नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में भारत समेत दुनिया के कई देशों में भीषण गर्मी का प्रकोप बढ़ा है। देश में हीटवेव पर बोलते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि आने वाले कुछ दिनों तक यहां के लोगों को गर्मी से राहत नहीं है।
आईएमडी के अनुसार, उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में 16 जून तक हीटवेव की स्थिति बनी रहने की उम्मीद है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्य है जो गर्मी की भयंकर मार झेल रहे हैं। हीटवेव के कारण इस साल कम से कम 500 लोगों की जान भी चली गई है।
हर साल देश में बढ़ रही गर्मी को देखते हुए आपदा प्रबंधन (डीएम)अधिनियम 2005 के तहत हीटवेव को आधिकारिक आपदाओं में शामिल करने को लेकर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। इस अधिनियम में चक्रवात और बाढ़ जैसी 12 और आपदाओं को मान्यता दी गई है लेकिन इसमें हीटवेव अभी तक नहीं शामिल है।
क्या है आपदा प्रबंधन (डीएम) अधिनियम 2005
इस अधिनियम की स्थापना 1999 के ओडिशा सुपर-चक्रवात और 2004 की सुनामी के बाद की गई थी। 2005 से लागू यह अधिनियम आपदा को महत्वपूर्ण घटना के रूप में परिभाषित करता है।
अधिनियम के अनुसार, आपदा एक ऐसी घटना होती है जिसमें जान और माल का बहुत क्षति होता है और जिसे काबू पाने मनुष्यों के क्षमता से परे होता है। बता दें कि देश में किसी तरह के आपदा से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) बनाया गया है।
ऐसे में यह अधिनियम इस तरह की घटना और आपदा को संभालने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ से फंड का इस्तेमाल करने की छूट देता है।
इसके लिए राज्य सरकारों को सबसे पहले राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष को इस्तेमाल करना होगा और फिर जब और फंड की जरूरत होगी तब एनडीआरएफ के पैसों को यूज किया जा सकता है।
अधिनियम में अभी तक हीटवेव क्यों नहीं हुआ है शामिल
शुरू में जब यह अधिनियम बना था तब भी देश में भयंकर गर्मी पढ़ती थी लेकिन उस समय हीटवेव को एक सामान्य घटना मानी जाती थी। चक्रवात और बाढ़ जैसे आपदा कभी-कभी होते हैं लेकिन गर्मी हर साल होती है, ऐसे में इसे अधिसूचित आपदाओं में शामिल नहीं किया गया था।
लेकिन पिछले 15 सालों में जिस तरीके से देश में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है, इससे भारी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं। जो लोग घर में रहते हैं और जो बाहर काम करते हैं, वे सब हीटवेव की चपेट में आ रहे हैं।
देश में बढ़ रही गर्मी को देखते हुए कई राज्यों ने ताप कार्य योजना (एचएपी) को चालु किया है ताकि लोगों को गर्मी के बचाया जा सके। एचएपी के तहत गर्मी से बचाव के लिए छांह वाले शेड लगाए गए हैं, जगह-जगह पर पानी के मटके रखें गए हैं और स्कूल-कॉलेज और ऑफिस के भी टाइमिंग को बदले गए हैं।
ऐसे में इन कार्यों के लिए फंड की जरूरत पड़ती है और अभी तक इन सभी कामों का खर्च राज्य सरकार अपने फंड से उठाती है।
हीटवेव को लेकर केंद्र क्या कहता है
कई राज्यों ने पिछले तीन वित्त आयोगों से हीटवेव को आधिकारिक आपदाओं के रूप में शामिल करने को कहा है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। देश में वित्त आयोग को यह अधिकार है कि वह तय करे कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच फंड कैसे वितरित किया जाए।
ऐसे में वित्त आयोग ने राज्यों की मांग से सहमत नहीं है और उसका कहना है कि मौजूदा लिस्ट पर्याप्त है।
देश में अभी 15वें वित्त आयोग के नियन लागू है जिसमें यह कहा गया है कि राज्य हीटवेव और बिजली गिरने जैसी स्थानीय आपदाओं के लिए अपने राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) से 10 फीसदी फंड को इस्तेमाल कर सकते हैं।
इस नियम के तहत हरियाणा, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और केरल जैसे चार राज्यों ने गर्मी को एक स्थानीय आपदा घोषित किया है।
इस कारण भी हीटवेव को शामिल नहीं किया जाता होगा
अगर राज्यों की मांग पर केंद्र सरकार हीटवेव को अधिसूचित आपदाओं के लिस्ट में शामिल कर देती है तो इससे सरकार को गर्मी के कारण होने वाली मौत पर मुआवजा भी देना अनिवार्य हो जाएगा।
अधिसूचित आपदाओं में जिन 12 आपदा को लिस्ट किया गया है कि अगर उस आपदा के कारण किसी की मौत होती है तो सरकार को मरने वालों को चार लाख रुपए का मुआवजा देना होता है।
ऐसे में अगर हीटवेव भी लिस्ट में शामिल हुआ तो इस कारण मरने वाले लोगों को भी सरकार को चार लाख का मुआवजा देना होगा जो वित्तीय रूप से सरकार के लिए बोझिल हो सकती है।
दूसरा कारण यह है कि अन्य आपदा के मुकाबले हीटवेव में होने वाली मौत की पुष्टि कैसे की जाएगी। अन्य आपदा जैसे चक्रवात और बाढ़ में यह आंकड़ा होता है कि इसके कारण इतने लोगों की जान गई है लेकिन हीटवेव में ऐसा नहीं हो सकता है।
गर्मी से मरने वाले लोगों को अन्य बीमारी भी हो सकती है तो इसका कैसे पता चलेगा कि किसी व्यक्ति की हीटवेव के कारण मौत हुई है।