लोकसभा चुनाव 2024: 18वीं लोकसभा चुनाव की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। 19 अप्रैल को पहले चरण के लिए मतदान होगा। इस लोकसभा चुनाव में देशभर के 96 करोड़ से अधिक मतदाता वोट डालेंगे। बता दें कि भारत का राष्ट्रीय चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा आम चुनाव होता है जिसमें इलेक्शन कमीशन का बड़ा बजट खर्च होता है। चुनाव आयोग के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) खरीदने, मतदान कर्मियों और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती, मतदान केंद्रों की स्थापना और जागरूकता कार्यक्रम चलाने में काफी पैसे खर्च होते हैं।
40 पैसे से बढ़कर 72 रुपए हुआ प्रति मतदाता खर्च
1951-52 में हुए देश के पहले आम चुनाव में चुनाव आयोग ने 17 से अधिक मतदाताओं पर 10.5 करोड़ रुपए खर्च किए थे। हालांकि जैसे-जैसे दिन बीतते गए चुनावी खर्चों में भारी वृद्धि होती गई। 1951-52 में हुए आम चुनाव में इलेक्शन कमीशन ने एक मतदाता पर 60 पैसे खर्च किए थे। 2004 में यह बढ़कर 12 रुपए और 2009 में 17 रुपए प्रति वोटर जा पहुंचा। 2014 के चुनाव में प्रति मतदाता 46 रुपये खर्च हुए थे तो 2019 के चुनाव में 72 रुपये प्रति मतदाता खर्च आया।
लोकसभा चुनाव में कितना खर्च होता है?
1951-52 के आम चुनाव में इलेक्शन कमीशन का 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुआ था, 2019 में यह बढ़कर 6500 करोड़ हो गया। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,870.3 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। संसद के शीतकालीन सत्र में, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांग का पहला बैच पेश करते हुए चुनाव से संबंधित व्यय के लिए अतिरिक्त 3,147.92 करोड़ रुपये और चुनाव आयोग प्रशासन के लिए 73.67 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
1957 के चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव के आयोजन की लागत में भारी वृद्धि हुई है। क्योंकि इस दौरान मतदाताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई। भारत के मतदाता 1952 में 17.32 करोड़ से पांच गुना से अधिक बढ़कर 2019 में 91.2 करोड़ पात्र मतदाता हो गए। लिहाजा 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों के बीच, लागत 1,114.4 करोड़ रुपये से तीन गुना बढ़कर 3,870.3 करोड़ रुपये हो गई। वहीं इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए 96 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं।
किस लोकसभा चुनाव में कितने करोड़ हुए खर्च?
वर्ष | खर्च |
---|---|
1951-52 | 10.5 करोड़ |
1957 | 5.9 करोड़ |
1962 | 7.3करोड़ |
1967 | 10.8 करोड़ |
1971 | 11.6 करोड़ |
1977 | 23 करोड़ |
1980 | 54.8 करोड़ |
1984-85 | 81.5 करोड़ |
1989 | 154.2 करोड़ |
1991-92 | 359.1 करोड़ |
1996 | 597.3 करोड़ |
1998 | 666.2 करोड़ |
1999 | 947.7 करोड़ |
2004 | 1016.1 करोड़ |
2009 | 1114.4 करोड़ |
2014 | 3870.3 करोड़ |
2019 | 6500 करोड़ |
चुनाव के लिए कहां से आते हैं पैसे?
चुनाव के लिए केंद्र सरकार बजट आवंटित करती है। इसमे मतदान कर्मियों और सशस्त्र सुरक्षा कर्मियों की तैनाती, मतदान केंद्रों की स्थापना और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की खरीद, जागरूकता कार्यक्रम चलाने और मतदाता पहचान पत्र जारी करने के लिए चुनाव आयोग (ईसी) का प्रशासनिक व्यय शामिल होता है। बता दें कि ईवीएम सहित कुछ चुनाव-संबंधी खर्चों का हिसाब कानून और न्याय मंत्रालय के बजट के तहत किया जाता है।
ईवीएम खरीदने की लागत
ईवीएम की खरीद और रखरखाव में चुनाव आयोग का भारी बजट खर्च हो जाता है। 2019 के चुनाव के बाद पहले बजट में केंद्र ने ईवीएम के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित किए। वहीं 2023-24 के बजट (शुरुआती बजट) में ईवीएम के लिए 1,891.8 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जबकि शीतकालीन सत्र में अनुदान के लिए 611.27 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग रखी।