नई दिल्ली: नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से बार-बार जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने का विरोध किया है। हालांकि, निजी तौर पर उन्होंने केंद्र के कदम का समर्थन किया था। यह बड़ा दावा पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलत ने अपनी नई किताब 'द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई' में किया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अपने सार्वजनिक भाषणों और मीडिया से बातचीत में मोदी सरकार के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को बार-बार 'विश्वासघात' तक बताने वाले फारूक अब्दुल्ला ने निजी बातचीत में इस पर समर्थन जताया। हालाँकि, उनकी पार्टी ने किताब में किए गए दावों का खंडन करते हुए कहा है कि 'लेखक अपनी पुस्तक को सनसनीखेज बनाना चाहते हैं।'
एएस दुलत ने किताब में फारूक अब्दुल्ला को लेकर क्या कहा है?
किताब में इस बात का जिक्र किया गया है कि अब्दुल्ला ने दुलत से एक बार कहा, 'हम प्रस्ताव पारित करने में मदद करते। हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?'
दुलत लिखते हैं कि अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से कुछ दिन पहले अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। वे लिखते हैं, 'क्या हुआ था...कोई भी कभी नहीं जान पाएगा।' अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद फारूक अब्दुल्ला को सात महीने तक हिरासत में रखा गया था। दुलत ने लिखा, 'वे (सरकार) चाहते थे कि वह नई वास्तविकता को स्वीकार करें।'
साल 2020 में जब अब्दुल्ला को हिरासत से रिहा किया गया तो उनके बयान सामने आए थे। उन्होंने सरकार के फैसले का समर्थन करने से इनकार किया था। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने दुलत से कहा, 'मैं जो भी कहूंगा, संसद में कहूंगा।'
गौरतलब है कि अब्दुल्ला ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के साथ हाथ मिलाया और केंद्र के फैसले के खिलाफ आवाज उठाने सहित अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करने के लिए गुपकार गठबंधन बनाया।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने किताब में किए दावों पर क्या कहा?
एनसी के प्रमुख प्रवक्ता और विधायक तनवीर सादिक ने कहा, 'दुलत ने किताब में अपने ही बयान का खंडन किया है। फारूक अब्दुल्ला ने पीएजीडी (गुपकार गठबंधन) को आगे बढ़ाया और इसे बनाया। अगर यह सच होता तो ऐसा नहीं करते।'
वहीं, किताब में किए गए दावों को 'कल्पना की उपज' बताते हुए पार्टी प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि दुलत 'बस ध्यान खींचना चाहते हैं।' उन्होंने कहा, 'ये दावे कल्पना की उपज हैं। लेखक ध्यान खींचना चाहते हैं और किताब को सनसनीखेज बनाना चाहते हैं।'
जम्मू-कश्मीर में विपक्ष ने उठाए फारूक अब्दुल्ला पर सवाल
दुलत की किताब में किए दावों ने जम्मू-कश्मीक की राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ा दी है। जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने अब्दुल्ला पर निशाना साधा और कहा कि दुलत द्वारा किए गए दावे 'बहुत विश्वसनीय' हैं क्योंकि वह पूर्व मुख्यमंत्री के 'सबसे करीबी सहयोगी' रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वह इस खुलासे से हैरान नहीं हैं क्योंकि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले अब्दुल्ला की प्रधानमंत्री के साथ बैठक 'मेरे लिए कभी रहस्य नहीं थी।'
उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस की 2024 की जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव जीत पर कटाक्ष करते हुए एक्स पर लिखा, 'मैं व्यक्तिगत रूप से इस खुलासे से हैरान नहीं हूं। सीएम साहब और फारूक साहब की पीएम के साथ 4 अगस्त 2019 की बैठक मेरे लिए कभी रहस्य नहीं थी। मैं फारूक साहब को यह कहते हुए देख सकता हूं- हमें रोने दीजिए - आप अपना काम करें - हम आपके साथ हैं - अब ऐसा लगता है कि 2019 में की गई सेवाओं का पुरस्कार ही अब 2024 में दिख रहा है। बेशक राष्ट्रीय हित में।'
Dullat sahib has revealed in his upcoming book that Farooq Sahib privately supported the abrogation of Article 370.
— Sajad Lone (@sajadlone) April 16, 2025
Coming from Dullat sahib makes this revelation very credible. Dullat sahib is the closest ally of and friend of Farooq sahib. Virtually his alter ego.…
महबूबा मुफ्ती की बेटी ने भी साधा निशाना
पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने भी फारूक अब्दुल्ला की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि साल 2019 में संसद में विधेयक पारित होने के दिन उनकी अनुपस्थिति और अब खुलासे से यह स्पष्ट हो गया है कि एनसी प्रमुख ने जम्मू-कश्मीर के साथ 'विश्वासघात' में 'मदद' करने के लिए 'संसद की बजाय कश्मीर में रहना चुना।'
उन्होंने एक्स पर लिखा, 'दुलत साहब, जो अब्दुल्ला के समर्थक हैं, उन्होंने साझा किया है कि कैसे फारूक साहब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दिल्ली के अवैध कदम से सहमत थे। जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द किए जाने से कुछ दिन पहले अब्दुल्ला और पीएम के बीच क्या हुआ, इस पर पहले से ही संदेह था। इससे यह स्पष्ट है कि फारूक साहब ने जम्मू-कश्मीर के संविधान को खत्म करने और उसके बाद विश्वासघात में मदद करने के लिए संसद के बजाय कश्मीर में रहना चुना।'