नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कई छात्रों के निलंबन पर रोक लगा दी। छात्रों को बिना पूर्व अनुमति के कैंपस में विरोध प्रदर्शन करने पर निलंबित कर दिया गया था। 

कोर्ट ने मामले के समाधान के लिए कुलपति की निगरानी में विश्वविद्यालय अधिकारियों की एक समिति गठित करने का आदेश दिया और कहा कि चर्चा में छात्र प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने विश्वविद्यालय को मामले में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

कोर्ट जामिया के चार छात्रों की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर द्वारा उन्हें निलंबित करने और कैंपस में प्रवेश पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता छात्रों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस और अधिवक्ता अभिक चिमनी ने पैरवी की। 

छात्रों की याचिका पर सुवनाई

गोंसाल्वेस ने दलील दी कि छात्रों का प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया अनुपातहीन थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता छात्रों का रिकॉर्ड साफ-सुथरा है और वे कैंटीन के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे जो कि अनुमति के दायरे में नहीं आता। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को उनका मार्गदर्शन करना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय उसने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर छात्रों की गिरफ्तारी की सुविधा प्रदान की।

वहीं, जामिया का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता अमित साहनी और किसलय मिश्रा ने तर्क दिया कि छात्रों ने प्रदर्शन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली थी और उन्होंने संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया।

छात्रों पर आरोप और पूरा मामला

जामिया प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों पर "केंद्रीय कैंटीन सहित विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, सुरक्षा सलाहकार कार्यालय का गेट तोड़ने, दीवारों पर लिखावट करने और आपत्तिजनक वस्तुएं ले जाने" का आरोप लगाया है।

फरवरी में, विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन कर रहे कुछ छात्रों को कथित रूप से दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था। प्रदर्शनकारियों का दावा था कि कुछ छात्र घंटों तक लापता रहे, जिससे और भी प्रदर्शन हुए। हालांकि, सभी छात्रों को लगभग 12 घंटे बाद रिहा कर दिया गया था।

छात्र दिसंबर 2024 के प्रदर्शन में शामिल प्रतिभागियों को जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। यह प्रदर्शन नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) विरोध प्रदर्शनों की वर्षगांठ और 2019 में कैंपस में कथित पुलिस बर्बरता की याद में किया गया था।