शिमला: हिमाचल प्रदेश आर्थिक लिहाज से खराब दौर से गुजर रहा है। इसकी तस्दीक गुरुवार को राज्य के मुखिया यानी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस ऐलान से कर दी कि वे दो महीने के वेतन और भत्ते नहीं लेंगे। यही नहीं, सुक्खू ने यह भी घोषणा कर दी कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ अन्य मंत्री, मुख्य संसदीय सचिव, बोर्ड निगमों के चेयरमैन भी दो महीने तक का वेतन और भत्ता नहीं लेंगे।
सीएम सुक्खू ने सभी विधायकों से भी आग्रह किया कि हो सके तो वे भी दो महीने का वेतन नहीं लें और किसी तरह अभी एडजस्ट कर लें। आगे देख लिया जाएगा। हालांकि, सीएम और मंत्रियों के दो महीने सैलरी नहीं लेने से राज्य पर भारी कर्जे में कोई खास सुधार नहीं होना है। दो महीने में अधिकतम एक से डेढ़ करोड़ रुपये ही बचेंगे जो कि करीब 90 हजार करोड़ के कर्जे के आगे कुछ भी नहीं है। वैसे भी मुख्यमंत्री ने इन दो महीने के वेतन को अभी केवल टालने के लिए कहा है।
बहरहाल, सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कांग्रेस शासित इस राज्य की ऐसी स्थिति कैसे हो गई? राज्य पर कितना कर्ज है और राज्य का बजट कहां गड़बड़ हो गया? आईए जानते हैं।
पहाड़ी राज्य पर कर्ज के पहाड़ का बोझ
आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश पर अभी करीब 87 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। यह देश के किसी भी पहाड़ी राज्य पर सबसे ज्यादा कर्ज है। हालात ऐसे ही बने रहे तो 31 मार्च 2025 तक ये कर्ज 95 हजार करोड़ के पार पहुंच सकता है। अभी हिमाचल प्रदेश में प्रति व्यक्ति देखें तो उन पर कर्ज 1 लाख 17 हजार रुपये तक पहुंच गया है।
क्या है बजट, कितना खर्च और कैसे हुआ बेड़ा गर्क?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश का साल भर का बजट 58, 444 रुपये का है। हालांकि, इसमें बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन और पुराने कर्जों को चुकाने में जा रहा है। साथ ही ओल्ड पेंशन स्कीम सहित कुछ और ऐसी सरकार की योजनाएं भी हैं, जिसमें सरकार के पैसे बड़ी मात्रा में खर्च हो रहे हैं। इसके अलावा केंद्र से मिलने वाली राशि में कमी और पुरानी सरकार के कर्जे भी इस स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं।
कांग्रेस ने राज्य में चुनाव से पहले पांच वादे लागू करने की बात कही थी। इसमें पांच लाख महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देना शामिल है, जिस पर प्रति वर्ष अनुमानित 800 करोड़ रुपये का खर्च है। पुरानी पेंशन योजना की बहाली से 1.36 लाख कर्मचारियों को लाभ हो रहा है और सरकारी खजाने पर प्रति वर्ष 1,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त का खर्च है। राज्य में अभी 1,89,466 से अधिक पेंशनभोगी हैं, जिनके 2030-31 तक बढ़कर 2,38,827 होने की उम्मीद है। इससे सालाना पेंशन का बोझ और बढ़ जाएगा।
इसके अलावा 680 करोड़ रुपये की राजीव गांधी स्वरोजगार स्टार्ट-अप योजना के पहले चरण के तहत ई-टैक्सी योजना शुरू की गई है। फ्री बिजली की सब्सिडी में भी सरकार खर्च करती है। इन योजनाओं, पेंशन और वेतन पर ही सरकार के 20 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके अलावा पुराने कर्ज और विकास के काम आदि के खर्च भी हैं।
पुरानी सरकार पर आरोप
