियों के आयकर के लिए 79.07 लाख रुपये का भुगतान किया। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों का ये कुल आंकड़ा करीब 3.17 करोड़ रुपये है।

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Madhya Pradesh Chief Minister Mohan Yadav presiding over the cabinet meeting (Photo - X).

कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव (फोटो- X)

भोपाल: मध्य प्रदेश कैबिनेट ने मंगलवार को एक अहम फैसला लिया। मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के इस नए फैसले के मुताबिक राज्य सरकार के सभी मंत्री खुद अपना आयकर भरेंगे। इस नए फैसले के साथ ही 1972 का वो नियम खत्म हो गया जिसके अनुसार राज्य सरकार अब तक इसे भरती आ रही थी। इस नियम की वजह से मंत्रियों के इनकम टैक्स को लेकर वित्तीय भार राज्य सरकार वहन कर रही थी।

नगरीय विकास एवं आवास विभाग कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि कैबिनेट बैठक के दौरान मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस कदम का सुझाव दिया था।

उन्होंने कहा, 'मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव दिया कि मंत्रियों को भत्तों पर खुद अपने आयकर का भुगतान करना चाहिए, न कि राज्य सरकार को इन करों को कवर करना चाहिए। कैबिनेट ने राज्य को इन करों का भुगतान करने की अनुमति देने वाले प्रावधान को समाप्त करने का निर्णय लिया है।'

'द प्रिंट' ने अपनी एक रिपोर्ट में एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया है कि मध्य प्रदेश सरकार ने 2023-24 में अपने मंत्रियों के आयकर के लिए 79.07 लाख रुपये का भुगतान किया। वहीं, पिछले पांच वर्षों का यह कुल आंकड़ा करीब 3.17 करोड़ रुपये है। मध्य प्रदेश के 230 सदस्यों वाले विधान सभा के लिए 34 मंत्री रह सकते हैं।

कांग्रेस ने सरकार के नए फैसले पर कसा तंज

दूसरी ओर मध्य प्रदेश सरकार के इनकम टैक्स की अदायगी मंत्रियों द्वारा स्वयं किए जाने के फैसले पर कांग्रेस ने तंज कसा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा है कि सरकार को हवाई जहाज, लग्जरी गाड़ी और बंगलों की सजावट पर फिजूल खर्ची को रोकना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विगत वर्ष तक मंत्रियों और विधायकों के भत्ते सहित अन्य टैक्स सरकार भरती थी, लेकिन सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि अब इस प्रकार के सभी टैक्स मंत्रियों और विधायकों को खुद भरना पड़ेगा। भाजपा इस निर्णय को संवेदनशील बता रही है, तो क्या शिवराज सिंह की सरकार संवेदनशील नहीं थी। जबकि, सच्चाई यह है कि मंत्री, विधायक तो पहले से ही टैक्स भरने में सक्षम थे। लेकिन, इस निर्णय से सरकार जनता के सामने आखिर क्या साबित करना चाहती है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार मंत्रियों और विधायकों द्वारा कमाई गई अकूत संपत्ति में से एक नंबर की कमाई का हिसाब तो ले सकती है, लेकिन 50 प्रतिशत कमीशन के रूप में बदनाम रही सरकार मंत्रियों और विधायकों द्वारा की गई काली कमाई और व्यापक स्तर पर हुए भ्रष्टाचार का हिसाब कैसे लेगी और उस काली कमाई का टैक्स कितना और कैसे भरवाएगी?

उन्होंने राज्य सरकार द्वारा हवाई जहाज खरीदने के लिए चल रही कोशिश पर कहा कि सरकार हवाई जहाज खरीदी, शासकीय बंगलों की सजावट, लग्जरी गाड़ियों की खरीदी पर फिजूलखर्ची पर रोक लगाए। चुनाव के समय महिलाओं को 3,000 रूपये महीने, 450 रूपये में गैस सिलेंडर, किसानों को गेहूं और धान के क्रमश: 2,700 और 3,100 रूपये समर्थन मूल्य देने के जो वादे किए थे, उन वादों को पूरा करे।

क्या था 1972 का नियम?

मध्य प्रदेश मंत्री (वेतन और भत्ते) अधिनियम की धारा 9K के अनुसार, 'किसी भी मंत्री, राज्य मंत्री, उप मंत्री या संसदीय सचिव पर उन्हें देय सभी भत्तों, सुविधाओं के लिए कोई आयकर नहीं लगाया जाएगा।'

अधिनियम में कहा गया है, 'आयकर जैसा बनता हो, राज्य सरकार द्वारा किसी मंत्री, राज्य मंत्री, उप मंत्री या संसदीय सचिव द्वारा देय अधिकतम दर पर देय होगा।'

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वित्त विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह कानून ये सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि 'गरीब पृष्ठभूमि के मंत्रियों को आयकर का बोझ न उठाना पड़े।' अधिकारियों ने कहा कि इस प्रथा के समाप्त होने से राज्य तो प्रत्यक्ष वित्तीय बचत' होगी, जिससे विकास परियोजनाओं और सार्वजनिक सेवाओं के लिए संसाधनों का बेहतर आवंटन हो सकेगा।

ऐसे कई अन्य राज्य हैं जिन्होंने पूर्व में मंत्रियों को कर भुगतान से छूट देने वाले प्रावधानों में संशोधन किया है। साल 2019 में उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उस कानून में संशोधन करने का निर्णय लिया, जिसके तहत मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को अपने स्वयं के आयकर का भुगतान करने से छूट मिली हुई थी।

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