नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने शनिवार को एकीकृत पेंशन योजना (यूनिफाइड पेंशन स्कीम, यूपीएस) को मंजूरी दे दी। इस योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद सुनिश्चित पेंशन मिलेगी। केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि यूपीएस 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी।

पिछले कुछ सालों में सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन बहस का एक बड़ा मुद्दा रहा है। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को हर मोर्चे पर घेरा है। हाल में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी यह बड़ा मुद्दा था। कई सरकारी कर्मचारी केंद्र सरकार से खफा नजर आए। इनकी मांग थी कि ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को वापस लेकर आया जाए जिसे अटल बिहार वाजपेयी की सरकार ने खत्म कर दिया था।

ओपीएस की जगह 2004 में नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) लेकर सरकार आई लेकिन इसका लगातार विरोध होता रहा है। साल 2023 में हिमाचल प्रदेश और इससे पहले 2022 में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारों ने ओपीएस फिर लागू कर दिया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भी 2022 में पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौट गई।

इस बीच केंद्र के लिए इस पर लौटना मुश्किल रहा और इसलिए सरकार अब नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लेकर आई है। अगले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इसे लेकर भी राजनीतिक बयानबाजी सहित इस योजना के तमाम पहलुओं पर चर्चा शुरू हो गई है। आईए जानते हैं यूपीएस क्या है? यूपीएस किस तरह ओपीएस और एनपीएस से अलग है?

यूपीएस में ओपीएस और एनपीएस का मिश्रण

ओपीएस की दोबारा लाने की मांग के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में तत्कालीन वित्त सचिव (और अब कैबिनेट सचिव) टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने विभिन्न संगठनों और राज्यों के साथ 100 से अधिक बैठकें कीं। इस समिति की सिफारिशों के परिणामस्वरूप अब नई योजना यूपीएस का ऐलान किया गया है।

इससे पहले एनपीएस पर उठ रहे सवालों कर्मचारियों के गुस्से को देखते हुए सबसे पहले आंध्र प्रदेश ने पिछले साल गारंटीड पेंशन सिस्टम (जीपीएस) को मंजूरी दी थी। ये पुरानी और नई पेंशन स्कीम का मिश्रण जैसा था। आंध्र प्रदेश गारंटीड पेंशन सिस्टम विधेयक 2023 में इस बात को दर्शाया गया कि यह अंशदायी योजना गारंटी देगी कि सरकारी कर्मचारियों को उनके बेसिक सैलरी का 50 फीसदी, मासिक पेंशन के रूप में दिया जाएगा। साथ ही इसमें महंगाई भत्ता राहत भी शामिल होगा।

इसके बाद कई राज्यों में सरकारें इसी को आधार बनाकर एक नई व्यवस्था के तहत कर्मचारियों को जोड़ने की कवायद में लग गई थी। आंध्र प्रदेश गारंटीड पेंशन सिस्टम को कई राज्यों में समझने के लिए कमेटी का भी गठन किया गया था।

ऐसे में अब जब सरकार नई व्यवस्था के तहत ओपीएस के काट के तौर पर यूपीएस यानी यूनिफाइड पेंशन स्कीम लेकर आई तो इसमें आंध्र प्रदेश की गारंटीड पेंशन स्कीम को भी ध्यान में रखा गया और इसकी भी स्टडी की गई। एनपीएस को लेकर विरोध का सामना कर रही नरेंद्र मोदी 2.0 सरकार के समय ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संकेत दे दिया था कि सरकार एनपीएस में सुधार करने को तैयार है और इसपर विचार किया जा रहा है। इसके बाद मोदी 3.0 सरकार के गठन के चंद महीने बाद केंद्र सरकार यूपीएस लेकर आई है।

यूपीएस की बड़ी बातें

यूपीएस में सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें एनपीएस के विपरीत रिटायर लोगों को एक फिक्स्ड पेंशन देने की बात कही गई है। फिक्स्ड पेंशन नहीं होना एनपीएस की आलोचना की सबसे अहम वजहों में से एक था। सरकार के अनुसार यूपीएस की पांच प्रमुख विशेषताएं हैं-

सुनिश्चित पेंशन: इसके अंतर्गत सेवानिवृत्ति के अंतिम वर्ष के 12 महीनों की औसत बेसिक सैलरी का 50 प्रतिशत बतौर पेंशन मिलेगा। यह नौकरी में 25 वर्ष पूरे करने वाले कर्मचारियों पर लागू होगा। वहीं, 10 वर्ष से 25 वर्ष की सेवा देने वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन की राशि अनुपात कि हिसाब से कम होगी।

न्यूनतम पेंशन: कम से कम 10 वर्षों की नौकरी के बाद सेवानिवृत्ति के मामले में यूपीएस 10,000 रुपये प्रति माह की सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन प्रदान करता है।

