नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से भारत समेत कई देशों में भीषण गर्मी पड़ रही है जिससे यहां रहने वाले लोगों को काफी मुसिबतों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि पूरी पृथ्वी पर गर्मी नहीं पड़ रही है बल्कि कुछ स्थानों पर भीषण हीटवेव देखने को मिल रहा है जिससे वहां रह रहे लोगों को बुरा हाल है।
पूरी पृथ्वी पर जहां-जहां शुष्क स्थान पाया जाता है वहां गर्मी के दौरान शरीर से पसीना निकल जाता है और जिससे हमारा बॉडी ठंडा हो जाता है। यहां रहने वाले लोगों को गर्मी से कोई परेशानी नहीं होती है।
कहां होती है ज्यादा हालत खराब
उन स्थानों पर हालात ज्यादा खराब होते हैं जहां भयंकर गर्मी के साथ नमी भी पाई जाती है। गर्मी और नमी के कारण शरीर से सही से पसीना नहीं निकल पाता है जिससे लोगों की हालत और भी खराब हो जाती है।
इस तरह के हालात मध्य पूर्व, पाकिस्तान और भारत जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यहां पर केवल गर्मी ही नहीं पड़ती है बल्कि यहां पर हवा में नमी भी होती है जिससे शरीर से जल्दी पसीना नहीं निकल पाता है और न ही वह हवा में आसानी से उड़ पाता है। इस कारण हमारा शरीर जल्दी ठंडा नहीं हो पाता जिससे यहां रहने वाले लोग गर्मी से बेहाल हो जाते हैं।
वेट-बल्ब टेम्प्रेचर का क्यों किया जाता है इस्तेमाल
अधिक गर्मी पड़ने वाले जगहों पर वैज्ञानिक वेट-बल्ब टेम्प्रेचर का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे इस बात का पता लगा पाए की गर्मी और आर्द्रता हमें किस प्रकार से प्रभावित कर रही है।
आसान भाषा में समझे तो वेट-बल्ब टेम्प्रेचर गर्मी एवं ह्यूडिटी की वह सीमा है जिसके ऊपर का टेम्प्रेचर मनुष्य सहन नहीं कर सकता है। अगर वेट बल्ब का तापमान 95°F (35°C) से अधिक हो जाता है तो यह सिग्नल है कि हमारा शरीर अब सही से ठंडा नहीं हो पाएगा जो हमारी लिए घातक भी साबित हो सकता है।
पृथ्वी के हर जगह नहीं है घातक जैसी स्थिति
साल 2023 में जब निचली मिसिसिपी घाटी के कुछ हिस्सों में भीषण गर्मी पड़ रही थी तब यहां पर वेट-बल्ब टेम्प्रेचर का इस्तेमाल किया गया था। उस समय वहां पर वेट बल्ब में उच्च तापमान दिखाई दे रहा था लेकिन फिर भी वहां पर हालात घातक नहीं थे।
लेकिन इसी साल मई में भारत के कई हिस्सों समेत दिल्ली में भी भीषण गर्मी पड़ी थी और लोगों को उमस भी महसूस हुआ था। इस कारण कई लोगों की कथित तौर पर जान भी चली गई थी।
जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार कौन
पूरी दुनिया के कई हिस्सों में जिस तरीके से गर्मी पड़ रही है उसका असल जिम्मेदार मनुष्य ही है। अगर आसान भाषा में समझें तो मनुष्यों द्वारा कोयला, तेल और गैस जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) निकलता है। ये सीओ2 वायुमंडल में जाकर सूर्य की गर्मी को रोक लेता है जिससे उस इलाके का तापमान बढ़ जाता है।
इसे जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। एक जगह पर जितना अधिक कार्बन ईंधन (कोयला, तेल और गैस) जलाया जाता है उस स्थान पर उतना ही सीओ2 पैदा होता है जो वायुमंडल को प्रभावित करता है। इस कारण उस स्थान पर उच्च तापमान, अधिक गर्म और आर्द्र जैसा मौसम देखने को मिलता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण घट सकती है वैश्विक आय
जहां पर उच्च तापमान, अधिक गर्मी और आर्द्र वाला मौसम देखने को मिलते हैं वहां पर इसके कारण फसलें और जंगल भी प्रभावित होते हैं। अधिक गर्मी के कारण फसलें और जंगलों में आग लगने की भी संभावना बढ़ जाती है।
इस तरह के उच्च तापमान के कारण समुद्र का स्तर भी बढ़ सकता है जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ के भी आने की संभावना काफी अधिक हो जाती है। एक आंकड़े के अनुसार, केवल जलवायु परिवर्तन के कारण साल 2100 तक वैश्विक आय में लगभग 25 फीसदी की कमी आ सकती है।
जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए क्या किया जा रहा
सरल भाषा में अगर हम समझे तो हम जितना ज्यादा कार्बन जलाते रहेंगे उतना ही सीओ2 पैदा होता रहेगा। उसी तरीके से हमें उच्च तापमान, अधिक गर्मी और नमी का भी सामना करना पड़ेगा।
इसके लिए हमें जल्द से जल्द और ज्यादा से ज्यादा सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करना होगा। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल से कार्बन पैदा नहीं होता है और इससे हमारा वातावरण भी प्रभावित नहीं होता है।
पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा को विश्वसनीय और किफायती बनाने के लिए काफी प्रगति की गई है। दुनिया के लगभग सारे देश जलवायु परिवर्तन को रोकने और धरती की मदद करने के लिए कई जरूरी कदम उठा रहे हैं। ये देश स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का बढ़चढ़ कर इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
साल 2000 के बाद गर्मी में हुआ है इजाफा
जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) समूह ने गुरुवार को कहा है कि हाल के दिनों में गर्मी में काफी इजाफा देखा गया है। समूह के अनुसार, अमेरिका, मैक्सिको और मध्य अमेरिका को प्रभावित करने वाली घातक गर्मी ग्लोबल वार्मिंग के कारण 35 गुना और अधिक होने की संभावना है।
डब्ल्यूडब्ल्यूए ने यह भी नोट किया कि मई और जून के दौरान इस क्षेत्र में अनुभव की गई ज्यादा गर्मी 25 साल पहले की तुलना में अब चार गुना अधिक होने की संभावना है।