नई दिल्ली: हलाल सर्टिफिकेशन वाले खाद्य उत्पादों के निर्माण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर कानूनी लड़ाई अब तेज हो चली है। यूपी सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सीमेंट सहित कई गैर खाद्य उत्पादों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेशन देकर लाखों-करोड़ रुपये कमाए जा रहे हैं।

कोर्ट को सरकार की ओर से बताया गया खाने के सामान के साथ-साथ लोहे की छड़ें, बोतलें और ऐसी ही कई चीजों की कीमतें ऐसे प्रमाणीकरण (certification) की वजह से महंगी हो जाती हैं। सरकार ने कहा कि देश में आज नॉन-मीट वाले खाद्य उत्पाज को भी हलाल सर्टिफिकेट दिया जा रहा है।

सीमेंट, सरिया तक के लिए हलाल सर्टिफिकेट!

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सुनवाई के दौरानन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ को बताया कि वह यह जानकर हैरान हैं कि 'हलाल' प्रमाणन केवल खाद्य पदार्थों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी प्रकार के उत्पादों के लिए किया जाता है।

उन्होंने कहा, 'जहां तक ​​हलाल मांस आदि का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, जैसा कि मुझे कल हुआ था...यहां तक ​​कि इस्तेमाल किया जाने वाला सीमेंट के लिए हलाल-सर्टिफिकेट दिया जा रहा है! सरिया (लोहे की छड़ें) को हलाल-प्रमाणित किया जा रहा है...पानी की बोतलें जो हमें मिलती हैं उन्हें हलाल-सर्टिफिकेट दिया जा रहा है।'

तुषार मेहता ने आगे कहा, 'यहां तक ​​कि आटा (गेहूं का आटा), बेसन (चने का आटा) को भी हलाल-प्रमाणित किया जाना चाहिए। बेसन भला हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है। ऐसे प्रमाणीकरण के माध्यम से कुछ लाख करोड़ एकत्र किए जाते हैं।'

सुनवाई के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद ने तुषार मेहता की दलील का विरोध किया। उन्होंने पीठ से कहा कि केंद्र सरकार की नीति में हलाल की अवधारणा को अच्छी तरह से समझाया गया है और यह जीवनशैली का मामला है। उन्होंने कहा कि सब कुछ स्वैच्छिक है और किसी को भी हलाल-प्रमाणित उत्पाद लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है।

यूपी सरकार ने 2023 में लगाया था हलाल उत्पाद पर बैन

यूपी सरकार के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन ने नवंबर 2023 में एक अधिसूचना जारी कर "तत्काल प्रभाव से हलाल-प्रमाणित उत्पादों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और वितरण" पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद, उत्तर प्रदेश पुलिस ने जाली दस्तावेजों का उपयोग करके 'हलाल-प्रमाणित' उत्पाद बेचने वाली कई कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। ये कंपनियां नकली हलाल प्रमाणपत्रों के साथ नहाने के साबुन, मसाले, स्नैक्स, डेयरी और परिधान जैसे उत्पाद बेच रही थीं।

यूपी सरकार की इसी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रही है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसे हलाल प्रमाणीकरण के कारण उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है और इससे उपभोक्ता प्रभावित होते हैं।

उन्होंने कहा कि हलाल सर्टिफिकेट देने वाली एजेंसियां इस तरह लाखों करोड़ रुपए कमा रही हैं। वहीं, हलाल सर्टिफिकेट लेने के लिए लगी लागत को भी कंपनियां प्रोडेक्ट की कीमत में जोड़ देती है। इससे कीमत बढ़ जाती है।

वहीं, यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि खाद्य उत्पादों का 'हलाल' सर्टिफिकेशन एक समानांतर प्रणाली के रूप में कार्य करता है और यह गुणवत्ता के बारे में भ्रम पैदा करता है। यूपी सरकार के अनुसार यह पूरी तरह से खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के मूल इरादे के खिलाफ है। अदालत मामले पर आगे की सुनवाई अब 25 मार्च को करेगी।