Photograph: (सोशल मीडिया।)
शिमलाः हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रभोध सक्सेना द्वारा आयोजित एक होली पार्टी इन दिनों विवादों में घिरी हुई है। करीब एक महीने पहले राज्य पर्यटन निगम के होलीडे होम होटल में यह आयोजन हुआ था, जिसमें अधिकारियों, उनकी पत्नियों और बच्चों समेत 75 से अधिक लोग शामिल हुए थे। अब इस कार्यक्रम का 1.22 लाख रुपये का बिल सामने आने के बाद प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में तीखी बहस छिड़ गई है।
1991 बैच के आईएएस अधिकारी सक्सेना को 31 मार्च को सेवानिवृत्ति के दिन छह महीने का सेवा विस्तार मिला था। उन्होंने 14 मार्च को शिमला स्थित होटल होलीडे होम (एचपीटीडीसी की संपत्ति) में एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें लगभग 75 लोगों ने हिस्सा लिया—इनमें 20 से अधिक आईएएस अधिकारी, उनके परिवार और 22 चालक भी शामिल थे।
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों और उनके परिजनों के लिए प्रति प्लेट 1,000 रुपये के हिसाब से कुल 75,000 रुपये का बिल बना, जिसमें स्नैक्स और लंच शामिल था। चालकों के लिए 585 रुपये प्रति प्लेट की दर से 12,870 रुपये का खर्च हुआ। साथ ही 22,350 का जीएसटी और 11,800 रुपये का टैक्सी किराया मिलाकर कुल बिल 1,22,020 रुपये बना।
इस बिल को हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) ने सामान्य प्रशासन विभाग (जीएड) को भुगतान के लिए भेजा, लेकिन सवाल यह उठा कि क्या राज्य का खजाना इस निजी आयोजन का खर्च वहन करे?
बिल पेमेंट को लेकर टकराव
बिल सोशल मीडिया पर सामने आने के बाद मामले ने तेजी से तूल पकड़ लिया। यह बिल अब प्रशासन विभाग और पर्यटन विभाग के बीच विवाद का कारण बन गया है। जहां हिमाचल पर्यटन विकास निगम का कहना है कि निगम घाटे में चल रहे होटलों को लेकर पहले ही हाईकोर्ट की सख्त नजर में है, वहीं जीएडी अब तक तय नहीं कर पाया है कि यह बिल राज्य सरकार को देना चाहिए या नहीं। इस मामले पर प्रशासन विभाग के सचिव राकेश शर्मा ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। पर्यटन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बिल अभी भी जीएडी के पास लंबित है।
इस मामले ने नौकरशाही को भी बांट दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में लिखा है कि कुछ अधिकारियों का मानना है कि “आयोजक को खुद खर्च उठाना चाहिए”, जबकि कुछ का तर्क है कि जब तक आयोजन में कोई निजी मेहमान न हों, तब तक ऐसे आयोजनों का खर्च सरकारी खजाने से उठाना नियम के दायरे में है। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, “आम तौर पर ऐसे आयोजनों में सहभागी अधिकारी आपस में खर्च बांटते हैं।”
फिजूलखर्ची बताते हुए विपक्ष कांग्रेस सरकार पर बोला हमला
इस पूरे मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। भाजपा विधायक बिक्रम ठाकुर ने सरकार और नौकरशाही पर हमला बोलते हुए कहा, “जब प्रदेश 1 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा है, तब इस तरह की फिजूलखर्ची यह दिखाती है कि सरकार और प्रशासन आम लोगों की तकलीफों से कितने दूर हैं।” उन्होंने इसे केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 का उल्लंघन बताते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों, नैतिकता और प्रशासनिक मर्यादा की खुली अवहेलना करार दिया।
उन्होंने आरोप लगाया, “संविधान के तहत राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करे और सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता बनाए रखे। दुर्भाग्यवश, जिन अधिकारियों को जनसेवा की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही सार्वजनिक धन का दुरुपयोग निजी सुख-सुविधाओं के लिए कर रहे हैं।”
विधायक ने आगे कहा, “ऐसे समय में जब हिमाचल प्रदेश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार दबाव बढ़ रहा है, यह अत्यंत आवश्यक है कि इस पूरे मामले को सामने लाने वाले व्यक्ति को सुरक्षा और संरक्षण दिया जाए, ताकि वह भयमुक्त होकर अपने पेशेवर दायित्वों का निर्वहन कर सके।”
भाजपा विधायक और प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने भी इस मामले में राज्य सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, "यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस सरकार में अधिकारी पार्टी करते हैं और उसका बिल सरकार को भरना पड़ता है। उन्होंने आरोप लगाया, अधिकारी जनता के पैसे पर मौज-मस्ती और पार्टियां कर रहे हैं। सरकार इसे रोक नहीं रही, क्योंकि खुद सरकार भी इसी में लिप्त है। भाजपा मांग करती है कि जो मुख्यमंत्री (सुखविंदर सुक्खू) हमेशा सुधार की बातें करते हैं, वे सुनिश्चित करें कि आगे से इस तरह की घटनाएं न दोहराई जाएं।
वहीं, इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए प्रभोध सक्सेना ने अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा, “यह कार्यक्रम पूरी तरह नियमों के दायरे में था। कोई निजी मेहमान नहीं थे और मैंने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया।” उन्होंने कहा कि मामला अब सामान्य प्रशासन विभाग के पास है।