नई दिल्लीः रक्षा तकनीक के क्षेत्र में भारत को बड़ी सफलता मिली है। भारत अब रूस, अमेरिका और चीन की श्रेणी में शामिल हो गया है जिनके पास उन्नत लेजर हथियार क्षमताएं हैं। भारत ने 30 किलोवाट की लेजर आधारित प्रणाली का सफलता पूर्वक परीक्षण किया है। इस प्रणाली का इस्तेमाल करके भारत अब फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट, मिसाइल और ड्रोन को बेअसर कर सकता है। 

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने इसे विकसित किया है। अब यह उत्पादन और विभिन्न सैन्य प्लेटफॉर्म पर तैनात करने के लिए तैयार है। इस क्षेत्र में सफलता मिलने के बाद भारत अब अमेरिका, रूस और चीन की लिस्ट में शामिल हो गया है।

डीआरडीओ की सफलता पर क्या बोले चेयरमैन?

डीआरडीओ की इस सफलता पर चेयरमैन समीर वी. कामत ने कहा "यह यात्रा की शुरुआत भर है। इस लैब ने डीआरडीओ की अन्य लैब,उद्योग और एकेडमिया के साथ जो तालमेल स्थापित किया है, मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंचेगे...हम उच्च ऊर्जा माइक्रोवेव, विद्युत चुंबकीय स्पंदन जैसी उच्च ऊर्जा सिस्टम के साथ भी काम कर रहे हैं। इसलिए हम प्रौद्योगिकियों की संख्या पर काम कर रहे हैं जो हमें स्टार वार्स क्षमता देगी। आज जो आपने देखा वह स्टार वार्स टेक्नोलॉजी का एक घटक है।"

उन्होंने आगे कहा "जितना मैं जानता हूं, अमेरिका, रूस और चीन ने ही इस क्षमता का प्रदर्शन किया है।"

30 किलोवाट क्षमता का यह हथियार हवाई खतरों से निपटने के लिए तैयार किया गया है। इससे पांच किलोमीटर की रेंज में ड्रोन और हेलिकॉप्टर को बेअसर किया जा सकेगा। यह उन्नत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं से लैस है जिसमें संचार और उपग्रहों को जाम करने संबंधी कई क्षमताएं हैं। 

धरती और समुद्री जहाज में किया जा सकेगा इस्तेमाल

इसकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण इसे जमीन आधारित सिस्टम के साथ-साथ जहाज पर सवार एप्लिकेशन में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे भारत के रक्षा क्षेत्र को मजबूती मिलेगी। यह सिस्टम 360 डिग्री इलेक्ट्रो ऑप्टिकल/इंफ्रा रेड सेंसर से सुसज्जित है। इस सेंसर के माध्यम से इसे आसानी से और जल्दी ही वायु, रेल, रोड या फिर समुद्र में तैनात किया जा सकेगा। 

डीआरडीओ इससे भी अधिक शक्तिशाली सिस्टम पर काम कर रहा है जिनमें 300 किलोवाट क्षमता का "सूर्या" लेजर है। यह 20 किलोमीटर तक अभियान को अंजाम दे सकता है और इस रेंज में उपस्थित मिसाइल, ड्रोन को बेअसर कर सकता है।