दिल्ली: भारत के इतिहास की तारीख में 18 मई 1974 का एक खास महत्व है। यही वो दिन है, जब पहली बार भारत ने परमाणु परीक्षण किया था। इस दौर में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। इसके बाद अटल बिहार वाजपेयी के कार्यकाल में भारत ने 11 मई और 13 मई, 1998 को परमाणु परीक्षण किए। दोनों ही मौकों पर भारत के लिए इन परमाणु परीक्षणों को अंजाम देना आसान नहीं था। अमेरिका और पश्चिमी ताकतें बिल्कुल इस पक्ष में नहीं थीं कि भारत ऐसा कोई टेस्ट करे। हालांकि, तमाम बाधाओं के बीच भारत ने उस रास्ते को चुना जो उसके लिए ठीक था।
अब सवाल है कि भारत ने जब 1974 में ही परमाणु परीक्षण कर लिया था तो फिर उसे 1998 में दोबारा इसे करने की जरूरत क्या पड़ी? दोनों ही टेस्ट राजस्थान के पोखरण में किए गए। क्या दोनों परमाणु परीक्षणों में कोई अंतर था? अगर अंतर था तो ये किस तरह का अंतर था? क्या भारत 1998 में भी परमाणु परीक्षण करके कोई और संदेश देना चाह रहा था, जबकि इन दोनों टेस्ट के बाद उसे कई तरह की प्रतिबंधों का सामना भी पश्चिमी ताकतों से करना पड़ा। इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं। हालांकि, इन सवालों के जवाब से पहले दोनों परमाणु परीक्षण के बारे में जान लेते हैं।
ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा: पोखरण-1, भारत का पहला परमाणु परीक्षण
भारत का पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया गया था। यह एक यह एक फिजन (Fission) यानी विखंडन टेस्ट था। इसे जमीन के करीब 107 मीटर नीचे किया गया था। इस ऑपरेशन का सीक्रेट नाम दिया गया था- स्माइलिंग बुद्धा। इसकी दिलचस्प कहानी भी है और बार-बार इसका जिक्र आता है कि कैसे पहले परमाणु परीक्षण के बाद तब परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे होमी सेठना ने टेस्ट की सफलता को लेकर प्रधानमंत्री के निजी सचिव रहे पीएन धर को कोड वर्ड में संदेश दिया था। उन्होंने उनसे फोन पर कहा था- ‘बुद्धा इज स्माइलिंग।’ यह भी संयोग ही था कि उस दिन बुद्ध पूर्णिमा था।
यह परमाणु परीक्षा 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए जंग और बांग्लादेश के बनने के करीब तीन साल बाद हुआ था। ऐसे में पूरी दुनिया भारत के कदम को शक की निगाह से देख रही थी। हालांकि, इस अभियान के लिए भारत 1967 से ही तैयारी में लगा हुआ था। कहते हैं कि कैबिनेट के ही कई मंत्रियों को इसकी भनक नहीं थी। इस परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे लेकिन सोवियत संघ ने खुलकर भारत का साथ दिया था। इस परीक्षण से भारत विश्व का तब छठा (अमेरिका, सोवियत संघ (अब रूस), यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और चीन के बाद) परमाणु शक्ति वाला देश बन गया था।
ऑपरेशन शक्ति: पोखरण-2, भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण
भारत ने बाद में 1998 में 11 और 13 मई को दो और परमाणु परीक्षण किए। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ नाम दिया गया। इसमें 11 मई को तीन धमाके और 13 मई को दो धमाके किए गए। इसे भी पोखरण में जमीन के नीचे गहराई में अंजाम दिया गया था। इन परीक्षण में फिजन और फ्यूजन दोनों तरह के टेस्ट किए गए। इसे भी पूरी तरह से गुप्त रखा गया। भारत के इन दो परीक्षण के बाद भी खूब हंगामा दुनिया में मचा था। वहीं, भारत की ओर से ये एक स्पष्ट ऐलान था कि वह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम हो चुका है।
पहले तीन परीक्षणों (एक थर्मो-न्यूक्लियर, एक फिजन (विखंडन) और एक लो यील्ड डिवाइस) के बाद भारत सरकार ने खुद को परमाणु हथियार रखने वाला देश घोषित कर दिया। इसके बाद अगस्त 1999 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) ने एक भारतीय परमाणु सिद्धांत (Draft Indian Nuclear Doctrine) ड्राफ्ट तैयार किया, जिसमें भारत के परमाणु हथियारों के प्राथमिक उद्देश्य की बात की गई। इस न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन को बाद में जनवरी 2003 में एक कैबिनेट नोट के माध्यम से मंजूरी दे दी गई।
पोखरण-1 और पोखरण-2 में क्या अंतर है?
अब सवाल है कि 1974 में हुए पहले टेस्ट और फिर 1998 में हुए टेस्ट में क्या अंतर है। दरअसल, 1974 में हुआ परमाणु परीक्षण फिजन टेस्ट था। न्यूक्लियर फिजन में दरअसल किसी अणु को दो टुकड़ों में बांटा जाता है। इससे बड़ी मात्रा में उर्जा निकलती है। परमाणु उर्जा पावर प्लांट्स में इसी तकनीक से उर्जा पैदा की जाती है। इसे नियंत्रित करना भी आसान होता है। भारत ने 1974 में हुए उस टेस्ट पूरी तरह से शांतिपूर्ण मकसद वाला (पीसफुल न्यूक्लियर एक्सप्लोजन, PNE) बताया था।
पीएनई तकनीक का उपयोग 1950 और 1960 के दशक के दौरान प्रचलन में आया जब दुनिया की महाशक्तियों (अमेरिका, सोवियत संघ आदि) ने सिविल इंजीनियरिंग परियोजनाओं, समुद्र में खनन आदि जैसे विकास वाले और औद्योगिक प्रयोग के लिए परमाणु विस्फोटक तकनीक का उपयोग करना शुरू किया। हालांकि, 1960 के दशक के मध्य में ‘अठारह राष्ट्र निरस्त्रीकरण समिति (ईएनडीसी)’ में परमाणु हथियारों के अप्रसार (एनपीटी) पर एक संधि के लिए बातचीत के दौरान अमेरिका ने PNE को इससे अलग रखने पर इनकार कर दिया।
अमेरिका का तर्क था कि परमाणु शक्ति का प्रयोग कोई देश किसलिए कर रहा है, इसका पता लगाना बहुत मुश्किल होगा। साथ ही अमेरिका ने प्रस्ताव रखा कि वह व्यावसायिक आधार पर PNE तकनीक अन्य जरूरतमंद देशों को मुहैया करा सकता है। हालांकि, भारत ने इसे खारिज कर दिया। भारत ने कहा कि शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए परमाणु तकनीक के विकास को लेकर ‘भेदभाव’ नहीं होना चाहिए। इसी मुद्दे के बाद 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया और आधिकारिक तौर पर कहा गया कि यह पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।
दूसरी ओर 1998 के टेस्ट के लिए कहा जाता है कि फीजन और फ्यूजन दोनों परीक्षण शामिल थे। हालांकि इसे लेकर पुष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। फ्यूजन तकनीक में दो अणु आपस में मिलते हैं और इससे बहुत ज्यादा उर्जा निकलती है। यह ज्यादा खतरनाक भी माना जाता है। यह परमाणु परीक्षण दुनिया को स्पष्ट संदेश था कि भारत परमाणु हथियारों से लैस हो चुका है।