राज्य की वित्तीय स्थिति पर रखे गए श्वेत पत्र के अनुसार कांग्रेस के नेतृत्व वाली हिमाचल प्रदेश सरकार को पिछली भाजपा सरकार से 92,774 करोड़ रुपये की कुल प्रत्यक्ष देनदारियां विरासत में मिली थीं। इनमें 76,630 करोड़ रुपये का कर्ज, सार्वजनिक खाते में 5,544 करोड़ रुपये की अन्य बकाया देनदारियां और दिसंबर 2022 तक वेतन संशोधन और महंगाई भत्ते (डीए) के कारण लगभग 10,600 करोड़ रुपये शामिल थे।
उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री द्वारा रखे गए इस दस्तावेज में कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 के अंत में ऋण देनदारी 47,906 करोड़ रुपये थी, जो 2018 से 2023 तक 28,724 करोड़ रुपये बढ़ गई। ये राशि 2022-23 के अंत में 76,630 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
केंद्र से भी मिला सीएम सुक्खू को झटका
विधानसभा में बोलते हुए सीएम सुक्खू ने कहा कि राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 8,058 करोड़ रुपये थी। आरडीजी दरअसल वो आर्थिक सहायता होती है जो केंद्र की ओर से राज्यों को उनकी राजस्व प्राप्तियों और राजस्व व्यय के बीच के अंतर को कवर करने में मदद करने के लिए दी जाती है। सीएम ने कहा कि चालू वित्तीय वर्ष में ये अनुदान 1,800 करोड़ रुपये घटाकर 6,258 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
उन्होंने आगे कहा, ‘2025-26 में राजस्व घाटा अनुदान 3,000 करोड़ रुपये और कम होकर मात्र 3,257 करोड़ रह जाएगा। इससे हमारे लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना और भी कठिन हो जाएगा।’ सुक्खू ने कहा कि सरकार राजस्व बढ़ाने और गैरजरूरी खर्चों में कटौती के लिए सभी प्रयास कर रही है, लेकिन इन प्रयासों का लाभ तुरंत मिलने की उम्मीद नहीं है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि साल 2023 में मानसून के दौरान सड़कों, पुलों और बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान की मरम्मत के लिए पोस्ट-डिजास्टर नीड असेसमेंट (पीडीएनए) के तहत खर्च हुए 9,042 करोड़ रुपये के मद में कोई धनराशि केंद्र से जारी नहीं की गई है। इससे राज्य की वित्तीय चुनौतियां बढ़ गई हैं।
सुक्खू के अनुसार राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत कर्मचारियों से काटे गए 9,200 करोड़ रुपये भी राज्य सरकार के कई अनुरोधों के बावजूद केंद्र द्वारा वापस नहीं किए गए हैं।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जून 2022 से केंद्र से जीएसटी मुआवजे को खत्म किए जाने के कारण वार्षिक राजस्व में 2,500-3,000 करोड़ रुपये की कमी हुई है। इसके अलावा हिमाचल में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली के बाद राज्य की उधार लेने की सीमा भी केंद्र की ओर से 2,000 करोड़ रुपये कम कर दी गई, जिससे और दबाव बढ़ा है।
सीएम सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश की पिछली भाजपा सरकार पर भी मौजूदा स्थिति के लिए ठीकरा फोड़ा। उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘राज्य की स्थिति अच्छी नहीं है और इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह पिछली भाजपा सरकार है। उन्हें 15वें वित्त आयोग के अनुसार राजस्व घाटा अनुदान से लगभग 10,000 करोड़ रुपये मिले थे और तब से यह अनुदान कम होता जा रहा है।’
सीएम सुक्खू ने कहा, ‘राज्य को आर्थिक संकट में धकेलने की जिम्मेदार पिछली BJP सरकार है। उनसे हमें ये कर्ज विरासत में मिला है। हमने अपनी राजस्व प्राप्ति सुधारी है। पिछली सरकार ने 5 साल में 665 करोड़ रुपये का राजस्व आबकारी से जुटाया था। लेकिन हमने एक साल में ही 485 करोड़ रुपये कमाए हैं।’