मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद केस में रिसर्चर रोना विल्सन और एक्टिविस्ट सुधीर धवले को जमानत दे दी है। कोर्ट ने बुधवार को दोनों को जमानत दी। रोना विल्सन और सुधीर धवले 2018 से इस मामले में जेल में बंद थे।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस कमल खट्टा की खंडपीठ ने कहा कि दोनों लंबे समय से जेल में बंद हैं और ट्रायल के जल्द पूरा होने की कोई संभावना भी नहीं है। इसके बाद दोनों को कोर्ट ने जमानत देने का फैसला किया।
एक-एक लाख रुपये के मुचलके पर जमानत
बचाव पक्ष के वकील मिहिर देसाई और सुदीप पासबोला ने तर्क दिया था कि दोनों आरोपी 2018 से जेल में बंद हैं और यहां तक कि विशेष अदालत द्वारा अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। कोर्ट ने विल्सन और धवले को एक-एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा करने और मुकदमे की सुनवाई के लिए विशेष एनआईए अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने दोनों आरोपियों को साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने, विशेष अदालत की अनुमति के बिना मुंबई नहीं छोड़ने, पासपोर्ट जमा करने और मुंबई में एनआईए मुख्यालय में हर सोमवार को उपस्थिति दर्ज कराने जैसी शर्तें भी रखी है।
हाई कोर्ट ने अपने जमानत आदेश में कहा कि वह इस स्तर पर मामले की मेरिट पर विचार नहीं कर रहा है। पीठ ने कहा कि मामले में 300 से अधिक गवाह हैं और इसलिए मुकदमे का जल्द खत्म होना संभव नहीं है। इससे पहले दिसंबर में एक विशेष एनआईए अदालत ने कार्यकर्ता रोना विल्सन द्वारा दायर अस्थायी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। विल्स तलोजा सेंट्रल जेल में बंद है।
क्या है एल्गार परिषद केस?
साल 2018 में मराठाओं और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पहली जनवरी को एक सामारोह आयोजित किया गया था। इसी दौरान हिंसा भड़की थी। इसके बाद घटना से संबंधित मामले की जांच पुणे पुलिस ने शुरू की।
पुलिस का दावा था कि 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए गए। इसके बाद अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा में हिंसा भड़की।
पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जांच अपने हाथ में ले ली। मामले में गिरफ्तार किए गए 16 लोगों में से कई अब जमानत पर बाहर हैं।
रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। सुधीर धवले मामले में शुरुआत में गिरफ्तार होने वाले कुछ आरोपियों में से एक थे। उन पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सक्रिय सदस्य होने का आरोप था। सुधीर को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था।
मामले में अभियुक्त बनाए गए लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। यूएपीए जैसे सख्त कानून के तहत आरोप तय किए गए। जनवरी 2020 में पूरे मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई।