नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की तीन जजों की पीठ आज दोपहर 2 बजे मामले पर सुनवाई करेगी।
हाल ही में संसद में विधेयक पारित होने के बाद कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह वक्फ (संशोधन) विधेयक (जो अब राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद कानून बन गया है) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। कांग्रेस के अलावा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित कुछ और याचिकाएं भी कोर्ट में आई हैं। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट में 73 याचिकाएं दायर हैं, जिनमें से 10 याचिकाएं सुनवाई के लिए लिस्ट हुई हैं।
कोर्ट में याचिका दायर करने वालों की क्या है दलील?
कांग्रेस ने दावा किया था कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर देश में 'ध्रुवीकरण' करना और 'विभाजित' करना है। कोर्ट में दायर अपनी याचिका में, कांग्रेस सांसद और लोकसभा में पार्टी के सचेतक मोहम्मद जावेद ने तर्क दिया कि संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता), 29 (अल्पसंख्यक अधिकार) और 300 ए (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करते हैं।
वहीं, एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर एक अन्य याचिका में कहा गया है कि संशोधन 'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30, 300ए का स्पष्ट उल्लंघन करते हैं और स्पष्ट रूप से मनमाने हैं।'
इसके अलावा एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, आप नेता अमानतुल्ला खान, राजद सांसद मनोज झा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, तैय्यब खान सलमानी और अंजुम कादरी सहित कई अन्य लोगों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की हैं।
6 राज्यों की कानून के समर्थन में अर्जियां
विपक्ष से इतर दूसरी ओर छह भाजपा शासित राज्यों - हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम ने भी सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग अर्जियां दी हैं। इसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम को रद्द करने या उसमें बदलाव करने पर पड़ने वाले संभावित प्रशासनिक और कानूनी प्रभावों को बताया गया है। सरकार ने कहा कि इस कानून से करोड़ों गरीब मुसलमानों को लाभ होगा और यह किसी भी तरह से किसी भी मुसलमान को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
हरियाणा, जिसने मुख्य याचिका में हस्तक्षेप दायर किया है, उसने वक्फ संपत्ति के प्रबंधन में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। राज्य सरकार ने अधूरे संपत्ति सर्वेक्षण, उचित लेखा-जोखा की कमी, वक्फ न्यायाधिकरणों में लंबे समय से लंबित मामलों और संपत्ति के म्यूटेशन के अनियमित या गुम हुए कई रिकॉर्ड जैसे मुद्दों की ओर इशारा किया है।
महाराष्ट्र सरकार ने जोर देकर कहा कि संसदीय रिकॉर्ड, समिति की सिफारिशें और राष्ट्रीय परामर्श से प्राप्त जानकारी प्रदान करके सुप्रीम कोर्ट की सहायता करना महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र ने भारत भर में धार्मिक बंदोबस्ती कानूनों के तुलनात्मक ढाँचे को साझा करने का भी वादा किया है। साथ ही वक्फ प्रशासन में दुरुपयोग और पारदर्शिता की कमी को उजागर करने वाले डेटा भी साझा किए।
वहीं, मध्य प्रदेश की याचिका के अनुसार वक्फ कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के शासन और विनियमन में महत्वपूर्ण सुधार लाना है। राजस्थान सरकार ने पिछली प्रथाओं पर चिंता जताई, जिसके तहत संपत्तियों को, चाहे वे निजी हों या राज्य के स्वामित्व वाली, उन्हें कथित रूप से बगैर उचित प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति घोषित किया जा रहा था।
इसमें कहा गया है कि नए प्रावधान में किसी भी ऐसी घोषणा से पहले दो व्यापक रूप से प्रसारित समाचार पत्रों में 90 दिन पहले पब्लिक नोटिस देना अनिवार्य करके ऐसे मामलों को ठीक कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ ने भी अपनी याचिका में प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने और वक्फ बोर्डों और स्थानीय अधिकारियों के बीच समन्वय में सुधार के महत्व की बात का जिक्र करते हुए नए कानून को जरूरी बताया है।
वहीं असम की याचिका में संशोधित अधिनियम की धारा 3ई की ओर ध्यान आकर्षित किया गया, जिसमें संविधान की पांचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले अनुसूचित या जनजातीय क्षेत्रों में किसी भी भूमि को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करने पर रोक लगाया गया है। राज्य ने बताया कि उसके 35 जिलों में से आठ छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं और इस प्रकार इस केस के नतीजे उसे सीधे तौर पर प्रभावित करेंगे।
राज्यों के अलावा वक्फ (संशोधन) अधिनियम का समर्थन कर रहे उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत किया है, जिसमें ओवैसी द्वारा कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिका में हस्तक्षेप करने की अनुमति मांगी गई है।