'डिजिटल एक्सेस है मौलिक अधिकार', सुप्रीम कोर्ट ने KYC नियमों को लेकर जारी किए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केवाईसी को लेकर कई नियम जारी किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल एक्सेस को मौलिक अधिकार बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुच्छेद-21 के तहत जीने के अधिकार का अभिन्न अंग बताया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल एक्सेस को बताया मौलिक अधिकार Photograph: (ग्रोक)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को डिजिटल एक्सेस के संबंध में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने डिजिटल एक्सेस को संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत मौलिक अधिकार बताया है।

सुप्रीम अदालत ने 'नो योर कस्टमर (केवाईसी)' के संबंध में कुछ सुधार करने के निर्दश दिए हैं ताकि दिव्यांग जनों और चेहरे की विकृति से पीड़ित लोगों को डिजिटल एक्सेस दी जा सके। इसमें दृष्टि दोष वाले लोग भी शामिल हैं। 

अनुच्छेद-21 के तहत बताया अभिन्न अंग

जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने इसे अनुच्छेद-21 के तहत जीने के अधिकार का अभिन्न अंग बताया है। इसके साथ ही कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि सभी सरकारी वेबसाइटों, शैक्षणिक प्लेटफॉर्म और वित्तीय तकनीकी सेवाओं को सभी के लिए सुलभ बनाना चाहिए। अदालत ने इसमें कमजोर और समाज के पिछड़े तबकों तक भी इन्हें पहुंचाने के बारे में निर्देश दिया है। 

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दो जनहित याचिकाएं दायर की गईं थी जिनकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। 

मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा "हमने माना है कि विकलांग लोगों के लिए केवाईसी प्रक्रियाओं में बदलाव की जरूरत है। हमने 20 निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता जो कि एसिड अटैक और अंधेपन से पीड़ित चेहरे की विकृति के कारण केवाईसी कराने में असमर्थ रहे हैं... "

अदालत ने आगे कहा कि संवैधानिक अधिकार सभी याचिकाकर्ताओं को केवाईसी प्रक्रियाओं में समायोजित करने का वैधानिक अधिकार प्रदान करते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि यह जरूरी है कि डिजिटल केवाईसी दिशानिर्देशों को एक्सेसेबिलिटी कोड के साथ संशोधित किया जाए। 

अदालत के समक्ष अमर जैन की तरफ से एक याचिका दायर की गई थी जो खुद एक वकील हैं और 100 प्रतिशत दृष्टिदोष से पीड़ित हैं। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें ऑनलाइन औपचारिकताएं पूरी करने में नियमित रूप से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?

उन्होंने बताया कि ये परेशानियां सभी दिव्यांग खासकर जो दृष्टि दोष या कम दृष्टि से पीड़ित हैं। 

उन्होंने सुधारों की मांग करते हुए कहा कि मौजूदा केवाईसी पद्धतियों में से कोई भी सुगमता को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई है। उन्होंने आगे बताया कि अंधेपन या कम दृष्टि वाले व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की शारीरिक सहायता के बिना इन्हें पूरा करने में असमर्थ हैं। 

इसी तरह एक और याचिका में पीड़िता प्रज्ञा प्रसून जो कि एसिड अटैक पीड़ित हैं, ने भी बताया कि उनकी आंखों और चेहरे पर गंभीर चोट है। उन्होंने बताया कि साल 2023 में आईसीआईसीआई बैंक में खाता खुलवाने में परेशानी का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अदालत के समक्ष कहा कि केवाईसी/ई-केवाईसी के लिए लाइव फोटोग्राफ चाहिए था। आईसीआईसीआई बैंक ने इस असमर्थता के चलते प्रज्ञा का खाता नहीं खुल सका था। 

हालांकि, बाद में याचिकाकर्ता द्वारा इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाए जाने के बाद बैंक ने इसे अपवाद मानते हुए खाता खोलने की अनुमति दी थी। 

इन याचिकाओं की सुनवाई करते समय कोर्ट ने केवाईसी से संबंधित कुछ निर्देश जारी किए और डिजिटल एक्सेस को मौलिक अधिकार बताते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। 

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