मौनी अमावस्या के दिन लगभग 8-10 करोड़ श्रद्धालुओं के प्रयागराज आने की संभावना है। फोटोः IANS
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महाकुंभ नगरः महाकुंभ 2025 एक बार फिर आस्था, परंपरा और भक्ति का अद्भुत संगम रचने जा रहा है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आयोजित होने वाला यह महापर्व हर बार अपने साथ नई व्यवस्थाओं, व्यापक बजट और करोड़ों श्रद्धालुओं का अद्वितीय संगम लेकर आता है। इस बार राज्य सरकार ने इस आयोजन को और भी दिव्य और भव्य बनाने पर जोर दिया है जिसके लिए हजारों करोड़ रुपए बजट का प्रावधान किया है।
मेला क्षेत्र में 13 अखाड़े स्थापित हो चुके हैं। दंडीबाड़ा, खाक चौक और आचार्य बाड़ा जैसी व्यवस्थाएं सुचारु रूप से संचालित हो रही हैं। इस बार के छह प्रमुख स्नानों में से तीन को परंपरागत रूप से शाही स्नान माना गया है, जिन्हें पूज्य संतों ने "अमृत स्नान" का दर्जा दिया है।
महाकुंभ का आयोजन हर 144 वर्षों में केवल एक बार होता है। जब प्रयागराज में 12 पूर्ण कुंभ पूरे हो जाते हैं, तब त्रिवेणी के पावन संगम पर इस अद्वितीय मेले का भव्य आयोजन होता है। इस बार, यह महासंगम 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन का साक्षी बनेगा, जो इसे अब तक का सबसे बड़ा आयोजन बनाएगा। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी ऐतिहासिक होने जा रहा है।
कुंभ कितने प्रकार का होता है?
कुंभ चार प्रकार के होते हैं- महाकुंभ, पूर्णकुंभ,अर्ध कुंभ और कुंभ। महाकुंभ मेला समस्त कुंभ मेला में सबसे श्रेष्ठ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह मिला दो शताब्दी में केवल एक बार आयोजित होता है। महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों बाद प्रयागराज में किया जाता है। जब प्रयाग की पावन धरती पर 12 पूर्ण कुंभ पूरे हो जाते हैं तब त्रिवेणी के तट पर महाकुंभ का भव्य आयोजन होता है।
पूर्ण कुंभ मेले की बात करें तो यह हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। यह भारत के चार पवित्र स्थान- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। हर 12 साल के अंतराल पर इन चारों स्थलों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है जहां श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
अर्ध कुंभ मेला हर 6 साल के बाद मनाया जाता है। इसका आयोजन केवल दो स्थान प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। अर्ध का अर्थ होता है आधा। इसलिए इसे कुंभ मेले के बीच के आयोजन के रूप में देखा जाता है। और आखिरी है कुंभ मेला। कुंभ का आयोजन प्रत्येक तीन वर्षों में होता है। कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में संगम के तट पर स्नान का विशेष महत्व होता है।
1882 से 2025 तक: कुंभ का बजट और आमदनी
आपके मन में यह सवाल जरूर उठता होगा की कुंभ पर अरबों रुपए खर्च करने पर आखिर सरकार को क्या मिलता है? आइए जानते हैं कि 1882 से लेकर 2025 तक कुंभ मेले पर सरकार ने कितना बजट खर्च किया और इससे सरकार को कितनी आय हुई।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, साल 1882 में महाकुंभ पर केवल ₹20,288 रुपये खर्च किए गए थे जो आज के समय में लगभग 3.65 करोड़ रुपये के बराबर है। उस वक्त मेले से कुल 49 हजार 840 रुपए की आमदनी हुई थी जिसे राजकोष में जमा कराया गया। यानी सरकार को कुंभ से 29612 रुपए का लाभ हुआ था। उस समय मौनी अमावस्या पर करीब 8 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया था जबकि भारत की कुल आबादी 22 करोड़ 50 लाख थी।
1894 के कुंभ में भारत की जनसंख्या बढ़कर 23 करोड़ हो गई और इस आयोजन में करीब 10 लाख श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। इस पर 69427 रुपए खर्च हुए थे जो आज के हिसाब से लगभग 10.5 करोड़ रुपए होते हैं।
1906 में कुंभ मेले में 25 लाख लोगों ने भाग लिया और इस आयोजन पर करीब 90 हजार रुपए खर्च हुए जो आज के मूल्य के अनुसार लगभग 13 करोड़ रुपए होते हैं। इसी तरह 1918 के महाकुंभ में संगम में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़कर 30 लाख हो गई। इस बार श्रद्धालुओं के लिए 1.37 लाख रुपये का बजट निर्धारित किया गया था जो आज के हिसाब से लगभग 16 करोड़ 44 लख रुपए होते हैं।
महाकुंभ से सरकार को 2 लाख करोड़ रुपए की आमदनी की उम्मीद
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए 7,5 00 करोड़ रुपए का विशाल बजट निर्धारित किया है। यह 2019 में हुए कुंभ मेले के 3,700 करोड़ रुपए से कहीं अधिक है। खबरों की मानें तो मौनी अमावस्या के दिन लगभग 8-10 करोड़ श्रद्धालुओं के प्रयागराज आने की संभावना है। इसी तरह, बसंत पंचमी पर 5-6 करोड़ श्रद्धालुओं और मकर संक्रांति के अवसर पर भारी संख्या में भक्तों के स्नान करने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश सरकार के आर्थिक सलाहकार केवी राजू का दावा है कि महाकुंभ 2025 में करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं की अपेक्षित भीड़ के साथ इस आयोजन से कम से कम 2 लाख करोड़ रुपए की रेवेन्यू जेनरेट हो सकती है।
महाकुंभ मेले में इस बार बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक भी हिस्सा ले रहे हैं। राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने इन मेहमानों के ठहरने और उनकी सुविधा का विशेष ध्यान रखा है। इसके लिए कई टूरिज्म पैकेज तैयार किए गए हैं। इन आंकड़ों से यह साफ पता चलता है कि समय के साथ न केवल श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि आयोजन का बजट आमदनी और व्यवस्थाओं का स्तर भी लगातार बढ़ता गया है। 13 जनवरी से शुरू होने वाला महाकुंभ 26 फरवरी तक यानी 45 दिनों के लिए रहेगा।