नई दिल्ली: करगिल की 1999 की जंग के बाद पहली बार भारत और पाकिस्तान पहली बार बड़े पैमाने पर जंग के मुहाने पर खड़े हैं। पहलागाम आतंकी हमले के जवाब में भारत की ओर से किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान ने मामले को और बढ़ाते हुए कई भारतीय शहरों में बुधवार और गुरुवार को हमले की नाकाम कोशिश की। पाकिस्तान की ओर से बुधवार रात 15 शहरों पर मिसाइल और ड्रोन से हमले किए, जिसे भारत की एयर डिफेंस सिस्टम ने नाकाम किया। वहीं, गुरुवार देर शाम पाकिस्तान ने बहुत बड़ी संख्या में ताबततोड़ हवाई हमले किए लेकिन भारत ने इसे भी नाकाम किया।

इसके बाद भारत ने भी गुरुवार देर रात जवाबी कार्रवाई की और सियालकोट से लेकर इस्लामाबाद और कराची, लाहौर तक में गोले बरसाए हैं। भारत में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के कई शहरों और कस्बों में गुरुवार रात ब्लैकआउट रहा। बिजली गुल रही। इसके अलावा, पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, जिसका भारतीय बलों ने मजबूत तरीके से जवाब दिया और उसकी कई चौकियों को तबाह किया।

इन सबके बीच सवाल है कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हो गई है? अगर हां, तो क्या इस बारे में कोई आधिकारिक ऐलान किया जाएगा। अभी तक भारत सरकार की ओर से ऐसी कोई बात नहीं कही गई है। जंग का ऐलान करने की क्या कोई प्रक्रिया होती है? क्या भारत में इससे संबंधित कुछ नियम हैं? आईए इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।

India-Pakistan Conflict: युद्ध का ऐलान करने की क्या कोई प्रक्रिया है, कौन करेगा?

भारत में युद्ध की घोषणा करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास है। हालांकि, राष्ट्रपति इस शक्ति का इस्तेमाल प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर कर सकते हैं। अहम बात ये भी है कि भारत के संविधान में युद्ध की औपचारिक घोषणा के लिए स्पष्ट रूप से कोई प्रक्रिया नहीं बताई गई है। दुनिया के कुछ देशों में जबकि प्रक्रिया मौजूद है। भारत के मामले में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा युद्ध जैसी स्थिति से संबंधित सबसे निकटतम संवैधानिक तंत्र है।

भारत के राष्ट्रपति यहां सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर (अनुच्छेद 53(2)) हैं। उनके पास युद्ध की घोषणा करने या शांति स्थापित करने का संवैधानिक अधिकार है। हालाँकि, इस अधिकार का प्रयोग सरकार की सलाह के आधार पर किया जाता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 53 बताता है कि संघ की कार्यकारी शक्ति भारत के राष्ट्रपति के पास है। इसके बावजूद अनुच्छेद 74 के तहत, राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना पड़ता है। इसलिए, ये साफ है कि राष्ट्रपति द्वारा युद्ध या शांति की कोई भी औपचारिक घोषणा पूरी तरह से मंत्रिमंडल की सलाह पर की जा सकती है।

केंद्रीय कैबिनेट और संसद: देश के किसी भी प्रकार के युद्ध में जाने या शांति की घोषणा करने का निर्णय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल या मंत्रिपरिषद द्वारा लिया जाता है। इसके लिए रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद इस प्रक्रिया में मंत्रिमंडल को महत्वपूर्ण सलाह देते हैं। साथ ही किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले, मंत्रिमंडल सैन्य प्रमुखों, खुफिया एजेंसियों और देश के राजनयिक पार्टियों और अन्य स्रोत्रों से भी इनपुट ले सकता है। प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का नेतृत्व करते हैं। जरूरत पड़ने पर वे राष्ट्रपति को युद्ध की घोषणा की सिफारिश भेज सकते हैं। 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल (जो युद्ध की स्थिति में लागू हो सकता है) की घोषणा केवल मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश के आधार पर कर सकते हैं।

