नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक कार्यक्रम में ब्रिक्स की जरूरत को लेकर पूछे गए सवाल का दो टूक जवाब दिया जो इस वक्त चर्चा में है। दरअसल 12 सितंबर को एस जयशंकर स्विट्जरलैंड के जिनेवा में सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया जहां उनसे पूछा गया कि ब्रिक्स क्लब (समूह) क्यों बना है और इसके विस्तार पर आपकी क्या राय है?

एस जयशंकर ने इसका दो टूक जवाब देते हुए कहा कि अगर जी7 मौजूद हो सकता है, तो ब्रिक्स क्यों नहीं हो सकता। जयशंकर ने कहा कि जी7 के बावजूद जी20 का अस्तित्व है। जी20 के होने के बावजूद जी7 का अस्तित्व और मीटिंग्स जारी हैं। तो अगर जी20 और जी7 दोनों हो सकते हैं तो ब्रिक्स और जी20 दोनों क्यों नहीं हो सकते?"

जयशंकर ने कहा कि ईमानदारी से कहूं तो ब्रिक्स क्लब इसलिए बना क्योंकि जी-7 नाम का एक क्लब पहले से था जिसे जी7 कहा जाता था और उसमें किसी और को शामिल नहीं होने दिया गया। तो हमने अपना खुद का क्लब बना लिया। विदेश मंत्री ने कहा कि जब आप ब्रिक्स के बारे में बात करते हैं तो "ग्लोबल नॉर्थ के देश (अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, यूरोपीय यूनियन, दक्षिण कोरिया जैसे देश) असुरक्षित महसूस क्यों करने लगते हैं। यह मुझे अभी भी समझ नहीं आता है।"

जयशंकर ने ग्लोबल साउथ (चीन, भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील जैसे विकासशील देश) का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि "ग्लोबल साउथ के देश ज्यादातर उपनिवेशवाद से मुक्त देशों और विकासशील देशों का समूह हैं। यह देशों की एक सहज सभा है, जो जानती है कि वे वहां क्यों हैं और एक-दूसरे को समझती हैं।"

ब्रिक्स की स्थापना 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन द्वारा की गई थी। बाद में दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हो गया। इस साल जनवरी में, ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, यूएई और इथियोपिया भी इस ब्लॉक में शामिल हो गए। वहीं अज़रबैजान ने आधिकारिक तौर पर ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन दिया। माना जा रहा है कि ब्रिक्स में तुर्की भी शामिल होना चाहता है।

वर्तमान में जयशंकर अपने तीन-राष्ट्र दौरे के अंतिम चरण में हैं। उन्होंने पहले सऊदी अरब में पहले भारत-गुल्फ कोऑपरेशन काउंसिल मंत्रीस्तरीय बैठक में भाग लिया और फिर जर्मनी की यात्रा की। जर्मनी में, उन्होंने अपनी जर्मन समकक्ष एन्नालेना बाएरबॉक के साथ व्यापक बातचीत की और बर्लिन में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज से मुलाकात की।

चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे पर जयशंकर ने क्या कहा?

चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत और चीन के बीच आर्थिक तालमेल ठीक नहीं रहा है। भारत के सामान को चीन के बाजार वैसी पहुंच नहीं मिलती है जैसी कि चीनी उत्पादों को भारत में मिलती है।

यह बयान तब आया है जब वित्तीय वर्ष 24 में चीन से आयात 100 अरब डॉलर को पार कर गया है और मौजूदा वित्तीय वर्ष में इसकी वृद्धि जारी है। वहीं, भारत का निर्यात पिछले वित्तीय वर्ष में मुश्किल से 16 अरब डॉलर को पार कर सका। 2024 के पहले सात महीनों में चीन से आयात 60 अरब डॉलर को पार कर चुका है, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है।

जयशंकर ने जिनेवा में कहा कि “हम महसूस करते हैं कि चीन के साथ आर्थिक संबंध बहुत ही असंतुलित और असंगत हैं। वहां हमारे पास वही बाजार पहुंच नहीं है जो चीन के उत्पादों को भारत में मिलती है।”

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा 2022 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीय निर्यातकों को चीन में कई गैर-टैरिफ बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें विशेष रूप से कृषि और दवा उत्पादों के लिए बाजार पहुंच में मुश्किलें शामिल हैं। गैर-टैरिफ बाधाएं ऐसी नीतियां होती हैं जो कस्टम टैरिफ के अलावा व्यापार में रुकावट डालती हैं।

दवा निर्यात के संदर्भ में, सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अन्य देशों के विपरीत, यदि उत्पाद परीक्षण में असंगतता के कारण नकारा कर दिए जाते हैं, तो पुनः परीक्षण के लिए तीसरी-पार्टी प्रयोगशाला की अनुमति नहीं देता।

जयशंकर ने बताया कि चीनी जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GACC) द्वारा हर साल की जाने वाली जटिल पुन: पंजीकरण प्रक्रिया और स्वीकृत सुविधाओं की सूची को उनकी वेबसाइट पर होस्ट करने से प्रक्रियाओं में दोहराव होता है। इससे भारतीय अंगूर और आम के व्यापार में देरी होती है, लेन-देन की लागत बढ़ती है और व्यापार में बाधाएं पैदा होती हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले बर्लिन में चीन के साथ व्यापार को लेकर जयशंकर ने कहा था कि  'हम चीन से व्यापार के करीब नहीं हैं... कोई भी यह नहीं कह सकता कि हम चीन के साथ व्यापार नहीं कर सकते, मुद्दा यह है कि आप किस शर्त पर व्यापार करते हैं। यह कहीं अधिक जटिल है। इसमें ब्लैक एंड व्हाइट जैसा कुछ नहीं है।'