नई दिल्लीः पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम प्रणाली को लेकर एक कार्यक्रम में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहद जटिल और बहुस्तरीय है। उन्होंने कहा कि इसमें न्यायपालिका का कोई एकाधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट अकेले नियुक्तियों को अंतिम रूप नहीं देता।
चंद्रचूड़ ने यह बातें एनडीटीवी के विशेष कार्यक्रम ‘संविधान@75’ कॉन्क्लेव में कही। उन्होंने कहा कि यह बहुस्तरीय और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों और खुफिया एजेंसियों सहित कई पक्षों की भूमिका होती है। इन सभी से प्राप्त सुझावों और सूचनाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है।
जजों की नियुक्तियों में कॉलोजियम प्रणाली कैसे काम करता है?
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठता, ईमानदारी और क्षेत्रीय व सामाजिक प्रतिनिधित्व जैसे मानदंड तय किए हैं। इस दौरान जब उनसे प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। उन्होंने चेताया कि यदि नियुक्तियों के सभी कारण सार्वजनिक कर दिए जाएं, तो यह न्यायाधीशों के करियर और उनकी निष्पक्षता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
कॉलेजियम प्रणाली के तहत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है। पिछले वर्ष यह प्रक्रिया केंद्र की आलोचना के केंद्र में रही थी। चंद्रचूड़ ने कहा कि “पारदर्शिता के प्रयास में हमें ऐसा समाधान नहीं खोजना चाहिए जो समस्या से भी गंभीर हो जाए। यह प्रक्रिया लोगों के जीवन और करियर से जुड़ी है, इसलिए इसमें गोपनीयता का संतुलन जरूरी है।”
कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों का अलगाव
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है, लेकिन उसे लागू करने का अधिकार पूरी तरह से न्यायपालिका के हाथों में है। यह न सिर्फ अधिकार है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में यह सिद्धांत कानून निर्माण, कार्यान्वयन, और विवाद निपटान की जिम्मेदारियों को अलग-अलग संस्थानों को सौंपता है। हालांकि, जब नीतियों का अभाव होता है या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश तब तक लागू रहे, जब तक संसद ने इस पर कानून नहीं बनाया।” उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट केवल नीतिगत मामलों से खुद को अलग नहीं कर सकता, खासकर जब मौलिक अधिकारों की बात हो।
‘सोशल मीडिया की टिप्पणियों का जजों पर मानसिक दबाव पड़ता है’
चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि जजों पर सोशल मीडिया की टिप्पणियों का मानसिक दबाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि जब वे जज थे, तो सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं से दूर रहते थे ताकि अदालत के कामकाज पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
उन्होंने कहा कि कामकाज के दौरान सोशल मीडिया पर हो रही चर्चाओं से मैं दूर रहता था। जबकि कोर्ट के क्लर्क सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते थे और वे मुझसे सोशल मीडिया कमेंट न पढ़ने का अनुरोध किया करते थे। क्योंकि उन टिप्पणियों से निराशा होती थी। उन्होंने कहा, सोशल मीडिया पर की जाने वाली टिप्पणियां कभी-कभी जजों के आत्मविश्वास को प्रभावित करती हैं, इसलिए इससे बचाव जरूरी है।
पूरा जीवन न्यायिक कार्यों को समर्पित रहाः डीवाई चंद्रचूड़
अपने कार्यकाल के दौरान की दिनचर्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन न्यायिक कार्यों को समर्पित रहा। उन्होंने कहा कि उनका अधिकांश समय केस की फाइलें पढ़ने, कोर्ट में सुनवाई करने और फैसले लिखने में ही बीता। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि 24 वर्षों तक जज रहने के बाद उनके लिए नई शुरुआत करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होगा। कार्यक्रम के दौरान जब उनसे उनके पसंदीदा क्रिकेट खिलाड़ी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के दो सितारों – विराट कोहली और जसप्रीत बुमराह – को अपना पसंदीदा बताया।