बात संसद की भूमिका की भी कर लेते हैं। हालांकि, युद्ध के ऐलान जैसे फैसलों में संसद की पहले से सहमति लेने आदि की बाध्यता नहीं है, फिर भी यह निगरानी और जरूरत पड़ने पर रक्षा बजट बढ़ाने आदि में अहम भूमिका निभाती है। संसद के पास सैन्य कार्रवाइयों पर बहस करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार है। लंबे समय तक सैन्य मुठभेड़ों के दौरान सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह संसद को चल रही कर्रवाई आदि के बारे में सूचित करे और राजनीतिक सहमति प्राप्त करे। राष्ट्रपति द्वारा युद्ध की घोषणा कैबिनेट की सलाह पर की जाती है। इसे बाद में मंजूरी के लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

'आपातकाल' की घोषणा की प्रक्रिया

पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं। अगर युद्ध की औपचारिक घोषणा की जानी है, तो केंद्रीय मंत्रिमंडल स्थिति का आकलन करने के बाद राष्ट्रपति को लिखित अनुशंसा करेगा। मंत्रिमंडल से लिखित अनुशंसा प्राप्त करने के बाद, राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के तहत 'युद्ध' या 'बाहरी आक्रमण' के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा जारी कर सकते हैं। यह घोषणा पूरे देश या उसके कुछ हिस्सों के लिए हो सकती है।

आपातकाल की घोषणा संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जानी चाहिए। यह एक महीने तक लागू होगा। इसके बाद यह तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (मतदान करने वाले सदस्यों में कम से कम दो-तिहाई बहुमत) द्वारा इसे अनुमोदित न किया जाए।

संसद द्वारा स्वीकृत होने के बाद, आपातकाल छह महीने तक लागू रहता है। इसी तरह की प्रक्रिया के माध्यम से आपातकाल को और छह महीने की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।

यहां जानना जरूरी है कि भारतीय संविधान में 'युद्ध की घोषणा' के लिए कोई विशिष्ट अनुच्छेद या प्रक्रिया नहीं है। अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित प्रावधानों को ही युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में लागू किया जाता है।

1965, 1971 या 1999 की जंग में क्या हुआ था?

गौर करने वाली बात है कि भारत की ओर से 1947 से लेकर 1999 तक जब-जब पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर लड़ाईयां हुईं, इस दौरान कभी भी आधिकारिक तौर पर युद्ध की घोषणा नहीं की गई है। 1947 का युद्ध कश्मीर पर कबायली लोगों और पाकिस्तानी सेना के आक्रमण से शुरू हुआ था। कश्मीर के तब महाराजा रहे हरि सिंह के भारत में विलय के बाद भारत ने अपनी सेना भेजी और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। तब दोनों पक्षों की ओर से युद्ध की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी।

चीन के साथ 1962 की जंग के दौरान भी युद्ध का या आपातकाल का कोई ऐलान भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर नहीं किया गया। चीन ने एकतरफा आक्रमण शुरू किया। भारत की जवाबी कार्रवाई के बीच चीन ने खुद युद्ध विराम की भी घोषणा की और लगभग एक महीने बाद वापस चला गया।

1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग के दौरान भी कोई ऐसा ऐलान नहीं हुआ था। ताशकंद समझौता और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के बाद यह संघर्ष खत्म हुआ था। इसके बाद 1971 में भारत और पाकिस्तान एक बार फिर आमने-सामने आए। बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में भारतीय सेना को हालात को देखते हुए हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद पाकिस्तान ने भारत पर एयर स्ट्राइक किए, जिसके बाद भारत पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ युद्ध में उतरा।

1999 में जब पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने करगिल क्षेत्र में घुसपैठ की, उसके बाद यह जंग शुरू हुई थी। सेना ने भारतीय इलाकों को खाली कराने के लिए 'ऑपरेशन विजय' की शुरुआत की और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। इस दौरान भी युद्ध का कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया था।