भाजपा ने कैसे किया दिल्ली में आम आदमी पार्टी के वर्चस्व का अंत...5 बड़ी वजहें

दिल्ली मे आम आदमी पार्टी का शासन खत्म होने जा रहा है। भाजपा 27 साल बाद दिल्ली में वापसी कर रही है। वहीं, कांग्रेस का हाथ एक बार फिर खाली है।

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BJP Wins Delhi

दिल्ली चुनाव में जीत पर जश्न मनाते भाजपा कार्यकर्ता Photograph: (IANS)

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही यह साफ हो गया है कि भाजपा की 'डबल इंजन' वाली सरकार यहां भी दौड़ने के लिए तैयार है। लगातार तीन बार से चुनाव में सफलता हासिल करने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता से बाहर हो रही है। भाजपा करीब 27 साल बाद दिल्ली में सत्ता में वापसी करेगी। 

वहीं कांग्रेस के लिए नतीजे एक बार फिर बेहद निराशानजक रहे हैं। 2013 से पहले तक कांग्रेस लगातार 15 साल दिल्ली में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान थी लेकिन इसके बाद से उसका खाता तक नहीं खुल सका है। भाजपा की चर्चा हिंदू वोट और हिंदुत्व की राजनीति के लिए भी होती है। हालांकि, इस बार दिल्ली में भाजपा ने ऐसे विषयों को बहुत प्रमुखता से नहीं छुआ। हिंदुत्वादी बयानबाजी से भाजपा दूर रही क्योंकि उसे पता था कि उस रास्ते पर 'आप' भी जाने से नहीं हिचकेगी। ऐसे में सवाल है कि आखिर आम आदमी पार्टी का वर्चस्व दिल्ली में भाजपा ने कैसे खत्म किया? इसे समझने की कोशिश करते हैं।

1. मध्यम वर्ग पर ध्यान: आम आदमी पार्टी दिल्ली के मध्यम वर्गीय परिवारों की हताश के बाद उभरी थी। हालांकि, बाद के कुछ वर्षों में यह संदेश गया कि पार्टी केवल गरीबों और झुग्गी-झोपड़ी वाले लोगों के लिए ही है। मसलन 200 यूनिट बिजली मुफ्त, महिलाओं के मुफ्त बस सेवा जैसी योजनाएं शुरू की गई। दिल्ली में करीब 68 प्रतिशत मध्यवर्गीय परिवार है। केजरीवाल ने चुनाव से ठीक पहले मिडिल क्लास को अपने चुनावी भाषणों में संतुष्ट करने कोशिश जरूर की लेकिन नाकाम नजर आए। इसके उलट भाजपा ने इस वर्ग के वोट में सेंध लगाई। बजट में टैक्स को लेकर ऐलान और इससे पहले आठवें वेतन आयोग बनाने जैसी घोषणाओं ने मीडिल क्लास को भाजपा की ओर आकर्षित किया।

2. आप की योजनाएं नहीं बंद करने का भरोसा: चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के बड़े नेताओं सहित खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोगों में यह भरोसा जगाने में कामयाब रहे कि AAP सरकार की चल रही किसी भी योजना को बंद नहीं किया जाएगा। हालांकि, इससे पहले खासकर लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इसे रेवड़ी बताकर उपहास उड़ाया था, लेकिन दिल्ली चुनाव के दौरान पूरे मुद्दे को लेकर भाजपा ने विशेष सावधानी बरती।

3. यमुना, प्रदूषण, दिल्ली की सड़कों-नालों का बुरा हाल: दिल्ली चुनाव में यमुना नदी का जिक्र एक बार फिर आया। हरियाणा को घसीटते हुए केजरीवाल ने यमुना की गंदगी के लिए पूरा दोष किसी और के सिर पर मढ़ने की कोशिश की। हालांकि, वे कामयाब नहीं हुए। इससे पहले कजरीवाल ने 2015 और 2020 दोनों बार यमुना को साफ करने का वादा दिल्ली के लोगों से किया था, लेकिन वे नहीं कर सके। इसके अलावा दिल्ली के प्रदूषण की बात जब-जब आई, 'आप' बैकफुट पर नजर आई। 'आप' दिल्ली एमसीडी में भी शासन में है। इसके बावजूद दिल्ली में सड़कों और नालों का बुरा हाल, कचड़े के निपटान में बदइंतजामी जैसी विषय लोगों को नाराज कर गए।

4. आप-एलजी का संघर्ष: खराब सड़कों और कुछ अन्य कामों के लिए आम आदमी पार्टी लगातार यह वजह बताती रही कि एलजी उनके प्रोजेक्ट रोक रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली सरकार और एलजी के बीच लगभग हर बात पर टकराव देखने को मिला। इससे दिल्ली के लोगों का ही नुकसान हुआ। संभवत: मतदाताओं ने तय कर लिया कि केंद्र की ओर से नियुक्त एलजी के साथ भाजपा सरकार ज्यादा बेहतर तरीके से अगले पांच साल काम कर सकती है।

5. सत्ता विरोधी लहर और भ्रष्टाचार के आरोप: आम आदमी पार्टी 2012 में बनी और 2013 से लगातार सत्ता में रही। जाहिर है 11 साल तक सत्ता में रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर से निपटना आसान नहीं होता है। पार्टी ने उम्मीदवारों की लिस्ट में कुछ बदलाव भी किए, लेकिन ये काफी नहीं रहा। इसके अलावा आप के शीर्ष नेताओं पर जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उससे भी पार्टी को खासा नुकसान हुआ। शराब घोटाले से लेकर मख्यमंत्री निवास के पुनर्निर्माण से जुड़े 'शीशमहल विवाद' तक को भाजपा ने जोरशोर से भुनाया और उसके लिए राह आसान हो गई।

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