नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में मौत की सजा पाए 11 दोषियों में से कुछ की उस आपत्ति को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि दो जजों की पीठ उनके मामले की सुनवाई नहीं कर सकती।
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े, जो दो दोषियों की ओर से पेश हुए, ने न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि जैसा कि रेड फोर्ट आतंकी हमले के मामले में तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की थी, वैसे ही मौत की सजा से जुड़े मामलों में तीन जजों की पीठ की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “अगर यह दो जजों की पीठ कुछ दोषियों को मौत की सजा देती है, तो फिर मामला तीन जजों की नई पीठ के सामने दोबारा बहस के लिए जाएगा।”
इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान पीठ के 2014 के फैसले और सुप्रीम कोर्ट नियमों के अनुसार, तीन जजों की पीठ केवल उन्हीं मामलों में जरूरी है, जहाँ हाईकोर्ट ने खुद मौत की सजा दी हो या उसे बरकरार रखा हो।
गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में 11 दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला था। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें फांसी दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे कम कर दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ द्वारा सुनवाई पर कोई बाधा नहीं है। अदालत ने कहा, “आपत्ति खारिज की जाती है।” इसके साथ ही अंतिम सुनवाई शुरू हो गई।
इससे पहले, 24 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की थी कि वह 6 और 7 मई को गुजरात सरकार और अन्य दोषियों की अपीलों पर अंतिम सुनवाई शुरू करेगा।
क्या है मामला?
27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की S-6 कोच में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे राज्य में दंगे भड़क उठे थे।
गुजरात हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2017 में अपने फैसले में 31 दोषियों की सजा को बरकरार रखा था, लेकिन 11 लोगों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट में एक ओर राज्य सरकार मौत की सजा की बहाली की मांग कर रही है, वहीं कई दोषियों ने मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है।