आपराधिक मामले किसी के खिलाफ लंबित हैं तो भी पासपोर्ट के लिए अदालत की इजाजत जरूरी नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता उमापति ने 20 जनवरी 2022 को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। इस आदेवन के बाद पासपोर्ट प्राधिकरण ने पाया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सुल्तानपुर में दो आपराधिक मामले दर्ज हैं।

एडिट
Married Muslims are not allowed to live in live-in relationship Allahabad High Court ordered

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo: IANS)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में यह फैसला सुनाया है कि लंबित आपराधिक मामलों वाले व्यक्तियों को पासपोर्ट पाने से पहले अदालत से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

जस्टिस आलोक माथुर और अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह साफ किया है कि सक्षम प्राधिकारी को पासपोर्ट अधिनियम की धारा 5 के तहत पासपोर्ट आवेदनों पर निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर प्राधिकारी पासपोर्ट आदेवन करने वाले को उपयुक्त पाता है तो इस केस में वह उसे पासपोर्ट जारी कर सकता है।

अदालत ने आगे कहा कि अगर प्राधिकारी को यह लगता है कि आवेदक पासपोर्ट के लिए फिट नहीं है और वह नियमों पर खरा नहीं उतर रहा है तो इस केस में वह भारतीय पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6 के तहत पासपोर्ट देने करने से मना कर सकता है।

एक याचिका में कोर्ट ने सुनाया है यह फैसला

कोर्ट का यह फैसला उमापति बनाम भारत संघ (रिट –सी नंबर –5587/2024) की एक याचिका के जवाब में आया है जिसका पासपोर्ट आवेदन लंबित आपराधिक मामलों के कारण रुका हुआ था।

बता देें कि याचिकाकर्ता उमापति ने 20 जनवरी 2022 को पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। इस आदेवन के बाद पासपोर्ट प्राधिकरण ने पाया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ सुल्तानपुर में दो आपराधिक मामले दर्ज हैं।

याचिकाकर्ता ने यह मांग की थी

ऐसे में प्राधिकरण द्वारा इस मामले में कोई भी फैसला नहीं लिया गया था। इसके बाद उमापति ने एक रिट याचिका दायर कर प्राधिकरण से अपने पासपोर्ट आवेदन पर निर्णय लेने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। इस याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।

फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को पासपोर्ट जारी करने से पहले अदालत की मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने क्या तर्क दिया है

मामले में केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडे ने तर्क दिया है कि पासपोर्ट प्राधिकरण कोई निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं है और याचिकाकर्ता को उस अदालत में आवेदन करना चाहिए जहां उसके आपराधिक मामले लंबित हैं।

अदालत ने क्या कहा

कोर्ट ने एसबी पांडे के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जब आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोग पासपोर्ट के लिए आवेदन करते हैं तो इस केस में पासपोर्ट अधिनियम के तहत फैसला लिया जाता है। इसमें कोर्ट का कोई रोल नहीं है।

अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को उस समय संबंधिक कोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत है जब याचिकाकर्ता विदेश की यात्रा करने जा रहा है। अगर वह केवल पासपोर्ट का आवेदन कर रह है तो इस केस में उसे कोर्ट की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

अधिनियम में नहीं है कोई प्रावधान मौजूद-कोर्ट

अदालत ने कहा, “अधिनियम की योजना स्पष्ट रूप से दिखाती है कि पासपोर्ट जारी करने के लिए आवेदन को अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा विचार और निर्णय लिया जाना चाहिए।”

अदालत ने यह भी साफ किया है कि भारतीय पासपोर्ट अधिनियम में कोई भी प्रावधान मौजूद नहीं जिससे यह साबित होता है कि लंबित आपराधिक मामले वाले व्यक्तियों को पासपोर्ट आवेदन करने से पहले कोर्ट से अनुमति लेना जरूरी बताता हो।

कोर्ट ने क्या आदेश दिया

अदालत ने पासपोर्ट प्राधिकरण को याचिकाकर्ता उमापति के 20 जनवरी 2022 के पासपोर्ट के आवेदन पर एक महीने के भीतर कानून के मुताबिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। इस केस में याचिकाकर्ता के तरफ से वकील दीपक कुमार उनका प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article