फैमिली पेंशन: किसी रिटायर हो चुके व्यक्ति की मृत्यु पर उसका परिवार सेवानिवृत्त व्यक्ति द्वारा मिल रहे अंतिम पेंशन का 60% का पात्र होगा।

महंगाई भत्ता: इन तीनों प्रकार की पेंशन पर महंगाई भत्ता राहत भी मिलेगी। इसकी गणना अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर की जाएगी। यह ठीक वैसा ही होगा जैसा सेवारत कर्मचारियों को मिलता है।

सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान: यह ग्रेच्युटी के अतिरिक्त मिलने वाली राशि होगी। इसका कैलकुलेशन कर्मचारी के हर 6 महीने की सर्विस पर मासिक वेतन (मूल वेतन और महंगाई भत्ते जोड़कर) के 10वें हिस्से के तौर पर किया जाएगा।

यूपीएस, एनपीएस और ओपीएस में अंतर

ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम में जहां सरकार ही पूरे पेंशन में योगदान देती थी यानी पूरा वित्तीय बोझ सरकार पर पड़ता था। वहीं एनपीएस में सरकार और कर्मचारी दोनों अंशदान कर रहे थे। इस नई यूपीएस व्यवस्था में सरकारी कर्मचारी अपने वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा योगदान के रूप में देंगे और सरकार जो पहले 14 फीसदी अंशदान करती थी उसको बढ़ाकर 18.5 फीसदी कर दिया गया है। इसका मतलब ये हुआ कि सरकार पर ओपीएस में जो अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा था वह थोड़ा कम रहेगा।

अब समझिए कि सरकार को ओपीएस, एनपीएस और यूपीएस में क्या करना पड़ रहा था। सरकार को ओपीएस में कर्मचारी और सरकार दोनों तरफ के योगदान को खुद भरना पड़ रहा था और कर्मचारी को अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में गारंटी के साथ मिल रहा था जो टैक्स फ्री थी।

वहीं एनपीएस में सरकारी कर्मचारी अपने मूल वेतन और डीए का 10 प्रतिशत हिस्सा योगदान के रूप में दे रहे थे। साथ ही सरकार मूल वेतन और डीए का 14 प्रतिशत हिस्सा योगदान के रूप में दे रही थी। इसमें सेवानिवृत्ति के दौरान कर्मचारियों को 60 प्रतिशत रकम का फ्री विड्रॉल दिया गया था। वहीं 40 प्रतिशत रकम को बाजार में निवेश किया जाता था जिससे बाजार की स्थिति पर निर्भर करता था कि पेंशन की राशि किसी कर्मचारी के लिए कितनी होगी।

वहीं यूपीएस की बात करें तो इसमें कर्मचारी को मूल वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा योगदान के रूप में देना है। जबकि सरकार का योगदान कर्मचारी के मूल वेतन का 18.5 प्रतिशत होगा और 25 साल के कार्यकाल के बाद कर्मचारियों को अंतिम साल के मूल वेतन का औसत 50 प्रतिशत और न्यूनतम 10 हजार रुपए पेंशन मिलने का प्रावधान किया गया है। हालांकि, एनपीएस और यूपीएस में टैक्स का प्रावधान है।

एनपीएस या यूपीएस, कर्मचारी को चुनना होगा

इसमें एक व्यवस्था यह भी की गई है कि जो लोग पहले सेवानिवृत हो चुके हैं और एनपीएस के तहत आते हैं, वे भी इस योजना का लाभ ले सकेंगे। उन्हें पीपीएफ दर के ब्याज के साथ इंटरेस्ट का भुगतान एरियर के रूप में किया जाएगा। इसमें यह चुनने की स्वतंत्रता कर्मचारियों को दी गई है कि वह एनपीएस में रहना चाहते हैं या यूपीएस में। इसके साथ ही केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार भी अपने कर्मचारियों के लिए इसका इस्तेमाल कर सकती है।

ओपीएस से क्यों दूर हुई सरकार?

एनपीएस को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा लागू किया गया था। इसके पीछे ओपीएस के साथ एक मूलभूत समस्या थी। दरअसल, ओपीएस सिस्टम में सारा बोझ सरकार पर पड़ रहा था। कई एक्सपर्ट का मानना था कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण औसत जीवनकाल लंबा हो रहा है और ऐसे में ओपीएस लंबे समय तक जारी रखना मुश्किल था।

आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों की पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं। 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था। साथ ही सभी राज्यों का इस पर खर्च कुल मिलाकर 3,131 करोड़ रुपये था। हालांकि, 2020-21 तक केंद्र का पेंशन बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया। वहीं राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया।

(समाचार एजेंसी IANS इनपुट के साथ)