भारतीय लाइट टैंक 'जोरावर' का पहला परीक्षण सफल, जानें इसकी लागत और विशेषताएं

जोरावर का अभी 12 से 18 महीने तक परीक्षण किया जाएगा। इसे गर्मी, सर्दी और उच्च ऊंचाई पर भी इस्तेमाल करके देखा जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टैंक हर स्थिति में सक्षम हो।

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भारतीय लाइट टैंक 'जोरावर' का पहला परीक्षण सफल, जानें इसकी लागत और विशेषताएं

इस टैंक का नाम प्रसिद्ध जनरल जोरावर सिंह के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1834 से 1841 के बीच डोगरा सेना का नेतृत्व करते हुए लद्दाख और तिब्बत में कई महत्वपूर्ण जीत हासिल की थीं। फोटोः DRDO (X)

नई दिल्लीः रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के भारतीय लाइट टैंक 'जोरावर' का पहला परीक्षण सफल रहा। 13 सितंबर को बीकानेर के रेगिस्तानी इलाके महाजन फायरिंग रेंज में किए गए फील्ड परीक्षण के दौरान जोरावर ने उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखाया और सभी निर्धारित लक्ष्यों को पूरा किया।

DRDO ने एक बयान में बताया, रेगिस्तानी इलाके में किए गए फील्ड ट्रायल के दौरान, लाइट टैंक ने शानदार प्रदर्शन दिखाया और सभी निर्धारित लक्ष्यों को पूरा किया। पहले चरण में, टैंक की फायरिंग क्षमताओं की गहन जांच की गई और यह लक्षित वस्तुओं पर सही निशाना लगाने में सफल रहा। इस टैंक वजन 25 टन है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सफलता को भारत के रक्षा प्रणालियों और तकनीकों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने इस उपलब्धि को भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में एक बड़ा मील का पत्थर करार दिया।

'जोरावर' टैंक: डीआरडीओ और लार्सन एंड टुब्रो ने मिलकर बनाया

'जोरावर' टैंक को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) ने मिलकर विकसित किया है। दोनों मिलकर ऐसे 354 लाइट टैंकों का निर्माण करेंगे। इस टैंक को तैयार करने में दो साल का वक्त लगा है। डीआरडीओ के प्रमुख, डॉ. समीर वी. कामत ने 6 जुलाई को गुजरात के लार्सन एंड टुब्रो के हजीरा संयंत्र में इसके पहले प्रोटोटाइप का अवलोकन किया था।

गन के बाद अब होगा मिसाइल फायरिंग का परीक्षण

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, टैंक की 105 मिमी की गन ने प्रभावी ढंग से फायरिंग की। आगामी परीक्षणों में मिसाइल फायरिंग भी शामिल होगी। डीआरडीओ की योजना है कि विभिन्न परीक्षण जनवरी 2025 तक पूरे कर लिए जाएं। इसके बाद टैंक को सेना को सौंप दिया जाएगा। इसका अभी 12 से 18 महीने तक परीक्षण किया जाएगा। इसे गर्मी, सर्दी और उच्च ऊंचाई पर भी इस्तेमाल करके देखा जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टैंक हर स्थिति में सक्षम हो।

डीआरडीओ ने यह भी बताया कि भारतीय उद्योगों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), ने विभिन्न उप-प्रणालियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे स्वदेशी रक्षा निर्माण क्षमताओं की ताकत और बढ़ी है।

माना जा रहा है कि 2027 तक जोरावर टैंक को सेवा में शामिल किया जा सकता है। इस टैंक से भारतीय सेना को काफी मजबूती मिलेगी। खासकर चीन की सेना के खिलाफ। क्योंकि चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उच्च पावर-टू-वेट रेशियो वाले लाइट टैंक के साथ कई आधुनिक टैंक तैनात कर रखे हैं।

भारतीय सेना ने लद्दाख क्षेत्र में भारी रूसी मूल के टी-72 और टी-90 टैंक तैनात किए हैं, लेकिन ये टैंक मैदानी और रेगिस्तानी इलाको में ही मार कर सकते हैं। चीन के साथ बढ़ते सीमा विवाद के बाद लाइट टैंकों की आवश्यकता महसूस की गई, जो कि पर्याप्त अग्नि शक्ति, सुरक्षा, निगरानी और संचार क्षमताओं से लैश हों।

'जोरावर' टैंक की क्या है लागत और इसकी विशेषताएं?

नया लाइट टैंक लगभग ₹17,500 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है। यह टैंक वायु मार्ग से भी ले जाया जा सकता है, पानी में भी चल सकता है, और ऊंचे कोणों पर भी फायर कर सकता है। इसके साथ ही, यह सीमित मात्रा में तोपखाने का काम भी कर सकता है।

जोरावर एलबीटी में तीन सदस्यीय दल, 25 टन वजन, 105 मिमी की गन और एक ड्रोन (UAV) क्षमता शामिल है, जो इसे युद्ध के मैदान में बेहतर दृष्टिकोण और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में त्वरित तैनाती में सक्षम बनाती है।

टैंक का इंजन अमेरिकी कंपनी कमिंस ने विकसित किया है, क्योंकि जर्मनी ने अपने मोटरन-उंड टर्बाइन यूनियन (एमटीयू) इंजन को भारत को बेचने के लिए निर्यात नियंत्रण में छूट देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने तेजी से निर्णय लेते हुए अमेरिकी कमिंस इंजन को चुना, जिसने एलएंडटी, CVRDE और भारतीय सेना की सभी जरूरतों को पूरा किया।

जोरावर का वर्तमान प्रोटोटाइप 40 हॉर्स पावर प्रति टन (HP/tonne) से कम की पावर-टू-वेट रेश्यो के साथ आता है, जो लद्दाख जैसे उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में टैंक को सही संतुलन के साथ चलाने के लिए उपयुक्त है। लद्दाख की 5,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पतली हवा में टैंक का इंजन बेहतरीन प्रदर्शन कर सके, इसके लिए खास ध्यान रखा गया है। इस कठिन इलाके में जोरावर टैंक की चलने और लड़ने की क्षमताओं का सटीक परीक्षण होना अभी बाकी है।

जोराव की तुलना उसके चीनी समकक्ष, टाइप-15, से की जा रही है और इसे चीनी टैंक से बेहतर बताया जा रहा है। लेकिन इसकी वास्तविक क्षमता का आकलन तभी होगा जब इसे कई मैदानी परीक्षणों और संभवतः वास्तविक युद्ध परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाएगा।

जोरावर नाम क्यों?

इस टैंक का नाम प्रसिद्ध जनरल जोरावर सिंह के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1834 से 1841 के बीच डोगरा सेना का नेतृत्व करते हुए लद्दाख और तिब्बत में कई महत्वपूर्ण जीत हासिल की थीं।

रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने दिसंबर 2022 में ₹84,328 करोड़ की रक्षा परियोजनाओं को मंजूरी दी थी, जिसमें यह लाइट टैंक भी शामिल था। डीएसी की मंजूरी सैन्य हार्डवेयर खरीदने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम है।

3 सितंबर 2024 को, डीएसी ने ₹1.45 लाख करोड़ के सैन्य हार्डवेयर की खरीद के लिए मंजूरी दी, जिसमें भविष्य के युद्धक वाहन (FRCVs) भी शामिल हैं। सेना 1,770 FRCVs को शामिल करने की योजना बना रही है, जिसकी लागत लगभग ₹45,000 करोड़ है।

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